एक मानव-विज्ञानी एक अफ्रीकी आदिवासी बच्चों के लिए एक खेल का प्रस्ताव रखा। वह एक पेड़ के पास फल से भरी एक टोकरी रख दिया और बच्चों को बोला कि जो कोई वहाँ सबसे पहले जायेगा, सारे फल उसके हो जायेंगे। जब उसने देखा कि सारे बच्चे आपस में हाथ जोड़ लिए हैं और एक साथ उस टोकरी की ओर बढ़ रहे हैं। फिर एक साथ बैठकर आनंद से फल को खा रहे हैं। मानव विज्ञानी ने पूछा, “उन्होंने ऐसा क्यूँ किया, जबकि सारे फल कोई एक ले सकता था?” उन्होंने कहा ‘उबुन्तु’ लेकिन हम कैसे खुश हो सकते हैं, जबकि दूसरे उदास हों ? खोसा संस्कृति में ‘UBUNTU’ का अर्थ है – “मैं हूँ क्योंकि हम हैं”।
ऐसी सोच शायद उपभोग्तावादी, भागदौड़ की ज़िन्दगी जीनेवाले लोगों के लिए सोचना भी है। आज उनके लिए विकास का अर्थ है अनियंत्रित उपभोग, दिखावा, संसाधनों की जमाखोरी, भीड़भाड़ आदि, जिससे आज भी ज्यादातर आदिवासी समुदाय दूर हैं।इसलिए आज यदि पर्यावरण को बचाना है और एक बेहतर जीवन जीना है, तो आदिवासी जीवन मूल्य ही रास्ता है। लेकिन हम उन्हें आज पिछड़ा, असभ्य, नक्सली आदि समझने की भूल कर बैठते हैं। वास्तविक जरुरत है उनसे सीखने की।
उनके जीवन मूल्य के पीछे के दर्शन पर शोधपरक ज्ञान अर्जन करने की। आदिवासी पूरी दुनिया में जहाँ भी आज हैं, वहां जंगल बचे हुए हैं, पर्यावरण का नुकसान लगभग नहीं हुआ है। कहीं हुआ भी है, तो वह सरकार व कम्पनियों द्वारा अदूरदर्शी संसाधनों के दोहन के कारण। आप भी इसपर चिंतन कीजिये और आदिवासी जीवन-मूल्य से मुख़ातिब होने का प्रयास कीजिये, फिर तय कीजिये अपने विकास की परिभाषा व मॉडल।
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