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क्या हम मनुष्य जानवरों की मौत की वजह बन रहे हैं

कुछ महीने पहले ब्राज़ील में अमेज़न के जंगल भयावह आग की चपेट में थे और जंगलों में फैली आग की लपटें मानवजनित विनाश को भयावह रूप दे रही थीं। 55 करोड़ हेक्टेयर में फैले इन वनों में एक आंकलन के अनुसार लगभग आठ लाख एकड़ के जंगल इस आग से राख में तब्दील हो चुके थे, जो पिछले दो सालों में हुई क्षति से कई गुणा ज़्यादा है।

एक आंकलन के अनुसार पिछले साल से इस साल आग लगने की घटनाओं में 83% की बढ़ोतरी हुई है और आग से जंगल में निवास करने वाले 500 किस्म से ज़्यादा विभिन्न प्रजातियों पर संकट के बादल छाए हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार आग से हुई क्षति को पूरा करने में दो सौ साल से ज़्यादा समय लगने का अनुमान है।

आग के कारण प्रतिदिन लाखों टन कार्बन डाइ-ऑक्साइड वातावरण में फैल रहा है

ब्राज़ील के नैशनल इंस्टीट्यूट फाॅर स्पेस रिसर्च के अनुसार प्रति मिनट यह एक फुटबाॅल मैदान जितने क्षेत्र को अपनी चपेट में लेती जा रही है मगर क्षति की भरपाई निकट भविष्य में नहीं दिख रही है।

ब्राज़ील के साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक कार्लोस नोब्रे का कहना है कि अब हम चरम बिंदु के बेहद करीब पहुंच चुके हैं। यदि हमने इस बिंदु को पार कर लिया, तो यह बदलाव अपरिवर्तनीय होगा लेकिन अफसोस हम उस ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं।

पिछले एक दशक से अधिक समय तक विश्व के इस सबसे बड़े वर्षा वन को संरक्षित करने के प्रयास के बाद भी हम इस खतरनाक बिंदु तक पहुंच गए हैं। यही कारण है कि दुनियाभर में इस पर चिंता जताई जा रही है।

अमेज़न के लिए उठ रही है आवाज़

अमेज़न के जंगल की महत्ता के मद्देनज़र दुनियाभर से इसे बुझाने के लिए आवाज़ उठने लगी और आग की दहक पूरी दुनिया महसूस करने लगी। 

आग के कारण वहां निवास करने वाले आदिवासी मूल के लोगों के अलावा आसपास के लोग भी तबाह हो गएं। आग से ब्राज़ील के अलावा स्पेन का कैनेरी द्वीप, अमेरिका का अलास्का, ग्रीनलैंड, रूस में साइबेरिया के साथ बोलीवियाई वन भी जलने लगा।

अमेज़न जंगल की तस्वीर। फोटो साभार- फेसबुक

आग से प्रभावित क्षेत्रों में हाहाकार मचा और भोजन-पानी का अभाव होने से तबाही का माहौल बन गया। स्कूल बंद कर दिए गएं और यहां की जनता दुनियाभर के लोगों से बचाने के लिए गुहार भी लगा रही थी।

आग के कारण ब्राज़ील के साओ पाउलो शहर में अंधेरा छा गया था। आग बुझाने को लेकर दुनिया भले चिंतित हो लेकिन वहां के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो इतमिनान दिख रहे थे। उन्होंने पहले तो यह कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली कि हमारे पास आग बुझाने की क्षमता नहीं है। आग बुझाने को लेकर ना सिर्फ ब्राज़ील में बल्कि दुनिया के कई देशों में लोग सड़कों पर उतर गएं।

पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका

अमेज़न धरती-जलवायु प्रणाली का एक प्रमुख घटक है। यह संपूर्ण वातावरण के लगभग एक चौथाई काबर्न को अकेले नियंत्रित करता है। प्रतिवर्ष दुनिया में हमलोगों द्वारा छोड़े गए कुल कार्बन-डाई ऑक्साइड के 5% को यह अवशोषित करता है। धरती के ऑक्सीजन का 20% यहीं से आता है। इन जंगलों में जैव-विविधता भी सबसे ज़्यादा है।

विश्व की सबसे बड़ी नदी से सिंचित यह वन 140 अरब मीट्रिक टन कार्बन भी अवशोषित करते हैं। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में कई समुदाय के तीन करोड़ आदिवासियों के साथ ही अनमोल वन्य प्राणियों की भी भरमार है। दुनिया में कहीं और नहीं पाए जाने वाले वन्य प्राणियों का यही निवास स्थल है।

अमेज़न की आग खतरनाक सिद्ध होगी

भारी दबाव के बीच ब्राज़ील ने आग बुझाने के लिए सेना भेजी गई लेकिन वह आग बुझाने के लिए मन से तैयार नहीं थे, क्योंकि उनके अनुसार आग लगने की घटना सामान्य है।

उन्होंने तो दुनियाभर में उठ रही आवाज़ और विशेष कर यूरोपीय देशों से बनाए गए दबाव को आंतरिक मामले में हस्तक्षेप की संज्ञा दी थी, इससे ही उनकी मंशा को समझा जा सकता है लेकिन दुनिया समझ रही है कि यदि अमेज़न की आग इसी तरह बढ़ती रही, तो जलवायु परिवर्तन व वैश्विक तापमान का दंश दुनिया के लिए खतरनाक सिद्ध होगा।

फोटो साभार- Flickr

मनुष्य जाति के साथ ही वन्य प्राणियों व जैव-विविधता के अस्तित्व पर भी खतरा छा जाएगा और वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने का प्रयास विफल हो जाएगा। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि जंगल में आग लगने की घटना अनेक जंगलों में परिस्थिति का अंग होती है लेकिन अमेज़न के जंगलों में लगी आग का संदर्भ ऐसा नहीं है। वहां लगी आग का लगभग हर कारण मानवीय गतिविधियों से जुड़ा हुआ है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि अमेज़न के जंगलों में रहने वाले विभिन्न समुदायों के लगभग तीन करोड़ लोग इसके लिए ज़िम्मेवार हैं।

वह तो सदियों से प्रकृति के साथ संतुलन बना कर रहने के आदि हैं। इन्हें भी विस्थापित कर वहां से हटाने, खेती के लिए ज़मीन बनाने, खनिज, खनन के लिए लाभ के मकसद से लोग जंगल में आग लगाते हैं। ये वे लोग हैं, वहां से जंगल की कीमत पर भी लाभ कमाने से बाज़ नहीं आने की मंशा रखते हैं।

जंगल का व्यवसाय

जंगल को सिर्फ एक संसाधन मानकर लाभ कमाने वाले लोग आदिवासियों के अधिकारों को खारिज कर जंगलों के व्यवसायिक इस्तेमाल को इच्छुक हैं। यही कारण है कि वे जंगलों को साफ करने में लगे हुए हैं मगर अफसोस वहां की सरकार भी उनके इस काम में साथ खड़ी दिखती है।

इसकी पुष्टि इस बात से ही होती है कि वर्तमान राष्ट्रपति ने अपने चुनावी वादों में पर्यावरण संरक्षण के साथ ही आदिवासियों के अधिकारों को खारिज कर जंगलों के व्यवसायिक इस्तेमाल की बात कही थी और चुनाव जीतने के बाद वह इसी राह पर चलते भी दिखते हैं।

जलते हुए अमेज़न जंगल की तस्वीर। फोटो साभार- फेसबुक

राष्ट्रपति बनते ही पर्यावरण संरक्षण की राष्ट्रीय एजेंसी के बजट से 95% की कटौती कर दी है, इससे भी आग बुझाने में संसाधनों की कमी सामने आ रही है लेकिन इससे बेखबर राष्ट्रपति अपने स्तर से मामले को टालने में लगे हैं।

सबसे खतरनाक तो यह कि इनके पद पर आसीन होते ही वनों पर आफत आ गई है। इनके राष्ट्रपति बनने के पहले तक अमेज़न के जंगलों की स्थिति ऐसी नहीं थी लेकिन इनके आने के बाद यह बीस हज़ार मील कम हो गया है।

वर्ष 2004 में ब्राज़ील की तत्कालीन सरकार ने वनों के विनाश को रोकने हेतु ज़्यादा से ज़्यादा क्षेत्रों को संरक्षित और जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित करने के उद्देश्य से कई कदम उठाए थे।

इस दौरान नियमों का उल्लंघन करने वालों पर दंड के साथ ही गिरफ्तार करने के मामले भी सामने आते रहे हैं। इन एहतियाती कदमों से 2012 तक 75% वन क्षेत्र के नुकसान में कमी आई थी। वहीं के वैज्ञानिक नोब्रेके के अनुसार राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो के सत्ता में आने के कुछ महीने बाद, मई से वनों की कटाई में तेज़ वृद्धि हुई है। इससे प्रति वर्ष करीब 2000 वर्ग मील जंगल कम हो गए हैं।

यह आग प्राकृतिक नहीं

आग को प्राकृतिक बताने वाले लोगों को यह समझना ज़रूरी है कि प्राकृतिक तौर पर अमेज़न शायद ही कभी जलता है लेकिन गौर करने की बात है कि इस महीने अमेज़न के वन में 25,000 से अधिक बार आग लगने की गणना आइएनपीइ ने की है।

आग से ही नहीं, बल्कि कटाई से भी यहां के वन सिकुड़ रहे हैं। मई, जून और जुलाई में प्राप्त उपग्रह चित्रों में वनों की कटाई में वृद्धि देखी गई है।

फोटो साभार- Twitter

नासा के गोड्डर स्पेस फ्लाइट सेंटर के बायोस्फेरिक साइंसेज़ लेबोरेटरी के प्रमुख डाॅग मोर्टन के अनुसार अमेज़न के बड़े-बड़े विशाल पेड़ों को गिराने के लिए कुल्हाड़ी या मैचेट के बदले अब लोग बुल्डोज़र का प्रयोग कर रहे हैं। सरकार ने इन वन क्षेत्रों के हज़ारों एकड़ में कृषि का आदेश दे दिया है।

पहले इस ज़मीन का उपयोग पशु चारागाह के तौर पर या सोयाबीन जैसी फसल उगाने के लिए किया जाता था। भले ही यूरोपीय नेताओं के दबाव के बाद आग बुझाने के लिए सेना भेजी गई है लेकिन उनका मन अपनी जगह शांत है।

अमेज़न मुद्दे पर राजनीति

राष्ट्रपति ने आरोप लगाया है कि आग को लेकर राजनीति हो रही है लेकिन उनके ध्यान में यह नहीं है कि पिछला महीना जुलाई, यूरोप के लिए सबसे गर्म महीना रहा है। यही कारण है कि यूरोप के कई देश उन पर एक तरह से दबाव बनाने में एकजुट होकर कामयाब हुए हैं। दबाव में उन्होंने घोषणा की कि सेना अमेज़न के रेन फाॅरेस्ट की सीमाई, आदिवासी और संरक्षित इलाकों में तैनात होगी।

फ्रांस और आयरलैड ने कहा था कि वह ब्राजील के साथ यूरोपीय संघ-मर्कोसुर व्यापार समझौते को तब तक मंज़ूरी नहीं देंगे, जब तक अमेज़न के आग को बुझाने का प्रयास नहीं किया जाएगा। ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो ने इस मुद्दे पर राजनीति करने की बात कही। जंगलों की महत्ता से आंख मुंदने वाले इस शासक को इसकी परवाह नहीं कि दुनिया के 20% से अधिक ऑक्सीजन पैदा करने वाले जंगल को बर्बाद करने का नतीजा क्या होगा?

प्रकृति का फेफड़ा जल रहा है

इसे प्राकृतिक फेफड़े की संज्ञा दी गई है मगर यही फेफड़ा आज जल रहा है। इसलिए ब्राज़ील के अमेज़न में लगी आग हमारे देश के लिए भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इस बात से दुनिया का कोई भी राजनीतिज्ञ इंकार नहीं कर सकता कि पर्यावरण के बिगड़ने से हमारी अर्थव्यवस्था, ज़िंदगी व जीने का अंदाज़ भी बदला है और जीवन पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ा है।

सत्ता को आसान बनाने में पर्यावरण के मुद्दे भले बहुत कारगर नहीं लगते हो लेकिन यह बात तय है कि अब पर्यावरण को नज़रअंदाज़ करना संभव नहीं होगा।

अमेज़न को बचाने के लिए हो रहे हैं प्रयास

बहरहाल, दुनियाभर में अमेज़न के जंगल में लगी आग को बुझाने के लिए संसद से सदन तक प्रयास देखे गएं। अमेज़न के जंगल सिर्फ ब्राज़ील के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए ज़रूरी है। पर्यावरण को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस जंगल को किसी भी कीमत पर बचाया जाना चाहिए। 

इसके साथ ही यह भी ज़रूरी है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहभागिता से आगे ले जाया जाए। प्रकृति के असंतुलित दोहन का दुष्परिणाम समुची मानवता को भुगतना पड़ रहा है इसलिए सामूहिक चिंता और प्रयास दोनों ज़रूरी है।

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