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विश्वविद्यालयों में छात्र संघ को क्यों प्रतिबंधित कर दिया जाता है?

प्रतीकात्म्क तस्वीर। फोटो साभार- pixabay

प्रतीकात्म्क तस्वीर। फोटो साभार- pixabay

उत्तर प्रदेश के कुछ ही विश्वविद्यालयों में छात्र-छात्राओं को विश्वविद्यालय की चुनावी राजनीति में प्रति भाग करने का अवसर मिल पाता है। इसकी बड़ी वजह है, कई विश्वविद्यालयों में छात्र संघ को प्रतिबंधित किया जाना। जिस वजह से अब बेहद कम विश्वविद्यालयों में छात्र संघ के चुनाव होते हैं, इनमें से एक है महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी। 

एक चौंकाने वाला नाम

जब वाराणसी के बहुजन छात्र संघ इकाई द्वारा अध्यक्ष पद के प्रत्याशी हेतू अरविंद कुमार का नाम चुना गया तो यह फैसला कई लोगों को आश्चर्य में डालने वाला था क्योंकि अभी तक सभी ने अरविंद को केवल एक सक्रिय सदस्य के तौर पर संजीदगी से भागीदारी करते और एक कार्यकर्ता के तौर पर कार्य करते हुए देखा था। 

ऐसे में जब महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ में बहुजन छात्र संघ का पूरा पैनल उतरने जा रहा है, तो उस पैनल के नेतृत्वकर्ता के रूप में अरविंद कुमार का होना उम्मीद जगाता है।

प्रचारित व प्रसारित करने का मौका

अरविंद कुमार के पास बहुजन वैचारिक को सीखने और उसे पूरे समाज तक प्रचारित व प्रसारित करने का बेहतरीन अवसर है, वर्तमान छात्र संघ चुनाव उसका प्राथमिक पायदान मात्र है। अरविंद कुमार ग्रामीण पृष्ठभूमि के गरीब परिवार से निकले बहुजन युवा हैं। आज भी इनका परिवार ग्रामीण या शहरी मज़दूर के तौर पर कार्य करके अपने परिवार का गुज़ारा करता है। 

ऐसी परिस्थितियों में अरविंद कुमार का बहुजन आंदोलन के सामाजिक परिवर्तन कारवां के प्रति समर्पित होना अन्य सभी युवाओं में भी जोश और दृढ़ संकल्प को बनाए रखता है। साथ ही उम्मीद जगाता है कि बहुजन आंदोलन अब ऐसे युवाओं के नेतृत्व में जाएगा जो व्यक्तिगत स्वार्थ से मुक्त होकर पूरे समर्पण भाव से सामाजिक आंदोलन को आगे बढ़ाएंगे। 

बचपन से युवावस्था तक की कहानी

अरविंद कुमार के बचपन से युवावस्था तक के कई सहपाठियों से संवाद करने पर कई दिलचस्प कहानियां सामने आती हैं, जो हमें यह जानने और समझने में मदद करती है कि उनमें सामाजिक संघर्ष का हौसला कहां से जन्म लेता है। 

एक बार कक्षा में एक ब्राह्मण शिक्षक पढ़ाते समय धार्मिक किवदंतियों से जुड़ा कोई उदाहरण छात्रों को समझाते हैं। सभी छात्र उनसे सहमत होते हैं लेकिन उनमें से एक छात्र अमुक शिक्षक से अंधविश्वास भरी किवदंतियों पर तर्क करना प्रारंभ कर देता है, जिससे असहज होकर ब्राह्मण शिक्षक महोदय तर्कशील छात्र को कक्षा में सबसे ज़्यादा नंबर लाकर अपने ज्ञान को साबित करने की चुनौती देते हैं। 

ब्राह्मण शिक्षक की चुनौती स्वीकार

कक्षा का वह तर्कशील छात्र ब्राह्मण शिक्षक के चुनौती को इस शर्त के साथ स्वीकार करता है कि यदि वह कक्षा में सबसे ज़्यादा नंबर लाएगा तो शिक्षक महोदय को कक्षा में बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की तस्वीर लगानी होगी। 

अभिमानी शिक्षक महोदय को जितना भरोसा अपने धार्मिक ज्ञान पर था उतना ही भरोसा शूद्र वर्ण के छात्रों की कम मानसिक क्षमता को लेकर भी था इसलिए उन्होंने सहर्ष इसकी अनुमति दे दी। 

निर्धारित समय पर परीक्षाएं आयोजित हुई, जिसमें सभी छात्रों ने प्रति भाग किया और परीक्षा परिणाम घोषित होने पर उस तर्कशील छात्र, जिसका नाम अरविंद कुमार था उसने कक्षा में सबसे अधिक नंबर प्राप्त किए। 

इस तरह अरविंद कुमार ने अंधविश्वास व पाखंड की कमर तोड़ी और साथ ही अपने बहुजन महापुरुषों के सम्मान को स्थापित करने में सफल रहे। भले ही ब्राह्मण शिक्षक महोदय अपने वचन से मुकर गए जैसा कि यह उनका सामाजिक गुण है मगर अरविंद कुमार के जीवन से जुड़ी यह सच्ची घटना हम सभी के लिए प्रेरणस्रोत है।

फूले और आंबेडकर की विचारधारा के साथ

वर्तमान में अरविंद कुमार महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के राजनीतिक विज्ञान विभाग में शोधरत हैं, जहां उन्हें अपने अध्ययन व ज्ञानार्जन से तमाम गुत्थियों को सुलझाना होगा। साथ ही उनके सामने एक बेहतर युवा नेतृत्वकर्ता के रूप में महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के अध्यक्ष पद को जीतने की भी साझा चुनौती है। 

अरविंद की सबसे विशेष बात है कि वह महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ वाराणसी में पहली बार खुले तौर पर फूले और आंबेडकर की विचारधारा को लेकर आगे बढ़ रहे हैं।

इसकी बानगी हम देख सकते हैं कि किस प्रकार अपने पोस्टर में सभी बहुजन महानायक महनायिकाओं को स्थान देने का प्रयास किया है। इसमें गौतम बुद्ध, सम्राट अशोक, छत्रपति शाहूजी महाराज, ज्योतिबा फूले, सावित्री फूले, फातिमा शेख, नारायणा गुरु, बिरसा मुंडा, बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर, संत गाडगे, ई वी रामासामी पेरियार, महामना रामस्वरूप वर्मा, पेरियार ललई सिंह यादव ,भारत लेनिन जगदेव कुशवाहा, फूलन देवी और कांशीराम साहब आदि शामिल हैं। 

सकारात्मक संवाद के ज़रिये लोकप्रियता अर्जन

अरविंद का इन सभी विभूतियों से प्रेरणा लेकर लगातार 5 वर्षों तक विश्वविद्यालय के छात्रों के संघर्ष और ज़रूरतों पर खड़ा रहना ही उनकी ताकत है और वह लगातार छात्राओं और छात्रों के बीच विश्वविद्यालय से जुड़े शिक्षा और सुविधाओं के ज़रूरी मुद्दे लेकर सभी से बेहद सकारात्मक संवाद कर रहे हैं, जिस कारण वह विश्वविद्यालय में बेहद लोकप्रियता अर्जित कर रहे हैं।

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