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कैसे झारखंड में आदिवासियों को बांस की खेती से मिल रहें हैं रोज़गार के अवसर

बांस की खेती

बांस की खेती

हरा सोना के नाम से मशहूर बांस की खेती सदैव फायदे का सौदा साबित हुई है। यह वह फसल है जो बंजर ज़मीन को भी उपजाऊ बना देती है। 18 सितंबर को विश्व बांस दिवस मनाया जाता है। इसे पृथ्वी पर सबसे टिकाउ मेटेरियल माना जाता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि अन्य वनस्पतियों की तुलना में बांस में ऑक्सीजन की मात्रा 35 प्रतिशत अधिक है। बांस के माध्यम से टिकाउ विकास एवं हरित भारत की परिकल्पना को भी साकार किया जा रहा है। यह संसार का एकमात्र पौधा है जो किसी भी वातावरण में तेज़ी से उन्नति करता है।

अपने इसी गुण के कारण इसे उन्नति का प्रतीक और समृद्धि देने वाला पौधा माना जाता है। फेंगशुई में बांस के पौधे को दिव्य पौधा कहा जाता है। भारतीय समाज में भी बांस को शुभ माना गया है।

भारत के जिन राज्यों में बांस का सबसे अधिक उत्पादन होता है, उनमें झारखंड भी प्रमुख है। आदिवासी बहुल यह राज्य वनों से घिरा हुआ है। इंडिया स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 23,478 वर्ग किमी में वन फैला हुआ है।

झारखंड सरकार की योजना है कि बांस के उत्पाद से आदिवासियों की जीवन शैली में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। इसके लिए राज्य सरकार कई योजनाओं पर काम कर रही है।

एक तरफ जहां बांस का उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर कारीगरों को हुनरमंद बनाकर स्वरोजगार के लिए प्रेरित भी किया जा रहा है। बांस के पेड़ तीन साल में बढ़ते हैं, उसका विकास तेज़ी से होता है।

दुमका में बांस कारीगर मेले का आयोजन

दुमका में बांस मेले का आयोजन।

आज झारखंड में पैदा होने वाले बांस की मांग पूरे विश्व में बढ़ी है। इसी मांग को देखते हुए झारखंड सरकार की ओर से पहली बार उपराजधानी दुमका में बांस कारीगर मेला 2019 का दो दिवसीय आयोजन किया गया।

बांस कारीगर मेला 2019 में देशभर से दस हज़ार कारीगर दुमका में एकजुट हुए थे, जिन्हें प्रशिक्षण के साथ टिकाउ विकास के बारे में बताया गया। देशभर के निवेशकों को बांस आधारित उद्योग के बारे में बांस कारीगर मेला में बताया गया।

बांस कारीगर मेले में आईकिया, टाईफेड, फैब इंडिया, ईसाफ सहित असम, त्रिपुरा, दिल्ली और मेघालय जैसे कई राज्यों से तमाम संगठन शामिल हुए थे।

झारखंड में कारीगर मेला का आयोजन मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उघम विकास बोर्ड, उद्योग विभाग, झारखंड राज्य बंबू मिशन, झारक्राफ्ट और जेएसएलपीएस द्वारा मिलकर किया गया। झारखंड में इससे पहले मोमेंटम झारखंड का भी आयोजन किया जा चुका है।

संताल परगना में बढ़ रहा है बांस का उत्पादन

राज्य के प्रत्येक ज़िले में बांस बहुतायत मात्रा में पाया जाता है, जिससे रोज़गार की संभावना बढ़ी है। राज्य में बांस के क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं, कृषि से लेकर उर्जा के वैक्ल्पिक स्त्रोत की संभावना बनी है। बांस आधारित सामानों के उत्पादन के विपणन की समस्या नहीं है।

गैर सरकारी संस्था ईसाफ के अजित सेन बताते हैं,

राज्य के सभी ज़िलों में बांस का उत्पादन होता आ रहा है। संताल परगना में सर्वाधिक बांस का उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड, दुमका, जामताड़ा, जमशेदपुर, हज़ारीबाग, खुंटी, गुमला और रांची रामगढ़ ज़िले में बहुतायत मात्रा में बांस उपलब्ध है।

वह आगे बताते हैं कि मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उघम विकास बोर्ड द्वारा कारीगरों के क्लस्टर बनाकर उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है। एक क्लस्टर में लगभग दो सौ कारीगर होते हैं, राज्य में लगभ हज़ार क्लस्टर बन चुके हैं।

कारीगरों के लिए प्रोडयूसर ग्रुप भी बना है। कारीगरों को दक्ष करने के उद्देश्य से उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाता है। खास बात यह है कि झारखंड में बांस से बने उत्पादों की मांग यूरोप और मिडिल ईस्ट में होने लगी है।

मनरेगा अंर्तगत बांस के प्लांट्स लगाए जाएंगे

बांस उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए कारीगरों को आधुनिक तरीके सिखाए जा रहे हैं ताकि उन्हें अधिक से अधिक रोज़गार मिल सके। बांस के कारीगर संतोष मोहली, काशीनाथ मोहली, जोसेफ मोहली, बबिता कुमारी और मार्शिला हेम्ब्रम का कहना है कि वे प्रति माह दस हज़ार रूपये इस रोज़गार से कमा लेती हैं।

झारखंड में गरीबों की आय बढ़ाने की दिशा में सरकार प्रयासरत है। कारीगरों को प्रशिक्षित कर कई नए प्रकार के उत्पाद बनने लगे हैं। सहायक उद्योग निदेशक सुधीर कुमार सिंह बताते हैं,

बांस कारीगर मेला 2019 के आयोजन के बाद इस क्षेत्र में राज्य का नाम और बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि इस मेले में बिज़नेस डेलिगेशन की टीम भी आ रही हैं, जिससे कारीगरों को लाभ मिलेगा।

उन्होंने आगे कहा,

नैशनल बंबू मिशन बांस की खेती के लिए पीपी मोड और मनरेगा अंर्तगत बांस के प्लांट्स लगाएगा। झारखंड के आदिवासी अब रोज़गार के लिए बंगाल पलायन नहीं करेंगें। बांस से उन्हें घर में ही रोज़गार उपलब्ध हो सकेगा।

झारखंड में 2520 मिलियन टन बांस का उत्पादन होता है

राज्य में मोहली परिवारों की संख्या लाखों में है, जो परंपरागत रूप से बांस के उत्पादन टोकरी, सूप, डलिया सहित कई सामग्री वर्षों से परंपरागत रूप से बना रहे हैं और अपनी आजिविका चला रहे है। मोहली परिवारों को बंबूकाफ्ट की ओर से प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

बांस से बनाई गई चीज़ें।

मल्टीनैशनल कंपनी सामग्री खरीदने को तैयार है। बांस से बने उत्पादों जैसे सोफा सेट, टेबल, बैग और दैनिक उपयोग की कलात्मक सामग्रियों की मांगें हाल के दिनों में काफी बढ़ी हैं, जिससे इनका विश्व व्यापार भी बढ़ा है।

झारखंड में 4470 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में 2520 मिलियन टन बांस का उत्पादन होता है। पूरे देश का आधा बांस झारखंड में पाया जाता है। यहां के बंबुसा टुलडा, बंबुसा नूतनस और बंबुसा बालकोआ की मांग विश्व भर में है।

बंबू क्राफ्ट राज्य का प्रमुख उद्योग बन चुका है। लगभग 500 प्रकार के बांस के उत्पाद बन रहे हैं, जो अन्य प्रदेशों में भेजे जा रहे हैं, जिससे 50 लाखों की आय प्रतिवर्ष सरकार को हो रही है। उद्योग विभाग के सचिव के. रवि कुमार बताते हैं,

झारखंड सरकार वर्ष 2022 तक ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों को गरीबी से मुक्त कर उनकी आय दोगुनी करने जा रही है। वन आधारित उत्पादों के माध्यम से लोगों को रोज़गार मुहैया कराने की दिशा में प्रयास किए जा रहे है। राष्ट्रीय बांस मिशन और झारखंड राज्य बांस मिशन के प्रयास से बांस के उत्पादन, लघु एवं कुटीर उघम एवं हस्त शिल्प को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है।

किसानों के जीवन स्तर में हरित भारत, सतत एवं टिकाउ विकास की संकल्पना के माध्यम से बांस आधारित उधोग से रोज़गार की दिशा में सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं।

नोट: YKA यूज़र शैलेन्द्र सिन्हा द्वारा यह लेख इससे पहले वॉटर पोर्टल पर प्रकाशित किया जा चुका है। शैलेन्द्र झारखंड की उपराजधानी दुमका में पिछले 18 वर्षों से स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं।

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