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‘बाला’ देखकर आप ही तय करें कि खुद को प्यार करना है या नकारना है

इंसान की एक अजीब फितरत है, वह है खुद से कभी संतुष्ट ना होना। यह असंतुष्टि कभी अपनी चीज़ों को लेकर होती है तो कभी अपनी कमियों को लेकर। हम अगर काले हैं तो गोरा होना है, गोरें हैं तो हमें तीखे नैन-नक्श चाहिए, छोटे हैं तो हमें लंबा होना है, लंबे हैं तो पतला भी होना है, पतले हैं तो सिक्स पैक भी चाहिए। वगैरह-वगैरह।

ये फेहरिस्त लंबी है, इंसान की ख्वाहिशों की तरह। इंसान यह भूल जाता है कि कोई भी 100 फीसदी खरा नहीं हो सकता। फिर भी वह अपनी खामियों को छिपाता फिरता है। इंसान की इसी फितरत को अपनी फिल्म बाला में बखूबी दिखाया है निर्देशक अमर कौशिक ने। अमर वही हैं जिन्होंने 2018 में राजकुमार राव को लेकर स्त्री बनाई थी, जो बॉक्स ऑफिस पर सफल रही थी।

बाला फिल्म के किरदारों की कहानी

बाला फिल्म के दो अहम किरदार अपनी शारीरिक बनावट और कमियों के कारण लोगों के ताने सुनने को मजबूर हैं, पर एक किरदार अपनी कमियों को स्वीकार करता है और उसे छिपाता नहीं है, वहीं दूसरा किरदार लोग क्या कहेंगे, इस बात की ज़्यादा परवाह करता है।

बाला कहानी है बाल मुकुंद शर्मा (आयुष्मान खुराना) की। बचपन में लंबे, घने बालों की वजह से जिनका नाम लोग बाला रख देते हैं। बाला भी इन्हीं बालों को अपनी सबसे कीमती चीज़ समझ इतराए हुए फिरते हैं। मगर वह कहते हैं ना कि वक्त एक जैसा नहीं रहता है, वह हमेशा बदलता रहता है,  तो उसी तरह  बाला का भी वक्त  बदल जाता है।

25 की उम्र में पहुंचते-पहुंचते उनके 45 फीसद बाल उनका साथ छोड़ जाते हैं। झड़ते बालों के संग उनका कॉन्फिडेंस भी धीरे-धीरे झड़ने लगता है। जिन बालों के चलते सब उनकी तारीफों के कसीदे कसते थे, अब वही उनके उपहास का कारण बन जाते हैं।

गंजेपन के कारण उनकी बचपन की गर्लफ्रेंड उन्हें छोड़ कर चली जाती है, नौकरी में डिमोशन मिलता है, उनकी शादी नहीं हो पाती है। ऐसे में बचे बालों काे बचाने और गिरे बालों को फिर से उगाने के लिए बाला सैकड़ों नुस्खे अपनाते हैं मगर गिरे बाल भला फिर कैसे आते।

फिल्म का सस्पेंस

बाल मुकुंद शर्मा (आयुष्मान खुराना) की बचपन की दोस्त लतिका (भूमि पेडनेकर) उसे कई बार आइना दिखाने की कोशिश करती है, मगर वह लतिका से चिढ़ता है। पेशे से वकील लतिका काले रंग के कारण नकारी जाती रही है मगर उसने कभी खुद को हीन महसूस नहीं किया जैसा बाला करता है।

हर तरह से हताश होने के बाद बाला अपने पिता (सौरभ शुक्ला) द्वारा लाया हुआ विग पहनता है, तो उसका आत्मविश्वास लौटता है। उसी कॉन्फिडेंस के बल पर वह टिक-टॉक स्टार परी (यामी गौतम) से अपने प्यार का इज़हार करता है। बात शादी की मंज़िल तक पहुंचती है, मगर परी से बाला अपने गंजेपन की बात छिपा जाता है।

ऐसे में उनकी शादी तो होती है पर ज़्यादा दिन नहीं टिकती। क्या बाला के बाल और उनका कॉन्फिडेंस लौटेंगे? यही फिल्म का सस्पेंस है।

फिल्म देती है खूबसूरत संदेश

कहानी में कानपुरिया एक्सेंट किरदारों को मज़ेदार बनाता है। फिल्म एक खूबसूरत संदेश देने में सफल रहती है। लेखक नीरेन भट्ट के ‘हेयर लॉस नहीं आइडेंटिटी लॉस हो रहा है हमारा’ जैसे वन लाइनर्स हंसाने में कामयाब रहते हैं।

एक बार फिर आयुष्मान खुराना ने शानदार और जानदार अभिनय से साबित कर दिया कि वो हर तरह की भूमिकाएं करने में सक्षम हैं। अभिनेता के रूप में गंजे किरदार को चुनना उनकी इमेज के लिए रिस्की भी हो सकता था मगर उन्होंने ना केवल उसे चुनने का साहस किया बल्कि उस भूमिका में छा गए।

भूमि ने भी चैलेंजिंग काम किया पर उनका मेकअप कहीं-कहीं बनावटी लगता है। यामी गौतम ने स्मॉल टाउन टिक-टॉक स्टार की भूमिका और उनकी मानसिकता का सशक्त चित्रण किया है। वह खूबसूरत भी बला की लगी हैं।

सहयोगी भूमिकाओं में सौरभ शुक्ला, जावेद जाफरी, सीमा पाहवा, दीपिका चिखलिया और अभिषेक बैनर्जी ने जमकर मनोरंजन किया है। हालांकि जावेद जाफरी जैसे टैलेंटेड एक्टर को फिल्म में बेहद कम यूज़ किया गया।

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