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क्या अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बदल जाएगी देश की सियासी स्थिति?

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अब से कुछ ही देर में आने वाला है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर को रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर 40 दिनों से लगातार चल रही सुनवाई पूरी कर ली थी। चीफ जस्टिस ने कहा था कि 23 दिन के बाद इस पूरे मामले पर फैसला आएगा। अब आज फैसले की घड़ी आ गई है।

सुनवाई के आखिरी दिन सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष और हिन्दू पक्ष की ओर से बहस कर रहे वकीलों के बीच काफी तीखी और कोर्ट की सीमा रेखा को लांघने वाली बहस देखने की मिली। साथ ही शुरू हो गई नेताओं की बयानबाज़ी भी। मुस्लिम पक्ष की ओर से आए वकील राजीव धवन को लेकर पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भाजपा नेता उमा भारती ने कहा कि, एक पक्ष के वकील ने कोर्ट में कागज़ फाड़ दिया, यह वह थे जो बाबर के पक्ष के वकील थे। ज़ाहिर है ऐसे बयानों से आम जनता में क्या माहौल बनता है।

आपको बता दें 16 अक्टूबर के दौरान अयोध्या में धारा 144 लागू कर दी गई थी, जिसे एक  बार फिर से लागू किया गया है। भारी मात्रा में पीएसी बलों को अयोध्या में तैनात कर दिया गया है।

सुनवाई खत्म होने से पहले ही सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया में रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद तैरने लगा था। इसी बीच एक खबर यह भी तैरने लगी कि शुन्नी वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा वापस लेगा लेकिन थोड़ी ही देर में यह मात्र एक अफवाह साबित हुई।

सभी को अब सुप्रीम कार्ट के इस सुप्रीम फैसला का बेसर्बी से इंतज़ार है। लोग सोशल मीडिया पर अभी से उत्तजित करने वाले सवाल-जवाब करने लगे हैं, ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह शांति व्यवस्था को बनाए रखे और किसी तरह की अफवाह को फैलने से रोके।

भारत के लगभग हर नागरिक के दिलो-दिगाम में एक ही प्रश्न आ रहा है, आखिर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या होगा? क्या वह विवादित ज़मीन पर राम मन्दिर बनाने के पक्ष में होगा या बाबरी मस्जिद के पक्ष में?

फैसला के इंतज़ार में लोगों में बढ़ती बेचैनी

यह मामला मात्र देश के आम नागरिक भर के लिए बेचैनी बढ़ाने वाला नहीं है, बल्कि यह मुद्दा देश की सत्ता और विपक्ष के लिए सबसे अधिक बेचैनी का कारण है। हो भी क्यों नहीं, इसको आप महज़ संयोग कहें या कुछ और लेकिन आज जब सालों चली कानूनी लड़ाई के बाद इस मामले का फैसला आने वाला है, तब केन्द्र में उन्हीं लोगों के पास सत्ता है और अधिकतर राज्यों में भी वहीं सत्ताधारी हैं, जिन्होंने 27 साल पहले बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को धर्म के नाम पर लोगों को इकट्ठा करके गिरा दिया था। इससे पहले भी चुनावी घोषणा-पत्रों में वहां राम मन्दिर बनाने या बनवाने की बात कहीं जाती रही है।

भीड़तंत्र हो सकता है सबसे बड़ा खतरा

देश के मौजूदा हालात और सत्ताधारी भाजपा का उन हालातों पर रुख को देखते हुए यह मामला और गंभीर हो जाता है, जब हिन्दुओं द्वारा धर्म के नाम पर अल्पसंख्यकों को सरेआम पीट-पीटकर मारा जा रहा हो, खासकर मुस्लिमों को। बीते पांच-छह सालों में सत्ताधारी भाजपा ने इसको रोकने के लिए कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है। इससे हिन्दुत्व के नाम पर उन्माद फैलाने वालों को बहुत अधिक बल मिला है, इसी कारण यह खतरा अधिक बढ़ जाता है। क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद धार्मिक उन्मादी सड़कों पर उन्माद नहीं फैलाएंगे?

बाबरी मस्जिद का इतिहास और विवाद

मिली जानकारी के अनुसार बाबर ने 1526 में पानीपत के युद्ध में दिल्ली सल्तनत के आखिरी वंशज सुल्तान इब्राहीम लोदी को हराने के बाद भारत में मुगल साम्राज्य को स्थापित किया और 1527 ई. में अयोध्या में बाबरी मजिस्द का निर्माण करावाया। उसके बाद से ही राजशाही खज़ाने से मस्जिद के लिए अनुदान दिया जाने लगा, जो आगे चलकर ब्रिटिश काल में अंग्रेज़ों द्वारा भी जारी रहा।

सन् 1853 में पहली बार बाबरी मस्जिद को लेकर साम्प्रदायिक हिंसा हुई, तब भारत में अंग्रेज़ों की हुकूमत थी। इस विवाद को सुलझाने के लिए अंग्रेज़ी हुकूमत ने जिसके तहत यहां विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी, बाबरी मस्जिद परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिदुओं को प्रार्थना करने की इजाज़त दे दी गई।

लेकिन साल 1949 में एक बार फिर विवाद तब खड़ा हो गया जब, मस्जिद के अन्दर भगवान राम की मूर्तियां मिलीं। कथित तौर पर कुछ हिदुओं द्वारा मूर्तियां वहां रखी गई थीं। मुस्लिम समुदाय ने इसका विरोध किया और इसके बाद दोनों पक्ष इस मामले को लेकर हाईकोर्ट पहुंच गया।

इसके बाद ही मौजूदा सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित करते हुए यहां ताला लगा दिया। तब से विवादित स्थल पर दावेदारी को लेकर दोनों पक्ष के बीच कोर्ट में कानूनी लड़ाई चल रही थी।

इस कानूनी लड़ाई के बीच ही सत्ता की चाह रखने वाली भाजपा और उसके नेताओं ने वह किया, जिसका शायद ही किसी को अन्दाज़ा था। 6 दिसम्बर 1992 को भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी सहित कई नेताओं ने भीड़ के साथ एक जनसभा की और उग्र भीड़ द्वारा बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया। इसका सीधा अर्थ था अदालत में मामला होने के बाद भी धर्म के नाम पर लोगों को उकसाया गया और इसके बाद देशभर में भारी साम्प्रदायिक हिंसा हुई।

क्या वाकई सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही आखिरी फैसला साबित होगा?

यह सवाल इसलिए उठ खड़ा होता है, क्योंकि भारत में धार्मिक मसलों पर इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने कई फैसले सुनाए हैं। धर्म और जातिवाद के नाम पर वैसे कई फैसलों को सिरे से खारिज़ किया गया है। कई मामलों में राज्य और देश की सरकारें भी अदालतों के फैसलों को पूर्णतः लागू नहीं करा पाई हैं, जिनमें कई धार्मिक गुरुओं की गिरफ्तारियां और महिलाओं व दलितों के मंदिर में प्रवेश जैसे मामले शामिल रहे हैं, जिन्हें कोर्ट के आदेश के बाद भी लागू नहीं किया जा सका। लोगों को भारी विरोध और हिंसा का सामना करना पड़ा।

जबकि पहले के सभी मामले इतने अधिक संवेदशील नहीं थे, जितना अयोध्या रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद का है। 1853 से अब तक इस मुद्दे पर लोग हिंसक होने को तैयार बैठे रहे हैं। दो बार भारी हिंसा देखी भी जा चुकी है, ऐसे में कोर्ट के फैसले के बाद लोगों की प्रतिक्रिया कैसी होगी कहना बहुत मुश्किल है।

मुस्लिमों के पक्ष में फैसले से भाजपा को नुकसान

1992 के बाद से बाबरी मस्जिद और रामजन्म भूमि का विवाद खुले तौर पर राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। हालांकि भाजपा इससे पहले से राम मंदिर निर्माण के लिए कहती आई है, ऐसे में अगर कोर्ट का फैसला मुस्लिम पक्ष में जाता है, तब सत्ता में बैठी भाजपा सरकार के दावे और वादे का क्या होगा?

क्या 1992 की तरह फिर देश को सांप्रदायिक दंगों में झोंक दिया जाएगा? क्योंकि देश की वर्तमान राजनीति और हालात तो ऐसे ही इशारे करते हैं और क्योंकि यह भाजपा का बड़ा और बहुत पुराना चुनावी वादा रहा है जो कि जगज़ाहिर है। हाल ही में कई प्रदेशों में चुनाव भी हैं, भाजपा अपने घोषणापत्र और चुनावी रैलियों में इस मुद्दे को ज़रूर एक बार फिर भुनाने की कोशिश करेगी।

भाजपा को मिल सकता है लाभ

अगर कोर्ट को फैसला राम मंदिर निर्माण के पक्ष में आता है, तो इसमें कोई संदेश नहीं कि भाजपा आने वाले सभी चुनावों में यह मुद्दा पहले नंबर पर रखेगी। देशभर में कट्टर हिन्दुत्ववादी विचारधारा के लोग इसका लगे हाथों स्वागत करेंगे और आने वाले लगभग हर चुनाव में भाजपा इसका पूरा चुनावी लाभ उठायेगी। जैसे हाल में कश्मीर में धारा 370 हटाना हो, गौरक्षा के नाम पर हिंसा और लोगों को जान से मारना हो, जय श्री राम के जबरन नारे लगवाते हुए मुस्लिमों को मारना हो, इन सभी अपराधों को अधिकतर बहुसंख्यकों द्वारा किया जाता रहा है और यह सब इस बात की ओर इशारा करता है कि रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुस्लिमों के पक्ष में आसानी से शायद ही ज़मीन पर माना जाएगा।

वोटों के लिए मुस्लिमों को भी उकसाया जा सकता है

मुस्लिम पक्षकारों ने कोर्ट को कई पुख्ता सबूत दिए हैं, जो यह साबित करते हैं कि विवादित ज़मीन पर बाबर द्वारा मस्जिद बनवायी गई थी लेकिन हिन्दु पक्षकारों द्वारा ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं पेश किया गया है, जो यह साबित करता हो कि ठीक उसी जगह भगवान राम का जन्म हुआ था, जिस जगह दावा किया जाता रहा है।

ऐसे में मुस्लिम पक्ष और समुदाय भी शायद ही राम मंदिर के पक्ष के फैसले को आसानी से मान लेगा और अगर कुछ लोग मान भी लेंगे तो मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले नेता और पार्टियां इसका पूरा लाभ उठाना चाहेंगी। हो सकता है, मुस्लिमों के वोटों के लिए उनका हमदर्द बनकर उन्हें उकसाया जाए? उनके द्वारा हिंसा कराई जाए? ऐसे में इस बात से बिल्कुल इंकार नहीं किया जा सकता है कि कोर्ट का फैसला चाहे जो भी हो, सम्भावित सांप्रदायिक हिंसा के होने की संभावना बन सकती है। अब देखना यह होगा कि सभी राज्य और देश की सरकार इस फैसले के बाद हिंसा को रोकने या ना होने देने के लिए क्या करती हैं? या अपने-अपने राजनीतिक लाभ के लिए अप्रत्यक्ष रूप से सम्भावित हिंसा में शामिल हो जाती है?

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