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“अयोध्या पर 134 साल पुराना एक फैसला, जिसमें हिंदू-मुस्लिम दोनों पक्ष साथ खड़ा था”

आज सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया है और हिंदू पक्ष को बाबरी मस्जिद की गुंबद की जगह मिली है। इसके साथ ही फैसले में मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ उपयुक्त ज़मीन देने को कहा गया है।

यह फैसला वास्तव में काफी श्रम, संघर्ष, मंथन और प्रयासों के बाद आया है। हमें इसका सम्मान करना चाहिए। किन्तु सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों ने जो फैसला आज दिया है, उस तरह का फैसला तो 134 वर्ष पूर्व दो व्यक्तियों ने ही आपस में कर लिया था, जिसे अंग्रेज़ों ने देश के लिए कोढ़ बना दिया था। तब के फैसले का यह 360 डिग्री का घुमाव है।

क्या था फैसला

1885 में अयोध्या में अमीर अली और बाबा रामचरण दास ने यही फैसला लिया था। इनके फैसले के अनुसार, जन्मस्थान को स्थानीय मुस्लिम  सर्वसम्मति से हिंदुओं को देने को तैयार थे। किन्तु अंग्रेज़ों को यह पसन्द नहीं आया। कारण इससे हिन्दू-मुस्लिम एक साथ मिलकर रहने लगते। अंग्रेज़ों ने चाल चली, दोनों को एक पेड़ पर लटकाकर सार्वजनिक तौर पर फांसी दे दी। इसके बाद दोनों समुदाय के लोग उस पेड़ की पूजा करने लगे। इससे अंग्रेज़ चीढ़ गए और उस पेड़ को भी कटवा दिया।

क्यों मुस्लिमों ने हिंदुओं को ज़मीन देने की कही थी बात

1857 के युद्ध के समय मुगल शासक बहादुर शाह ज़फर को भारत के सम्राट के रूप में फिर से स्थापित करने और अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए मुस्लिम, हिंदुओं को साथ लाने की कोशिश कर रहे थे। इसी क्रम में उस वक्त अमीर अली ने स्थानीय मुस्लिमों को जन्मस्थान की जगह हिंदुओं को देने के लिए मना लिया था।

अपील: ना कोई जीता, ना कोई हारा। यह मानकर शांत रहिए। शांति आवश्यक है। विवाद अपनी जगह है।

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