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“मॉब लिंचिंग में विशेष धर्म के लोगों को ही टारगेट क्यों किया जाता है?”

मॉब लिंचिंग

मॉब लिंचिंग

सवा सौ करोड़ वाला हमारा भारत देश कब एक भीड़ का हिस्सा बन गया पता ही नहीं चला। इतने बड़े लोकतांत्रिक देश मे मॉब लिंचिंग का होना अब हमारे दिलों में एक डर ज़रूर पैदा कर देता है। सोशल मीडिया, व्हाट्सएप और तमाम तरह के प्रचार-प्रसार के साधनों द्वारा कोई भी गिरोह या संगठन अब मॉब लिंचिंग कर किसी को भी पीट-पीटकर मार दे सकता है।

मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं कोई नई नही हैं, बल्कि यह तो सदियों से होता आया है लेकिन कुछ वर्षों से भारत जैसे देश में इसकी वृद्धि हुई है।आखिर मॉब लिंचिंग का निशाना केवल विशेष जाति या धर्म के लोगों को ही क्यों बनाया जा रहा है?

इसका मतलब यही हुआ कि कोई तंत्र है, जो इसे नियंत्रित कर रहा है और वह उसी तंत्र द्वारा काफी सुनियोजित तकीरे से भीड़ को उन्मादी रूप भी दिया जा रहा है लेकिन सरकार उस पर नियंत्रण नहीं रख कर पा रही है। कुछ वर्षों में जितनी भी मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई हैं, उनका सीधा संबंध विशेष धर्म के लोगों से ही है।

मॉब लिंचिंग के खिलाफ प्रोटेस्ट। फोटो साभार- Getty Images

भारत में गाय को धार्मिक पशु के रूप में जाना जाता है और जितनी भी मॉब लिंचिंग हुई है, उनमें से ज़्यादातर में यही पाया गया है कि गाय के नाम पर किसी की हत्या कर दी गई। ऐसी स्थिति में देश के बुद्धिजीवी और सामाजिक चिंतन करने वालों के मन में एक बार यह प्रश्न क्यों नहीं उठता कि इसका मूल कारण कहीं पॉलिटिकल माइंडेड लोगों की साज़िश तो नहीं, जो इस तरह की धार्मिक भावनाओं को जबरन भड़काकर भीड़ को लगातार उकसाने का काम कर रही है।

लिंचिंग के कारण बढ़ रहा है राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक तनाव

ज़ाहिर सी बात है हिन्दू कम्युनिटी अगर मॉब लिंचिंग में शामिल है और सरकार उनपर एक्शन ना लेकर नर्म रुख अपनाती है फिर तो यह कहना गलत नहीं होगा कि इससे सरकार को वोट बैंक का फायदा मिलेगा। वाकई में ऐसी चीज़ें देश के लिए बहुत खतरनाक हैं।

आने वाले समय मे ऐसे गिरोह या संगठन द्वारा इस तरह की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर कई तरह के अनैतिक, अमानवीय, असंवैधानिक एवं कानून विरोधी गतिविधियों को और बढ़ावा देने का काम किया जाएगा, जिससे देश के अंदर अशांति और राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति पैदा होगी।

इससे ना सिर्फ देश में राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक तनाव उत्पन्न होता है, बल्कि जन जीवन भी अस्त व्यस्त हो जाता है। इसे नियंत्रित करने के लिए देश के सभी बुद्धिजीवी वर्गों, सामाजिक चिंतकों  और सामाजिक एवं राजनीतिक संगठनों को आगे आना चाहिए तभी स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। बड़े स्तर पर जन-जागरूकता लाने की अब ज़रूरत है।

दुखद यह भी है कि हमारे राजनेताओं को लिंचिंग जैसी घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता है। इस संदर्भ में हमारे तमाम राजनेता बायानबाज़ी से आगे कुछ कर ही नहीं पाए हैं। एसी कमरों में बैठकर राजनीतिक रणनीतियां बनाने वाले नेताओं को भला क्या पता कि उन परिवारों का क्या हाल होता होगा, जिन्होंने लिंचिंग जैसी घटनाओं में अपनों को खोया है।

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