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“वंशवाद की विरोधी भाजपा खुद बन रही है वंशवाद का उदाहरण”

अकसर भाजपा के नेता काँग्रेस की आलोचना करते हुए एक चीज़ समान रूप से कहते हैं कि काँग्रेस परिवारवादी पार्टी है, जो कि एक सच है। पर ऐसा कहने से पहले क्या भाजपा को अपना दामन नहीं देखना चाहिए?

काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, बेटे राहुल गाँधी ( पूर्व अध्यक्ष) तथा बेटी प्रियंका गाँधी वाड्रा (पार्टी की महासचिव) के साथ।

परिवारवाद का मतलब अगर भाजपा की नज़र में यह है कि पार्टी प्रेसीडेंट और सरकार में मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का पद एक ही परिवार के लोगों को मिलना चाहिए तो उन्हें इसकी अधूरी जानकारी है।

आज भाजपा भी खुद को परिवारवाद से अलग नहीं कर पा रही है।

परिवारवादियो के साथ गठबंधन में भाजपा

भाजपा का पंजाब में अकाली दल से गठबंधन है। अगर अकाली दल के इतिहास और वर्तमान को आप देखेंगे तो आप पाएंगे कि अकाली दल एक ऐसा दल था,

महाराष्ट्र के सीएम(बीजेपी) देवेंद्र फड़नवीस और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे

महाराष्ट्र में इनका गठबंधन शिवसेना के साथ है। शिवसेना को पहले बाला साहब ठाकरे चलाते थे और आज उनके बेटे उद्धव ठाकरे चला रहे हैं। आगे चलकर इसकी ज़िमेदारी उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे पर आएगी।

बिहार जाओ वहां इनका लोक जनशक्ति पार्टी से गठबंधन है जिसे इन्हीं की सरकार में मंत्री राम विलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान चलाते हैं। 2014 से पहले हरियाणा में उनका गठबंधन उनसे था जिस पर कभी भजन लाल और आज उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई राज करते हैं।

जम्मू कश्मीर की बात करें तो यह नेशनल कांफ्रेंस जो कि डॉ फ़ारूक़ अब्दुल्ला और उनके बेटे ओमर अब्दुल्लाह चलाते हैं उनके साथ भी गठबंधन कर चुके हैं।

वाजपयी जी के समय और अब मोदी जी के समय इन्होंने पीडीपी के साथ गठबंधन किया, जहां पहले मुफ्ती मोहम्मद सईद और अब उनकी बेटी मेहबूब मुफ्ती की हुकूमत है। तो खुद इनका परिवारवादियों के साथ इतने मेल-मिलाप हैं तो ये परिवारवाद के विरोधी कहां से हुए?

नेताओं की औलादों को दिए है बड़े-बड़े औहदे

वैसे तो भाजपा प्रमुख अमित शाह के बेटे जय शाह को क्रिकेट का कोई अनुभव ना होने के बावजूद बीसीसीआई में महासचिव की कुर्सी मिल गई। पर भाजपा के कई पुराने नेताओं के बच्चे आज भाजपा में बड़े-बड़े औहदे संभालकर बैठे हैं। कुछ बड़े नाम इस प्रकार हैं।

  1. जयंत सिन्हा (एविएशन मंत्री, मध्यप्रदेश), पिता का नाम यशवंत सिन्हा (भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री)।
  2. दुष्यंत सिंह (सांसद), माता का नाम वसुंधरा राजे सिंधिया (भाजपा नेता ओर पूर्व मुख्यमंत्री राजस्थान)
  3. वरुण गाँधी (सांसद), माता का नाम मेनका गांधी (भाजपा नेता और पूर्व मंत्री मोदी सरकार)
  4. पूनम महाजन (सांसद), पिता का नाम प्रमोद महाजन (भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री)
  5. राजबीर सिंह (सांसद), पिता का नाम कल्याण सिंह (भाजपा नेता और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री)

इन भाजपा नेताओं की ये लिस्ट काफी लंबी है। इतनी लंबी की सभी का नाम लिखा नहीं जा सकता है।

पिछले साल मध्य प्रदेश के चुनावों में भाजपा ने 40 ऐसे लोगों को टिकट दी थी, जो किसी ना किसी बड़े भाजपाई नेताओं की औलाद थीं। जिसमें खुद कैलाश विजयवर्गीय के बेटे का नाम भी था जो आज विधायक हैं।

उद्धव ठाकरे के साथ अमित शाह, फोटो साभार- सोशल मीडिया

अभी महाराष्ट्र के चुनाव खत्म हुए हैं। जब अक्टूबर में भाजपा ने अपनी पहली लिस्ट निकाली थी, जो 125 कैंडिडेट्स की थी, तो उसमें से 25 खुद किसी भाजपाई नेताओं की ही औलादें या रिश्तेदार थे।

अभी तो यह बताना भी बाकी है कि राजनाथ सिंह जी और पंकज सिंह जी के बेटों को 2017 के उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में टिकट दिया गया था।

ये सब होने के बाद भाजपा के पास परिवारवाद का विरोध करने का क्या कोई नैतिक आधार है? वे चाहें तो इस बात का इस्तेमाल कर सकते हैं कि उनकी पार्टी का अध्यक्ष आज तक कोई परिवारवादी नहीं बना मगर वे भी जानते हैं कि यह काफी नहीं है।

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