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“एक मुद्दा जिसकी राजनीति ने हमारे भगवान राम को मज़ाक बना दिया है”

कल सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर/बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई का आखिरी दिन था। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा,

अब बहुत हो गया  एक महीने बाद इस पर फैसला लिया जाएगा और फिर यह मुद्दा हमेशा के लिए खत्म।

वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपना मुक़दमा वापिस लिया है। उनकी तरफ से राजीव धवन यह मुकदमा लड़ रहे हैं। यह मुकदमा 200 साल से भी पुराना है और जिस मुकदमे की वजह से ना सिर्फ कभी किसी बेगुनाह की हत्या ना करने वाले दयालु भगवान राम की बेइज़्जती हुई बल्कि हमारे मुल्क को भी बहुत नुकसान हुआ है।

ये मामला 1526 का है जब मीर बांकी खान जो कि बाबर का सेनापति था उसने विवादित ज़मीन पर राम मंदिर तुड़वा कर मस्जिद बना दी थी जो कि इस्लामिक रीतियों के भी खिलाफ थी। बाबरी मस्जिद अकेली नहीं है, मथुरा में बादशाह औरंगजे़ब ने भी एक कृष्ण मंदिर को तुड़वा कर मस्जिद बनवाई थी।

क्या सबूत है हिन्दू पक्षकारों के पास?

अगर आप कोई टीवी डिबेट देखें या सुप्रीम कोर्ट की डिबेट देखें तो यह पता चलेगा कि कोर्ट में कई सारे एविडेंस पेश किए गए हैं। जैसे कि,

यह पक्षकारों का कहना है। हालांकि उनके पास अभी ज़मीन के कागज़ नहीं है। कोर्ट के लिए यह आस्था नहीं बल्कि ज़मीन का मसला है और राजनीतिक पार्टियों के लिए वोट का।

हिंदुत्व की दोगली राजनीति इस मुद्दे पर

आज के भारत के केरल राज्य के गवर्नर और पूर्व काँग्रेसी नेता आरिफ मोहम्मद खान का कहना है कि जब 1986 में काँग्रेस पार्टी ने मस्जिद का ताला खुलवाने की सोची थी, तो राजीव गाँधी ने विहिप यानी विश्व हिंदू परिषद को यह पैगाम भिजवाया था,

आप मस्जिद का ताला खुलवाने के लिए फैज़ाबाद कोर्ट में अर्ज़ी डाल दीजिए और सरकार इसका विरोध नहीं करेगी। आप जीत जाएंगे।

पर विहिप ने कहा,

नहीं हमें मंज़ूर नहीं। हम यह अधिकार आंदोलन करके ही लेंगे।

बाद में फैज़ाबाद के किसी काँग्रेसी लीडर की अर्ज़ी पर मस्जिद का ताला खुल गया। इस बात के सबूत के तौर पर आरिफ जी ने आरएसएस के आर्गेनाइज़र अखबार के पूर्व एडिटर मलखानी साहब की किताब का ज़िक्र भी किया है।

मतलब राम के नाम पर हिंदुत्ववादी दोगली राजेनीति कर रहे थे। उन्हें मंदिर से मतलब नहीं बल्कि वोट से मतलब था, जिसने ना सिर्फ हिन्दू धर्म को दागदार किया बल्कि समाज में उस नफरत को ज़िंदा किया, जिसे बड़ी मुश्किल से बंटवारे के बाद दबाया गया था।

बीजेपी और लाल कृष्ण आडवाणी ने भी इस मुद्दे पर भर के राजेनीति की। तभी 1984 में 2 सांसदों वाली पार्टी 1989 में 80 से ज़्यादा सांसद लाई और 1992 में 100 के पार। उसके एक साल बाद  1990 में मध्यप्रदेश समेत 2 और राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी हालांकि उन पर भी यह इल्ज़ाम लगते हैं कि वह राजनीति के लिए मंदिर निर्माण की बात कर रहे थे।

काँग्रेस, सुन्नी वक्फ बोर्ड और झूठे लिब्रलवादियों की राजनीति

आरिफ मोहम्मद खान ने यह भी इल्ज़ाम लगाया था कि फरवरी 1986 में उनकी राजीव गाँधी से बात हुई थी। जिसमें राजीव गाँधी ने कहा,

मस्जिद का जो ताला खुला है, उसका कोई मुस्लिम लीडर विरोध नहीं करेगा क्योंकि मैंने सबको जानकारी दे दी है

आरिफ साहब बताते हैं कि मौलाना अलिमिया जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बडे़ अधिकारी थे, उन्होंने उत्तरप्रदेश के एक उर्दू अखबार में दिए एक इंटरव्यू में, बाबरी मस्जिद के बारे में कहा था कि और भी मस्जिद गैरों के कब्ज़े में है।

इस बात से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पर्सनल लॉ बोर्ड और सरकार के बीच कुछ डील हुई थी। यह डील शाह बानो केस में राजीव गाँधी सरकार के पर्सनल लॉ बोर्ड के सामने सरेंडर की वजह से उत्पन हुए विरोध की धार को कुंद करने के लिए हो सकती है। साहब ने यह भी बताया कि राजीव जी के ज़िंदा रहते हुए, पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले में आया ही नहीं और जब आया तो खुद मौलाना अलिमिया ने उनकी मुखालफत की।

1992 में जब राम भक्ति के नाम पर हिन्दुओं से मस्जिद गिरा कर पाप करवाया गया तो उसके बाद पूरे देश में दंगे हुए। हिन्दू मुस्लिम सब मारे गए और जब नरसिम्हा राव ने कहा कि हम दोबारा मस्जिद बनाएंगे तो विवाद और बढ़ गया।

इसी बीच मैं कुछ लेफ्ट स्टूडेंट्स पॉलिटिकल पार्टी के फेसबुक पेज देख रहा था। वे कहते हैं कि मस्जिद वहीं बनाएंगे और एआईएमआईएम (AIMIM) की राजनीति भी वही है। इसके अलावा काईओ पॉलिटिकल पार्टियां जिसमें खुद समाजवादी पार्टी भी शामिल है, उन्होंने भी बहुत कुछ पाया है।

मिसाल के तौर पर 1990 में कुछ कारसेवकों ने मस्जिद पर चढ़ कर उसे तोड़ने की कोशिश की थी। तब यू.पी में मुलायम सिंह की सरकार थी। जिसने उनपर गोली चलवा दी और 20 से ज़्यादा लोग मर गए थे। इसके बाद मुलायम सिंह को मौलाना मुलायम नाम से जाना जाने लगा। इस बात की तारीफ मुलायम सिंह आज तक अपनी छाती ठोककर करते हैं।

उनका कहना है कि उन्होंने कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह किया। मतलब राम मंदिर/बाबरी मस्जिद आंदोलन से इनको भी फायदा हुआ है।

खैर मुझे यह डर है कि इस मुद्दे के खत्म होने के बाद कहीं ये लोग कोई नया मुद्दा ना ले आएं जैसे काशी और मथुरा का। बस सही यह होगा कि इस नफरत की राजनीति को खत्म हो जाना चाहिए।

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