Site icon Youth Ki Awaaz

“मेरे जैसे कई शिक्षक पढ़ाने से ज़्यादा पास कराने की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं”

Sanjiv Verma for HT via Getty

कुछ महीनों पहले सीबीएसई 10वीं कक्षा का रिज़ल्ट आया। 91.1 प्रतिशत बच्चे सफल रहें। सब बड़े खुश हैं और होना भी चाहिए। सभी को बधाई।

अब बारी परीक्षा परिणाम के विश्लेषण की। सीबीएसई बड़ा बोर्ड बन गया है। बहुत सारी ज़िम्मेदारियां निभा रहा है। इस बीच, पिछले वर्ष इन्होंने 10वीं कक्षा के बच्चों के पास होने के लिए लिखित परीक्षा के साथ-साथ आंतरिक मूल्यांकन (internal assessment) को जोड़ने का निर्देश दिया।

सीधे-सीधे कहूं तो जो बच्चा पहले 80 में 27 नंबर लाकर पास होता था, वह अब 80 में से केवल 13 नंबर लाकर पास हो सकता है। यानि लगभग 16 प्रतिशत नंबर लेकर।

परीक्षा देने से पहले रीविज़न करती छात्राएं

सरकारी बनाम प्राइवेट स्कूल के परिणाम

मैंने दो स्कूलों के परीक्षा परिणामों को गौर से देखा।

शिक्षा विभाग के तरीकों से कम परिचित लोगों को मैं बता दूं कि आंतरिक मूल्यांकन में 20 अंक पाने का मतलब आवधिक परीक्षाओं (Periodic Tests) और असाइनमेंट्स में हर बार 100 प्रतिशत अंक पाना है।

सोचने वाली बात तो यह है कि जो बच्चा स्कूल लेवल पर हर परीक्षा और क्रियाकलाप में 100 प्रतिशत अंक लेकर गौरवान्वित करता है, वह बोर्ड परीक्षाओं में 15-20 प्रतिशत में कैसे रह जा रहा है? इसपर मंथन करने की सख्त ज़रूरत है।

अब, ताली बजाइये ऐसे बच्चों के लिए और आशीर्वाद दीजिये कि इनका भविष्य उज्ज्वल हो। अब आपको लग रहा होगा कि मुझे क्यों ईर्ष्या हो रही है, है ना?

तो साहब, मुझे और मेरे जैसे बहुत से लोगों को शिक्षा का ठेकेदार बना दिया गया है और पढ़ाने की ही नहीं, पास भी कराने की ज़िम्मेदारी दे दी गयी है। मुझे इनके पास होने पर हर्ष नहीं विषाद हो रहा है।

आखिर इनका और हमारे देश का भविष्य क्या होगा?

90 प्रतिशत वाले आज भी संघर्षरत

अब थोड़ा आगे बढ़ते हैं। ये बच्चे तो बड़े होनहार हैं। आप सोचेंगे 98-99 प्रतिशत नंबर लाने के बाद ये देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़कर विश्वस्तर पर भारत का नाम रौशन करेंगे। लेकिन नहीं, कुछ साल बाद एलटी और बीएड मोर्चे में शामिल होकर सड़क पर प्रदर्शन करते हुए दिखेंगे। फर्ज़ी मार्कशीट और पैसे देकर पेपर हल करवाकर मास्टर बनने के तरीके से आप अवश्य वाकिफ होंगे।

यहां यह बता देना आवश्यक है कि अधिकांशतः राज्य सरकार के स्कूलों में ना तो किसी के ऊपर कोई ज़िम्मेदारी है और ना ही उत्तरदेयता। ऐसे में केंद्र सरकार के अधीन स्कूल अपने अधिकारियों के सामने अच्छा बनने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। स्कूल से बना हुआ डेटा अंततः मंत्रालय तक पहुंचता है, जहां पता चलता है कि अच्छा काम चल रहा है।

जितना मुझे याद है, मेरे साथ के 60-70 प्रतिशत नंबर पाए हुए ज़्यादातर लड़के विभिन्न सरकारी नौकरियों में हैं और बाद के वर्षों में 90 से अधिक प्रतिशत पाने वाले अब भी संघर्षरत हैं।

फोटो साभार- Getty Images

कहने का तात्पर्य यह है कि नंबर तब भी मायने नहीं रखते थे, अब भी नहीं रखते पर नम्बरों के लिए भागमभाग बदस्तूर जारी है।

आप में से बहुत से लोग मुझसे सहमत नहीं होंगे लेकिन पिछले लगभग 14 वर्षों से अध्यापन के क्षेत्र में हूं और अच्छी- बुरी सब बातों से सामना हुआ है। पैसे लेकर नकल कराने से लेकर फर्ज़ी नंबर देने तक की घटिया हरकतों का साक्षी रहा हूं।

अभी कुछ दिन हुए, सीबीएसई ने स्कूलों को चिट्ठी लिखकर जवाब मांगा है कि आंतरिक मूल्यांकन और बोर्ड परीक्षा के मूल्यांकन में इतना अंतर क्यों है? देखते हैं, इसपर संस्थान और शिक्षा के ठेकेदार क्या उत्तर देते हैं।

Exit mobile version