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आतिशबाज़ी से नहीं रौशन होगा यह समाज

पटाखे

पटाखे

दीपावली अंधकार में प्रकाश का, गंदगी में सफाई का, बुराई में अच्छाई का, दुःख में सुख का, नफरत में प्यार का और सकारात्मक ऊर्जा के संचार का पावन पर्व है। समाज को प्रकाशमय, शांतिपूर्ण और खुशहाल बनाने का सुअवसर है। दीपावली चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण करने के पश्चात मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के अपने घर अयोध्या वापसी के उपलक्ष्य में मनाई जाती है।

इस सुअवसर पर अयोध्यावासियों ने सारे नगर को दीपों से जगमगा रखा था। इसमें मुख्यतः घी के दिये जलाए थे, जिसका आधुनिक अर्थ होता है – खुशी मनाना।
आज आधुनिकीकरण के दौर में हमने दीपावली मनाने का तरीका बदल दिया है। जितने हम दीप नहीं जलाते, उससे से कहीं अधिक आतिशबाज़ी करते हैं। जहां दीप समाज को रौशन करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं, वहीं आतिशबाजी दिल्ली जैसे महानगरों के साथ-साथ छोटे-छोटे गाँवों को भी ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण आदि पर्यावरणीय प्रदूषणों से अंधकारमय बना देती है।

दिल्ली में पिछली दिपावली के दौरान मैंने पाया कि अंधाधुंध आतिशबाजी से सारे शहर में ज़हरीली और हानिकारक धुंध दो-तीन दिन तक रही, जिसका समाज पर बड़ा कुप्रभाव पड़ा।

आज दीपावली जैसे त्यौहारों पर हम अंधाधुंध आतिशबाजी करते हैं, जो क्षणिक खुशी प्रदान करने के साथ अपना दीर्घकालिक हानिकारक प्रभाव छोड़ती है। इसलिए मैं कहता हूं, “आतिशबाजी से नहीँं होगा रौशन समाज।” इन हानिकारक प्रभावों से हम इंसानों को आंखों में जलन, बहरापन के साथ-साथ कैंसर, दमा और हृदयरोग जैसी जानलेवा बीमारियां भी घेर लेती हैं। यह स्थिति हमारे पतन की ओर संकेत करती है। इसलिए मैं कहता हूं-

“यदि हम आतिशबाज़ी करते जाएंगे
तो इस समाज को और दूषित पाएंगे,
यदि ऐसा ही हम करते जाएंगे
तो एक दिन खुद को ही नहीँंबचा पाएंगे”

हमें आतिशबाजी से समाज को दूषित करने के बजाय दीपावली के सुअवसर पर समाज को दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा जैसी कुप्रथाओं, छुआछूत जैसी कुरीतियों, बलात्कार, यौन-शोषण, किसान-मज]दूर शोषण और बाल-श्रम जैसे अत्याचारों एवं भ्रष्टाचार, आतंकवाद और महंगाई जैसी गंभीर समस्याओं को पूर्णतः समाप्त करने के लिए कदम उठाना चाहिए।

उपर्युक्त समस्याओं से छुटकारा प्राप्ति हेतु हमें सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक क्रांति करना चाहिए और आधिकाधिक जनभागीदारी के साथ आंदोलन करना चाहिए। मैंने कहा भी है, “क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं।” अर्थात क्रांति होती है तो परिवर्तन होता है। परिवर्तन होता है तो विकास होता है। विकास होता है तो हम लक्ष्य प्राप्ति करते हैं।

इस दीपावली को हम संकल्प लेते हैं कि कभी भी आतिशबाजी से समाज को दूषित नहीं करेंगे, बल्कि गम्भीर समस्याओं को मिटाकर सभ्य समाज का निर्माण करेंगे और समाज को दिव्य रौशनी से रौशन करेंगे। संकल्प को सिद्धि तक पहुंचने हेतु अंनत शुभकामनाएं और साथ ही साथ आप सभी को प्रकाशपर्व दीपावली की अनंत शुभकामनाएं और बधाई।

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