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सिर्फ इश्क़ नहीं मैंने इश्क़बाज़ियां लिखीं…

सिरहाने बैठ के तेरा बालों को सहलाना,
खुद ही रूठना फिर खुद को ही बहलाना
तेरी ही यादें और तेरी बदमाशियां लिखीं
सिर्फ इश्क नहीं मैंने इश्कबाज़ियाँ लिखीं..

झुकी-झुकी नज़रों, ख़ामोश लबों वाली लड़की,
खिली सुबह जैसी शर्मीली सांवली सी लड़की,
बस उसी के नाम कलम ने कहानियां लिखीं
सिर्फ इश्क़ नहीं, मैंने इश्क़बाज़ियाँ लिखीं…

पाकीज़ा मोहब्बत की दास्ताँ अपनी ज़ुबानी लिखी,
तुम्हारी हर अदा पर मैंने एक कहानी लिखी
तड़प, बेचैनी, आंसू, में सिमटी निशानियाँ लिखी,
सिर्फ इश्क नहीं, मैंने इश्कबाज़ियाँ लिखीं…

मसरूफ़ियत में मेरी, अपने शक को रखना
बेवजह हर बात पे, अपने हक़ को रखना
हिम्मत करके मैंने, तेरी कमज़ोरियाँ लिखीं
सिर्फ इश्क नहीं मैंने इश्कबाज़ियाँ लिखीं…

दोनों की पहली चाहत थी, दोनों टूटकर मिला करते थे,
वो वादे लिखा करती थी, हम कसमें लिखा करते थे
आईने में जब देखा वो मेरी आँखों में दिखी
सिर्फ इश्क नहीं, मैंने इश्कबाज़ियाँ लिखी..

प्यार के एहसास की अनगिनत कहानियां लिखीं,
तुम्हारी बातें, तुम्हारी अदाएं, और नादानियां लिखीं
था तुमसे इश्क, है तुमसे इश्क, रहेगा तुम्हीं से इश्क
इसीलिए सिर्फ इश्क नहीं मैंने इश्क़बाज़ियाँ लिखीं..

पलकों से गिर जाने को बेताब आंसू की कहानी लिखी,
सांसों में समाई इश्क़ की दास्ताँ अपनी ज़ुबानी लिखी
तुम्हारी बातों और यादों की मैंने निशानियाँ लिखीं
सिर्फ इश्क़ नहीं मैंने इश्कबाज़ियाँ लिखीं…

तुम्हारा गुस्सा, तुम्हारा रूठना, तुम्हारा मुझे देख कर मुस्कुराना
तुम्हारी ही कहानियां लिखीं, सिर्फ इश्क़ नहीं मैंने इश्क़बाज़ियां लिखीं

ख़्वाबों में पास हकीकत में दूर रही तुम
एक अजीब से गुरूर में मगरूर रही तुम
उन्हीं किस्सों की अनकही कहानियां लिखीं
सिर्फ इश्क नहीं मैंने इश्कबाज़ियाँ लिखीं।

 

-चन्द्रकान्त शुक्ला गौरव, पत्रकार

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