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“क्यों भाजपा के लिए ज़रूरी हैं अमित शाह”

अमित शाह

अमित शाह

साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालने के बाद अमित शाह ने फिर कभी पीछे मुंड़कर नहीं देखा। हाल ही में CNN-News 18 को दिए एक साक्षात्कार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से जब यह सवाल किया गया कि भावी अध्यक्ष के बाद उनकी भूमिका क्या होगी, तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि जो भी ‘अध्यक्ष जी’ तय करेंगे।

उस शख्स के मुंह से ‘अध्यक्ष जी’ सुनना वाकई में अचंभित करने वाला था। जो खुद बीते पांच साल से ज़्यादा समय से पार्टी का अध्यक्ष रहा हो और जिसके कार्यकाल में भाजपा फर्श से अर्श तक पहुंच गई, यह दिखाता है कि भाजपा में किस तरह परंपराओं का सम्मान किया जाता है। आज 22 अक्टूबर को गृह मंत्री का जन्मदिन है। आइए इस मौके पर जानते हैं उनके बारे में कुछ बेहद ही दिलचस्प बातें।

शाह की रणनीतिक कौशल

अपने जन्मदिन पर शाह ना तो गुजरात स्थित अपने पैतृक आवास पर होंगे ना ही कोई जश्न मनाएंगे। इसकी वजह है कि वह दौरे पर होंगे। दौरे पर होंगे, आपको पढ़कर लग रहा होगा कि आखिर महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव तो बीत गए फिर किस बात का दौरा! दरअसल, यही शाह की पहचान है और उनका वर्क कल्चर है।

अमित शाह। फोटो सभार- Getty Images

शाह के लिए राजनीति चुनाव तक सीमित नहीं रहती। वह 24×7 राजनीति के सबसे शानदार उदाहरण हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी सरकार यानी मोदी 2.0 में गृह मंत्री बने अमित शाह ने कुछ ही दिनों में यह साबित कर दिया कि वह इस पद के काबिल हैं।

चाहे मुद्दा NRC का हो, अनुच्छेद 370, अनुच्छेद 35 ‘ए’ या फिर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने का हो, शाह ने अपनी प्रासंगिकता साबित कर ही दी है।

उन्होंने यह स्पष्ट किया कि देश और उसकी प्राथमिकताओं से बढ़कर उनके लिए कुछ नहीं है। जुलाई के आखिरी और अगस्त के पहले हफ्ते में एक ओर जहां दुनिया पाकिस्तान और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों की बयानबाज़ियों पर चर्चा कर रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर शाह ने एक ऐसी चाल चली जिससे सारी बाज़ी ही पलट गई।

मध्यस्थता का राग अलाप रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मुंह से कुछ नहीं निकला। दुनिया के तमाम बड़े देश, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे जो चाहते हैं वह कर दिखाते हैं, वे भी जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के मुद्दे पर कुछ नहीं बोले।

मानों शाह की रणनीतिक कौशल पर सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को यकीन हो। पाकिस्तान और चीन ने कोशिश की कि वे इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करें लेकिन उनके भी वश में कुछ ना रहा।

कौन हैं भाजपा के दो गुजराती?

यह बात भी सच है कि आलोचना से परे कोई नहीं है। ज़रूरी नहीं है कि हर व्यक्ति का फैसला किसी और के लिए सही ही हो। कुछ ऐसा ही शाह के साथ भी हुआ। कमान संभालने के बाद शाह ने पार्टी की एक और परंपरा का सद्गभावनापूर्ण निर्वाह किया।

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह। फोटो साभार- बीजेपी फेसबुक पेज

विपक्ष से लेकर पक्ष तक, कई नेता यह कहते हैं कि भाजपा को दो ‘गुजराती’ चला रहे हैं। यह कहने वाले वही लोग हैं, जिन्हें संपूर्ण और अखंड भारत की हकीकत पर गर्व  नहीं है। खैर!

शाह ने पार्टी की सेंकेंड लाइन लीडरशिप तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भले ही पुराने नेताओं ने पार्टी और सरकार के मौजूदा फैसलों पर सवाल किया हो लेकिन इन सबको दरकिनार कर शाह और मोदी ने पार्टी और सरकार के भविष्य पर ध्यान दिया। अगर सवाल उठे तो उनका शालीनता से जवाब भी दिया गया।

ज़िला इकाइयों तक पुस्तकालय एवं ग्रंथालय निर्माण में शाह की अहम भूमिका

इतना ही नहीं शाह, काँग्रेस की नीति पर नहीं चले। 60 साल तक सरकार में रहने वाली पार्टी की हालत यह है कि तमाम ज़िलों में उसके दफ्तर नहीं हैं। दावा तो यहां तक किया जाता है कि गोरखपुर और इलाहाबाद सरीखे शहर में पार्टी का अपना कार्यालय तक नहीं बचा।

शाह ने इस मामले में भी काँग्रेस को मात दे दी। आज लगभग हर ज़िले में भाजपा का कार्यालय है। इतना ही नहीं, जब राजनीतिक रूप से खुद को एलीट बताने वाला वामपंथ अपने आपको बहुत पढ़ाकू बताता हो, तो उस क्षेत्र में भी भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को पढ़ने की ओर केंद्रित किया। केन्द्रीय स्तर से लेकर राज्य तथा ज़िला इकाइयों तक पुस्तकालय एवं ग्रंथालय का निर्माण करवाकर पार्टी की अध्ययन परम्परा को बल दिया।

125 करोड़ लोगों की आकांक्षाओं के गृह मंत्री बन गए शाह

शाह की खासियत है कि वह अपने लक्ष्य पर नज़र रखते हैं और विचारधारा पर जमकर काम करते हैं। विचारधारा से जुड़े किसी मुद्दे पर अगर कभी विपक्ष ने कोई सवाल किया तो उनका स्पष्ट संकेत होता है कि अगर अमुक विचार आप लागू करते या आपके एजेंडे में होता तो हमारी ज़रूरत ही क्या थी?

बीजेपी की एक रैली में हिस्सा लेते लोग। फोटो साभार- Twitter

जिस भाजपा के बारे में कहा जाता था कि ‘बैठक, भोजन और  विश्राम, भाजपा के यह तीन काम’ शाह ने इस धारणा को भी ध्वस्त कर दिया। वह खुद तो मेहनत करते ही हैं, कार्यकर्ताओं को भी प्रेरित करते हैं। शाह, ज़मीन से फीडबैक लेकर प्रधानमंत्री तक उसे पहुंचाते हैं। शाह पहले ऐसे बीजेपी अध्यक्ष हैं, जिनके कार्यकाल में पूर्वोत्तर तक पार्टी की धमक पहुंच रही है।

इन सब उपलब्धियों और सफलताओं के बावजूद एक सच यह भी है कि यह सब ना तो एक दिन में हुआ है और ना ही आसानी से। कभी विभिन्न आपाराधिक आरोपों का सामना कर रहे शाह को यह कहां पता रहा होगा कि वह एक दिन 125 करोड़ लोगों की आकांक्षाओं के गृह मंत्री बन जाएंगे।

22 अक्टूबर को उम्र के 54 वसंत पूरे करने वाले शाह के लिए आने वाला समय काफी महत्वपूर्ण है। देश उनकी ओर विभिन्न कानूनों को लेकर बड़ी आशा से देख रहा है।

नोट: यह लेख इससे पहले YKA यूज़र सौरभ शेखर द्वारा हरिभूमि वेबसाइट पर प्रकाशित किया जा चुका है।

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