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“मंदिर-मस्जिद की लड़ाई में अर्थव्यवस्था पर कौन बात करता है भला?”

“मंदिर वहीं बनेगा”, यह लाइन भगवान राम की तस्वीर के साथ फेसबुक, व्हॉटसऐप्प से लेकर ट्विटर पर छाई हुई थी। वजह, अयोध्या की विवादित ज़मीन को लेकर आया देश की सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला। 

दशकों पुराने इस मामले का फैसला आते ही पूरे देश में उत्सव का माहौल हो गया। ऐसा लगने लगा जैसे मंदिर निर्माण से ही देश के अच्छे दिन आने की उम्मीद है। हर तरफ राम नाम की गूंज है और इसी गूंज के बीच एक बार फिर भारतीय अर्थव्यवस्था पर मूडीज़ की रेटिंग और किसानों की आत्महत्या जैसे अहम मुद्दे ठंडे बस्ते में चले जाएंगे।

क्या मंदिर निर्माण करके अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाएगी सरकार?

ऐसा लगता है मानो भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का सपना अब सरकार मंदिर निर्माण करके पूरा करेगी। चीन से मुकाबला भी इसी मंदिर निर्माण की राह तक रहा था। ऐसे में इस भक्तिमय माहौल के बीच अर्थव्यवस्था की बात करना बेहद ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने भारत की रेटिंग नकारात्मक कर दी है। 

इससे पहले आईएमएफ भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर चिंता ज़ाहिर कर चुका है। इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की वृद्धि दर को 7.3 से घटाकर 6.1 कर दिया है और हर बार की तरह इस बार भी हमारी सरकार का एक ही तर्क है, “चिंता की बात नहीं है, भारत अब भी सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है”, क्योंकि फिल्में 100 करोड़ की कमाई कर रही हैं।

मजबूर किसानों का आंकड़ा गायब

हालांकि सरकार की इस बढ़ती अर्थव्यवस्था में नौकरी जाने के डर से जी रहे लोगों और कर्ज़ के बोझ में दबे आत्महत्या को मजबूर किसानों के आगे बढ़ने का कोई आंकड़ा नहीं दिखाई देता है।

यह मुद्दा सिर्फ अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं है। बात-बात पर भारत की तरक्की की तुलना पाकिस्तान से करने वाले देशभक्तों ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रैंकिग को भी शायद नज़रअंदाज़ कर दिया है। 

भूख तथा कुपोषण से लड़ने में नाकाम भारत 55वें पायदान से खिसककर 102वें स्थान पर पहुंच गया है और इस विश्व रैंकिंग में भारत अपने तीन पड़ोसी देशों- नेपाल, बांग्लादेश, यहां तक कि मंदी की मार झेल रहे पाकिस्तान से भी पीछे है।

आतंकवाद आज भी कायम

पाकिस्तान से मुकाबले की बात है तो अब ज़रा कश्मीर की बात भी कर ली जाए। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में ताल ठोककर सबकुछ सामान्य होने की बात करने वाली सरकार की तरफ से वहां ट्रक चालकों की हत्या पर निंदा के अलावा कोई बयान नहीं सुनाई दिए हैं। 

कश्मीर से धारा 370 हटाते हुए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने आतंकवाद की कमर तोड़ने की बात कही थी लेकिन 2 महीने के शटडाउन में ढील के बाद आतंकियों ने ट्रक चालकों को निशाना बनाकर सबकुछ सामान्य ना होने का संदेश दे दिया।

एक तरफ अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पीएम मोदी ने उसी शाम देश को संबोधित किया। वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रीलियन डॉलर पहुंचाने का सपना देखने वाले पीएम मोदी मूडीज़ की रेटिंग और आईएमएफ की चिंता पर चुप रहें। 

इतना ही नहीं, देश के किसानों की आत्महत्या पर आश्वासन देने के लिए भी पीएम आगे नहीं आए। कश्मीर से धारा 370 हटाने को पटेल का सपना पूरा होने का दावा करने वाले पीएम मोदी ट्रक चालकों की हत्या के बाद उनके परिवार वालों के दुख में शामिल होते नहीं दिखाई दिए।

मंदिर-मस्जिद ज़्यादा ज़रूरी 

आस्था और धर्म अपनी जगह है लेकिन इनमें उलझा भारत क्या कभी असल मुद्दों के लिए आवाज़ उठा पाएगा? शायद नहीं, क्योंकि भावनाओं में जीने वाले हम भारतवासियों के लिए बढ़ती अर्थव्यवस्था से ज़्यादा ज़रूरी है मंदिर-मस्जिद का मुद्दा।

हमें यह समझने की ज़रूरत है कि देश में चाहे जितने भी मंदिर-मस्जिद बन जाए उससे किसी का पेट नहीं भर सकता। देश की अर्थव्यवस्था चाहे कितनी भी तेज़ी से बढ़े लेकिन इस देश का किसान अगर आत्महत्या को मजबूर है तो वहां की अर्थव्यवस्था मज़बूत नहीं है। 

ये मंदिर और मस्जिद किसान तथा भूखे पेट सो रहे इंसानों की लाश पर बने हैं, जिसे किसी भी धर्म का भगवान चाहे राम हो या रहीम स्वीकार नहीं कर सकता।

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