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“देशभक्त होने के बावजूद मेरी नज़र में सावरकर भारत रत्न के हकदार नहीं हैं”

भारत रत्न देश का सबसे सर्वोच्च सम्मान है, जो कि भारत के लिए उत्कृष्ट कार्य करने वालों को मिलता रहा है। सबसे पहले यह सम्मान सी.राजगोपालचारी को मिला था और बाद में और भी बहुत से लोगों को मिलता रहा है, सिवाय महात्मा गाँधी के, जो कि दुख की बात है।

आज एक और नेता को भारत रत्न देने की बात हो रही है। उनका नाम है विनायक दामोदर सावरकर जिन्हें भाजपा वाले वीर सावरकर कहते हैं। सावरकर इतिहास के सबसे बड़े विवादित किरदार रहे हैं।

कुछ के लिये सावरकर एक साम्प्रदायिक व्यक्ति हैं, तो कुछ के लिए महान क्रांतिकारी। पर असल में सावरकर कौन हैं? और मैं क्यों इन्हें भारत रत्न का हकदार नहीं मानता हूं।

सांप्रदायिक सोच

सावरकर उन व्यक्तियों में से एक थे जो शांति पसन्द हिन्दू समाज के लोगों को 11वीं और 15वीं शताब्दी वाले आक्रमणकारियों की तरह बनने के लिए सलाह दे रहे थे। सावरकर का मानना था कि अतीत में हिंदुओं ने मुस्लिम महिलाओं के प्रति जो दया दिखाई वह हिंदुओं के लिए आत्मघाती था। उन्होंने कहा था,

तब क्या होता अगर हिंदू राजा भी मुस्लिम राजाओं से जंग जीत कर उनकी औरतों का बलात्कार करते?

वह छत्रपति शिवाजी जैसे प्रसिद्ध शख्सियतों के उदाहरण (पैरा 450) देते हैं, जिन्होंने कथित तौर पर कल्याण के मुस्लिम गवर्नर की बहू को सम्मान के साथ छोड़ दिया था। साथ ही उन्होंने पेशवा चिमाजी आप्टे का भी ज़िक्र किया, जिन्होंने बेसिन के पुर्तगाली गवर्नर की पत्नी को छोड़ने की अनुमति दी थी।

इसके अलावा किताब की पृष्ठ संख्या 429, 430, 451, 452, 453 और 454 में भी काफी आपत्तिजनक बाते लिखी गई हैं।

आया था गाँधी की हत्या में नाम

31 जनवरी 1948 नाथूराम गोडसे ने गाँधी की हत्या की थी।  गोडसे का संबंध अखिल भारतीय हिन्दू महासभा से था। इसका सबूत 27 फरवरी 1948 को सरदार पेटल द्वारा पंडित नेहरू को लिखी चिट्ठी में है।

सावरकर उसी महासभा के प्रमुख नेताओं में एक थे जिन्हें 8 फरवरी 1948 को गिरफ्तार किया गया था। उनपर नाथूराम और उनके साथियों के साथ मुकदमा भी चला लेकिन सबूत ना होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया।

गाँधी की हत्या के बाद चले मुकदमे में नाथू राम गोडसे समेत सावरकर एवम अन्य साथी

उसके बाद एक बार फिर सावरकर का नाम उछला। तारीख थी 12 नवंबर 1964, जब पुणे में एक धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। यह कार्यक्रम गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु करकरे (गांधी जी हत्या की साजिश में शामिल आरोपी) की सज़ा की अवधि समाप्त होने के बाद जेल से रिहा होने के जश्न स्वरूप मनाया गया था।

बाल गंगाधर तिलक के पोते डॉ वी के केतकर ने यह बताया कि वास्तविक घटना से छह महीने पहले ही नाथूराम गोडसे ने गाँधी को मारने के लिए अपने विचारों का खुलासा किया था।

इस बयान ने इतनी सनसनी मचाई की भारत सरकार ने जस्टिस जीवन लाल कपूर के नेतृत्व में कपूर कमीशन बनाया था।

3 साल तक चले इस कमीशन ने 101 गवाहों के बयान लिए और 407 दस्तावेज़ों का उत्पादन किया, जिसकी जानकारी भारत और महाराष्ट्र की सरकारों को दी गई। उस वक्त सावरकर के खिलाफ भी एक गवाह मिला था, जिसका नाम था दिगंबर बड़गे (एक और आरोपी जो गाँधी की हत्या में शामिल था) जिसने कहा था,

सावरकर ने ना सिर्फ महात्मा गाँधी बल्कि पंडित नेहरू और बंगाल के तत्काल मुख्यमंत्री हुसैन शहीद सुधारवादी (जिन्हें वो 1946 में बंगाल में मारे गए हिन्दुओ का कातिल मानते थे) उनकी भी हत्या करने का हुक्म दिया था।

हालांकि जब इस रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट में मुक़दमा चला तो सबूत ना होने के कारण जस्टिस आत्माचरण ने विनायक सावरकर को रिहा कर दिया।

देशभक्ति पर कोई शक नहीं

सावरकर की देशभक्ति पर किसी को कोई शक नहीं है। खुद गाँधी को भी नहीं था। अपनी किताब कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गाँधी  के पेज क्रमांक 368 में इस बात का ज़िक्र है। जहां गाँधी ने सावरकर को देशभक्त कहा था। वह भी तब जब सावरकर अंडमान की जेल में थे और 3 माफीनामा लिख चुके थे। गाँधी लिखते हैं,

सावरकर को मैं लंदन में मिल चुका हूं। वे एक महान देशभक्त हैं। 1920 में मैंने लोकमान्य बाल गंगधार तिलक जी से उनकी रिहाई की मांग की थी और साथ में सावरकर द्वारा लिखी माफीनामों को एक आम प्रक्रिया बताया था।

1966 में विनायक सावरकर की मौत के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जी ने उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया था। वहीं 29 मई 1980 में उन्होंने एक पत्र लिखा था, जिसमें इंदिरा ने सावरकर को देशभक्त कहा था।

इंदिरा गाँधी द्वारा जारी किए गए सावरकर के डाक टिकट

अभी हाल ही में अमित शाह ने एक बयान दिया जिससे मैं सहमत हूं। उनका कहना है कि सावरकर वह पहले आदमी थे जिन्होंने अपनी किताब के ज़रिए दुनिया को बताया कि 1857 में जो हुआ। वह सैनिक विद्रोह नहीं बल्कि आज़ादी की लड़ाई थी।

बाद में उनकी किताब पर अंग्रेज़ो ने बैन लगा दिया था। पर तब तक इस किताब का कई भाषाओं में अनुवाद हो गया था और यह पूरी दुनिया में बंट चुकी थी।

1917 में जब विनायक सावरकर अपने भाई के साथ अंडमान की सेलुलर जेल में थे तब क्रेडाक नाम एक अधिकारी वहां आया था। जिसने सब कैदियों को यह छूट दी थी कि वे समुद्र के पास जा कर 2 घंटे बैठ सकते हैं। पर विनायक सावरकर और उनके भाई को इसे दूर रखा गया क्योंकि उन्हें डर था कि जिस तरह सावरकर 1910 में फ्रांस में एक समुद्री जहाज़ से कूद कर भागने में कामयाब हुए थे। अंग्रेज़ों को शक था कि वे दोबारा ऐसी हरकत ना करे।

1928 में छुआछूत के खिलाफ भी सावरकर ने अपने शहर रत्नागिरी में एक अभियान चलाया था। इस अभियान के तहत उन्होंने भगवान विट्ठल के मंदिर में अछूत समझे जाने वाले लागों का प्रवेश करवाया था। सावरकर की यह कोशिश उनकी छुआछूत के खिलाफ कमिटमेंट को दर्शाती है। इसी वजह से ना सर्फ गाँधी ने उनकी तारीफ की बल्कि डॉ अम्बेडकर भी विनायक सावरकर के करीबी बनें।

तभी 1930 के अंत में हिन्दू महासभा डॉ अंबेडकर के आरक्षण और धर्मांतरण के मुद्दे का समर्थन कर रही थी सिर्फ एक शर्त पर कि वे सिर्फ ब्राहम्णों के धर्मों को छोड़ कोई भी धर्म अपना सकते हैं चाहे वह बुद्ध धर्म हो, सिख हो या जैन।

विनायक सावरकर पर मेरा मत

मेरा यह मानना है कि सावरकर को भारत रत्न नहीं मिलना चाहिए। जिनको भी भारत रत्न मिला है, उन सबका आज़ाद भारत में कोई ना कोई योगदान है, जो सावरकर का मुझे ईमानदारी से नहीं दिखता है।

देशभक्ति का मतलब सिर्फ देश से ही नहीं बल्कि देश के लोगों से भी भाईचारा रखना होना चाहिए। सावरकर ने मुसलमानों पर नस्लभेदी टिप्पणी करके हमारे भाईयों का अपमान किया था।

यह अपमान है मौलाना आज़ाद, शाहनवाज़ खान, जेम्स माइकल, सैम मानेकशॉ, जैकब जैसे उन लोगों का जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी देश के लिए निकाल दी। सावरकर ने इस बात से इन सब का अपमान किया है।

मुझे पक्का यकीन है कि भाजपा सावरकर को यह सम्मान नहीं देगी, अगर देना होता तो पहले 5 साल में दे सकती थी। अगर यह इनके महाराष्ट्र चुनाव के मैनिफेस्टो में आया है, तो यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे ये काम करेंगे।

दुश्मन की घर की औरतों के बलात्कार का समर्थन कभी नहीं किया जा सकता है। यह भी एक सत्य है। मेरी नज़र में विनायक सावरकर इस सम्मान के हकदार नहीं है। जो व्यक्ति हैं उनको यह सम्मान मिलना चाहिए। अगर हम अपने ही लोगों के बारे में ऐसे विचार रखेंगे तो राम राज्य कैसे स्थापित होगा? हमे हिन्दू राष्ट्र नहीं बल्कि राम राज्य चाहिए।

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