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“खाद्य वस्तुओं के प्रति अमेरिका जैसी गंभीरता कब दिखाएगा भारत?”

प्रतीकात्मक तस्वीर: फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर: फोटो साभार- Flickr

पिछले दिनों अमेरिका ने MDH के सांभर मसाले में साल्मोनेला बैक्टीरिया के संदेह के आधार पर सांभर मसालों की सभी खेपों को लौटा दिया और यहां तक कि अमेरिकी बाज़ार में पहुंच चुकी मसालों को भी वापस कर दिया। 

अमेरिका ने ऐसा पहली बार नहीं किया है, बल्कि इसके पहले भी उसने भारतीय खाद्य उत्पादों को लौटाया है। उसने खाद्य उत्पाद ही नहीं, बल्कि कई दवाओं एवं अन्य उत्पादों को भी मानक के अनुरूप ना होने की वजह से लौटाया है।  इसका आशय यह है कि अमेरिका अपने नागरिकों के खान-पान एवं अन्य बातों को लेकर बहुत गंभीर रहता है।

भारत की स्थिति भिन्न है

यही परिदृश्य जब हम भारतीय बाज़ारों एवं खाद्य वस्तुओं की तरफ देखते हैं, तो हमें काफी चिंताजनक दृश्य दिखता है। बाज़ार में बिकने एवं बनने वाली खाद्य वस्तुओं को हम चाव से खाते तो हैं लेकिन उसके गुणवत्ता को लेकर ना तो हम गंभीर होते हैं और ना ही इसे लेकर हमारी सरकार चिंतित है। 

खाद्य उत्पादों का उत्पादन एवं प्रस्करण करने वाली छोटी से लेकर बड़ी संस्था गंभीर नहीं होती है। हमें पता ही नहीं होता है कि जिस खाद्य का सेवन हम कर रहे हैं, वे अपने निर्धारित मानक एवं हमारे स्वास्थ्य के अनरूप है या नहीं। बस हम पैकेट फाड़ते हैं और सीधा अपने मुंह में डाल लेते हैं। 

स्थिति यह है कि अधिकतर खाद्य उत्पादों के पास अपने उत्पादित खाद्य पदार्थों के गुणवत्ता जांचने का ना ही कोई विकसित वैज्ञानिक साधन है और ना ही उसका ज्ञान।

खान-पान की गुणवत्ता को लेकर हमें गंभीर होना पड़ेगा

हमारे शासन ने उत्पादित खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता जांचने हेतु तंत्र तो विकसित किया है लेकिन यह विशेष त्यौहारों पर ही हरकत में आती है और कुछ रेस्टोरेंट इत्यादि का जांच करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है।

जब तक हम स्वयं अपने खान-पान की गुणवत्ता को लेकर गंभीर नहीं होगें, तब तक हम जहर खा रहे हैं या क्या कुछ खा रहे हैं, यह सुनिश्चित हो पाना मुश्किल है। अपनी सरकारों एवं खाद्य विभागों से अपने कर्तव्यों के प्रति अपेक्षा करना मूर्खता है। यह बहुत ही गंभीर दृश्य है, जिसको लेकर ना तो हम गंभीर हैं और ना ही हमारे द्वारा निर्मित शासन और सरकारी व्यवस्था।

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