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हर साल आने वाले 14 नवम्बर को हम ‘हैप्पी चिल्ड्रेन्स डे’ बोलकर निकल लेते हैं

किसी भी विशेष तिथि के आगे हैप्पी लिख के निकल लेना एक ट्रेंड से हो गया है , लेकिन क्या सही मायने में इससे कुछ फ़र्क पड़ता है ?
सड़क पर , मॉल के बाहर , रेड लाइट पर या हर उस भीड़ में जहां हम अपने शौक की नुमाइश करने जाते हैं , वहीं कुछ लड़के हाथ फैलाये खड़े मिलते हैं , कोई गुब्बारा बेच रहा है तो कोई फूल लिए तरसती निगाहों से हमे देखता है -भइया एक फूल ले लो प्लीज ।
और सही मायने में हमे इससे किसी भी तरह का कोई फर्क नही पड़ता ।
बच्चे देश का भविष्य हैं , लेकिन इस परिस्थिति में देश का विकास संदेहास्पद है ।
सरकारी शिक्षा की दीवार राम-भरोसे टिकी हुई है , मानक अनुसार न ही दीवारें हैं और न ही पढ़ाने के लिए शिक्षक । हाल ही में हुए सर्वे के अनुसार भारत भुखमरी के स्थिति में 102 पायदान पर है जिसमे सबसे अधिक प्रभावित बच्चे ही हैं । हर साल आने वाले 14 नवम्बर को हम ‘हैप्पी चिल्ड्रेन्स डे’ बोलकर निकल लेते हैं , लेकिन क्या हम सही में उनके विकास के लिए कुछ करते भी हैं ? हमारे घर – मुहहले में ऐसे न जाने कितने बच्चे होंगे जिनकी मदद हम अपनी सुविधाओं में रहते हुए कर सकते हैं , किसी एक को बेहतर शिक्षा दे सकते हैं , लेकिन हम ऐसा नही कर पाते और शिकायत का हिस्सा बन के रह जाते हैं बस ।
लेकिन यह वक्त है बदलाव का , हमारे मूल कर्तव्य का , आगे बढ़ने का और खुद को जिम्मेदार साबित करने का ।
आइये इस बाल दिवस से किसी भी एक बच्चे की जिंदगी बनाने का संकल्प लेते हैं ।
और तब बोलेंगे -हैप्पी चिल्ड्रेन्स डे

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