16 दिसंबर की सर्द रात जब निर्भया पर हुए जुल्म ने देश को सड़कों पर लाकर खड़ा कर दिया था आज 8 साल बाद भी निर्भया इंसाफ माँग रही है।
आज फिर हैदराबाद की निर्भया दरिंदो की हैवानियत का शिकार हुई ।
क्योंकि कुछ नहीं बदला आज भी देश मे सैकड़ो निर्भया दरिन्दों की जुल्म का शिकार हो रही है मैंने अपनी कविता के माध्यम से निर्भया के सवालों को आप सब तक लाने का प्रयास किया है …
आखिर कब तक हिंदुस्तान में बेटियों के साथ दुष्कर्म होते रहेंगे ? कब तक बेटियां इन वहशी दरिन्दों का शिकार बनती रहेगी ? कब तक बस ऐसी खबरें न्यूज़ चैनल और अखबारों की सुर्खियां बन कर भुला दी जाएंगी कब तक ??? क्यों हिंदुस्तान की बेटियाँ सुरक्षित नही. कितनी ही निर्भया रोज दुष्कर्म का शिकार हो रही है इससे अच्छा है कि बेटियों को हिंदुस्तान में जन्म ही ना लेने दिया जाए.
“आसमान में बैठी निर्भया …
पूछ रही बस यही सवाल …
भारत की बेटियों तुम बतलाओ
कितना बदला हिंदुस्तान …
मेरे पर जो जुल्म हुआ तो …
सड़कों पर था हिंदुस्तान .
कहते थे सब अब ना होगी …
कोई बेटी यूँ कुर्बान ..
सुन दीदी की बात बेटियों की आँखें भर आयी ..
बोली दीदी क्या बोलूं ?
फिर तुम्हारी कहानी याद आयी ..!
ना जाने कितने दरिंदे थे .
याद करके भी सहर जाती हूँ .
चोट पहुंची है इतनी मन को …
अब खुद से भी डर जाती हूँ..
माँ की गोदी में खेली मैं .
जन्नत में मेरा जन्म हुआ …
पर समझा ना पाऊँगी दीदी में .
जो मेरे साथ कुकर्म हुआ ..
बोली निर्भया चुप हो गुड़िया .
तेरे जख्म ना मैं देख पाऊँगी .
जो तूने सहा वो मैंने सहा .
मरहम भी ना दे पाऊँगी ..
था सुकून अब तक मुझको .
जब मेरे कातिलों को सज़ा मिली .
पर देख दुबारा तेरी दशा .
तेरी दीदी अंदर तक है हिली .
फिर एक बार उन जख्मों का .
दर्द मैंने महसूस किया ..
मेरी बहना अफसोस ना कर ..
हिंदुस्तान में जन्म लेने की
यही है सज़ा
सुबह उठी जब आंखे खोली ..
अपने मुख से वो कुछ ना बोली
आँसू आंखों से बह निकले .
जख्मों से फिर रक्त है निकलें..
भरे नहीं वो जिस्म के घाव..
जिन्होंने किया बहुत आघात ..
सर्द रात अब भी तड़पाती ..
16 दिसंबर देख डर जाती ..
सड़को पर था पूरा हिंदुस्तान
हर कोई कर रहा था इंसाफ की माँग ..
दिल को बहुत बहलाया था…
हर कोई उसका रखवाला था ..
सोच रही थी अब कुछ तो होगा
अब के बाद ना कोई वहशी होगा ..
पर देख आज भी आंखे भर आयीं
कितनी निर्भया सड़कों पर आयीं ..
कोई नवजात, कोई मासूम ..
कोई बेसहारा कोई दिव्यांग ..
कोई बुजुर्ग कोई सुहागिन …
हर रोज सह रही शारीरिक शोषण
वो रोज निर्भयाओं को नोंच रहे ..
हैवानियत की सीमाओं को तोड़ रहे ..
सबसे निर्भया अब पूछ रही ..
क्या इंसाफ में कोई चूक रही …
क्या हुआ उन आंदोलनों का ..
जब निर्भया की आवाज
देश मे गूंज रही ..
हाथों में पोस्टर , कैंडल लिए
सड़को पर रातों को जो जागे थे ..
मुझे इंसाफ दिलाने को
तुम घर छोड़कर दिल्ली भागे थे …
फिर अब क्यों तुम सब सोए हो ..
क्यों अपनी दुनिया मे खोए हो …
कितनी निर्भया अब चीख रहीं ..
इंसाफ की आस में सिसक रहीं ..
क्यों अब तुम नहीं चिल्लाते हो ..
क्यों निर्भयाओं को देखकर मुड़ जाते हो ..
सबसे कर रही .. एक ही सवाल
क्या निर्भया को मिलेगा कभी इंसाफ ?
अन्तिमा सिंह