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सरकार_की_नाकामियों_का_धुआं

Jagran_Institute. Ranu Mishra✍️

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दिल्ली:एनसीआर के इलाकों में हवा का स्तर जानलेवा होने के बावजूद भी पहचाने गए कारणों से निपटने को लेकर सबंधित सरकारें जो लापरवाही बरत रहीं हैं उससे यही लगता है कि उन्हें इस बेहद गंभीर संकट की कोई फ़िक्र ही नहीं है।
दरअसल पिछले कुछ सालों में धान की फ़सल तैयार और उसके अवशेष के रूप में यानी कि पराली से निजात पाने की अबधि जिस तरह से बदली है और उससे जो समस्या उत्पन हुई है उस पर गौर करने की बजाह सरकारों ने इस पर व्यापक अंनदेखियां की हैं।अगर फसल तैयार होने और कटने का समय ख़त्म हुआ है हवा के बहाव की वजह से पराली जलाना अब एक बड़ी समस्या बन गयी है।लेकिन इसकी पहचान कर एवँ विश्लेषण कर एवँ इस समस्या का रास्ता निकालना किसकी जवाबदेही है?.
पराली जलाना किसानों की मजबूरी है लेकिन सरकारों को कोई ठोस योजना पर काम काम करना चाहिए,जिससे इस समस्या का सामना किया जा सके।
अब सवाल यह है कि’अगर कई सालों से इस समस्या के हालात वैसे ही बने हुए है।तो इस प्रकरण में संबंधित राज्यों की सरकारों ने अब तक कोई ठोस कदम क्यों नही उठाये ?.
और अगर आज देश की सर्वोच्च अदालत से इन सरकारों को जो फटकार खानी पड़ी तो इसमें गलत क्या है?.
हालांकि ऐसा नही है कि दिल्ली या पूरे एनसीआर में प्रदूषण की समस्या अकेले पराली ही है।
वाहनों,एयरकंडीशनर,नवनिर्माण,आदि से निकलने वाला काला धुँआ भी प्रदूषण की समस्या है लेकिन हवा बिगड़ने के तथ्य पराली के प्रदूषण के शोर में दब जाते हैं। आज जरूरत है इस गंभीर संकट की अनदेखी के बजाय एक व्यापक कार्ययोजना के तहत काम किया जाए जिससे प्रदूषण से निजात मिल सके।नहीं तो सरकार की नाकामियों का धुंआ ऐसे ही देखने को मिलता रहेगा।।

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