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कृषि और किसान

कृषि प्रधान देश की उपाधि से विभूषित देश कही न हो जाये किसान विहीन देश की उपाधि से विभूषित

सनातन से ही भारत देश को एक कृषि प्रधान देश के रूप में जाना जाता हैं।और भारत देश को विश्वगुरु की उपाधि से विभूषित कराने में भारत देश के अन्नदाताओं का सबसे अहम योगदान रहा हैं क्योंकि भारत देश के अन्नदाताओं द्वारा भारतभूमि पर दिन रात मेहनत करके फसलरूपी सोना पैदा किया जाता हैं जिस कारण भारत देश “सोने की चिड़िया” के नाम से भी प्रसिद्ध था।

और यही कारण रहा कि अंग्रेजो ने “सोने की चिड़िया” के नाम से प्रसिद्ध हमारे देश भारत में आकर अपने व्यापार स्थापित किये और हमारे देश को कई सालों तक गुलाम बनाये रखा किन्तु गुलामी के समय भी हमारे देश के अन्नदाताओं द्वारा बिना किसी सुख-सुविधाओं के अत्यंत मुसीबतों का सामना करते हुए भी अच्छी फसलें पैदा की जाती रही।

इसलिए स्वतंत्रता के बाद विपक्ष की भूमिका में रहने वाली देश की हर राजनैतिक पार्टी द्वारा किसानों के हित की बात पूरी ताकत के साथ की गई और सत्ता का सुख भोग रही हर राजनैतिक पार्टी द्वारा किसानों के हित में कई सैकड़ो योजनाओं का क्रियान्वयन भी पूरी दृढ़ता साथ किया गया।लेकिन इन सबके बाबजूद भारत देश के अन्नदाताओं की हालत दशक दर दशक अत्यंत दयनीय होती गई।

और देश की प्रत्येक राजनैतिक पार्टी द्वारा पूरी बुलंदी के साथ किसानों के हित की लड़ाई लड़ने के बाद भी आलम यह हैं कि देश के लगभग 80 प्रतिशत अन्नदाता या तो शहर में काम करने को या फिर किसी की दिहाड़ी पर नौकरी करने को अथवा असमय काल के गराल में जाने को मजबूर हैं।

तब इस स्थिति में निश्चित रूप से यह चिंतनीय हैं,कि यदि इसी प्रकार से देश की प्रत्येक राजनैतिक पार्टी किसानों के हितों की लड़ाई लड़ती रही, तो एक समय विश्वपटल पर कृषि प्रधान देश की उपाधि से विभूषित होने वाला भारत देश किसान विहीन देश की उपाधि से विभूषित न हो जाये।

“शेष क्षम्य”
एड. नवीन बिलैया(निक्की भैया)
सामाजिक एवं लोकतांत्रिक लेखक
मो.:- 9806074898

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