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जमाखोरी से लेकर कालाबाज़ारी तक कमर तोड़ती महंगाई का दंश झेलता देश

घर फूटे गलियारे निकले,

आंगन गायब हो गया

शासन और प्रशासन में

अनुशासन गायब हो गया ।

त्यौहारों का गला दबाया

बदसूरत महंगाई ने।

महंगाई कहने को चार अक्षर से बनकर बना है, पर जब इस चार अक्षर की मार एक आम इंसान पर पड़ती है, तो उसकी कमर टूटती ही नहीं बल्कि चरमरा सी जाती है, क्योंकि इस चरमराहट में दंश है। उस इंसान की भावनाओं का जो दिन रात घर से दूर सिर्फ इसलिए रहता है, ताकि वह घर के सदस्यों की इच्छाओं को समय रहते पूरा कर सके।

किसान, फोटो साभार- Getty Images

आमदनी के बढ़ने के साथ-साथ महंगाई की मार भी चौगुनी

आज भले ही आदमी की आमदनी में इजाफा हो रहा है, पर महंगाई भी उसी हिसाब से अपना मुंह फैलाए उसे अपनी गिरफ्त में लेने के लिए हमेशा तैयार रहती है क्योंकि आमदनी के बढ़ने के साथ-साथ महंगाई की मार भी चौगुनी होती जा रही है।

अकसर हम हमारे माता पिता से जब भी महंगाई को लेकर चर्चा करते है तो, वह अपने ज़माने के बारे में बताते हुए कहते हैं कि पहले 10 पैसे में  बाज़ार जाने पर झोले भर की सब्जी आ जाती थी और आज 1000 रु में भी झोला भर नहीं पाता है।

तो चलिए आज जानते हैं कि देश की आज़ादी के वक्त आखिर कितनी महंगाई हुआ करती थी। बता दें कि देश को आज़ाद हुए भले ही 74 साल हो चुके हैं। मगर आर्थिक बेड़ियों में जकड़ा हुआ आम आदमी आज भी उसी तरह बेबस है, जैसा पुराने ज़माने में था।

आज़ादी से अब तक बढ़ती हुई महंगाई

आज महंगाई ने हर हद पार कर दी है। भले ही इस समय एक नौकरी पेशा व्यक्ति की मासिक आय लाखों में हो, मगर पहले की तुलना में महंगाई भी तो कई गुना बढ़ चुकी है। ऐसे में गौर किया जाए तो स्वतंत्रता के समय (1947)  ऐसी कमरतोड़ महंगाई नहीं थी। उस समय तो एक आम आदमी आराम से मेहनत मजदूरी करके अपना पेट भर सकता था। मगर अब हालात बदल चुके हैं।

उदाहरण के लिए उस वक्त में वस्तुओं की कीमत  कम थी जैसे, चावल 65 पैसे प्रति किलो, गेहूं 26 पैसे, चीनी 57 पैसे प्रति किलो हुआ करती थी। यानी घर चलाना कोई ज़्यादा मुश्किल नहीं था। एक सबसे ज़रूरी बात यह कि उस समय एक आम व्यक्ति की सैलरी भी ज़्यादा नहीं हुआ करती थी। पर फिर भी वह आराम से अपना गुज़र बसर कर सकता था।

1947 के दौर की ये कीमतें हमें भले ही चिल्लर से भी कमतर लगे, मगर हम आपको बता दें कि उस समय में भारतीय लोगों की प्रति व्यक्ति आय केवल 150 रुपये के आसपास ही होती थी और आज के इस दौर में लाखों रूपए की सैलेरी होने के बाद भी हम हाय-तौबा मचाते रहते हैं।

गौरतलब है कि भारत में महंगाई को केवल खेती से उत्पन्न वस्तुओं के दाम बढ़ने पर ही माना जाता है। जैसे दाल, सब्जी, चावल, गेहूं, आलू, प्याज, दूध इत्यादि। भारत में महंगाई लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसका कारण चीज़ों की कीमतों में बढ़ोतरी व लोगों की बचत ना करने के कारण उनकी संदूकची का खाली रह जाना है।

मंडी में किसान. फोटो साभार- Getty images

महंगाई की मार गरीब तबकों पर ज़्यादा

वैसे तो महंगाई का असर हर तबगे पर देखने को मिलता है पर इसकी सबसे ज़्यादा मार गरीबों और मध्यम वर्ग पर पड़ी, जिनका जीवन बहुत मुश्किल हो गया है।

 1947 के बाद हम अगर 1997 की बात करें तो पाएंगे की वस्तुओं पर मूल्य इस साल भी बढ़े थे। पर ये 50 साल के बाद बढ़ाई गई थी, जिनका देश की जनता पर ज़्यादा असर नहीं पड़ा था क्योंकि उस समय की सरकार को पता था कि देश अभी विकास के पथ पर अग्रसर होकर बढ़ रहा है और कहीं ना कहीं देश सैकड़ो सालों की गुलामी की ज़ंजीरों से छूटा था।

लोगों में जमाखोरी, कालाबाज़ारी जैसी बाते कम ही सुने को मिलती थी। जो आज(2019) में अकसर सुनने को मिल जाती है। हमें रोज़मर्रा अखबारों, टीवी आदि में पढ़ते व सुनने को मिल जाता है कि प्याज टमाटर , गेहूं आदि के दाम आसमान छू रहे हैं। इन्हीं के दामों में बढ़ी कीमतों को कम करने के लिए सरकार जमाखोरों पर अपना शिकंजा कसती व उनके गोदामों पर छापेमारी करवाती है।

वर्तमान समय में महंगाई का आंकलन

वहीं वर्तमान समय में महंगाई की मार का आंकलन करें, तो आम आदमी को महंगाई से राहत नहीं मिली है। यह पहले से भी ज़्यादा भयावह रूप ले चुकी है।

2019 में इंसान की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे रोटी, कपड़ा और मकान के दामों में इतनी ज़्यादा बढ़ोतरी हुई है कि इंसान ना तो पेट भर खाना खा पाता है और ना ही रहने के लिए अपना घर होने का सपना देख पाता है। यह इसलिए क्योंकि आय ज़रूर बढ़ी है पर उस आय के बढ़ने के साथ-साथ उसके व उसके परिवार के खर्चो में भी चौगुना बढ़ोतरी हुई है।

उदाहरण के लिए अमूल दूध की एक थैली पहले 24 रुपए की थी जिस पर कंपनी ने 2 रु की बढ़त कर 26 रु कर दिए। कहने को यह 2 रु की बढ़त है पर इन दो रु की बढ़त से भी एक मध्यम परिवार के महीने पर के हिसाब  पर काफी असर पड़ता है और यह असर इतना असरदायी होता है कि एक आम आदमी की कमर को झुकाकर रख देता है।

 

राशन दुकान

पर आखिर क्या कारण है जो महंगाई का स्वरूप इतना भयावह होता जा रहा है? महंगाई बढ़ने के पीछे कई कारण हैं,

जहां एक तरफ लोगों को अनाज पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है लेकिन वहीं दूसरी ओर बड़े- बड़े व्यापारी इन अनाजों को अपने -अपने गोदामों में जमा कर रखते है और जब बाज़ार में इनका भाव बढ़ जाता है, तब वह इन्हें ऊंचे दामों पर बेचते है।

बड़े और अमीर लोग तो खैर ऊंचे दामों पर भी इन्हें खरीद कर अपने पेट की भूख को शांत कर  लेते पर एक मध्यम वर्ग का इंसान इन्हें खरीदता ज़रूर है पर अपने हाथों को खींचते हुए। ऐसे में कैसे होता होगा मध्यम वर्ग व गरीब लोगों का जीवनयापन? यह एक विचारणीय प्रश्न है। इसके साथ प्राकृतिक विपदाएं जैसे बाढ़,अतिवृष्टि, सूखा भी उत्पादन को प्रभावित करते हैं और कम उत्पादन होने से महंगाई बढ़ना स्वाभाविक है।

 

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