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क्रांति

एक ऐसा दौर जहां,
हर ओर कुतर्क जीतता दिख रहा हो
मरोरती अतरियां अब सवाल नही करती
अमनो-इत्तिहाद कासर जमीं में धस गई हैं
ऐसे मानो लोग जुटे हों
उसे जमींदोज़ करने में
और
ना जाने कितनों के घरों से छत
ढाह देती हैं, उम्मीदों के वो सारी दीवार
जो साल दर साल भर दिए गए थे
गुल्लकों की खनखनाहट ने
जिन्हें और मजबूत किए थे
एक लैम्प जलता रहता है
जो गवाह है कि जिंदा हो तुम
और जिंदा है
वो चंद उम्मीदें जो
प्रतिरोध बन रही हैं
तुम्हे एक चलती ठंडे लाश बनने से,
मौत और चीखों के दरम्यान
फासला बहुत है
ये हुक्मरानों के ज़ुल्म
पुलिस की लाठियाँ
क्रांति नही रोक पाएगी

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