हमारे देश में जितना सम्मान भारत की संसद का होता है उससे कहीं गुना ज़्यादा अदालतों का होता है क्योंकि आज भी जब भी 2 लोगों में कोई भी मसला होता है, तो वे एक दूसरे को कहते हैं कि तुझे कोर्ट में देख लूंगा।
ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें न्यायतंत्र पर भरोसा है। जो इन्हीं अदालतों से आता है। हम हिन्दुस्तानियों ने अदालतों को मंदिर और मस्जिद के बरारबर माना है इसलिए इसे न्याय का मंदिर भी कहा जाता है। पर जब इसी मंदिर में अधर्म हो, अन्याय हो, कानून तोड़ा जाए तो तकलीफ होती है।
आज यह गैरकानूनी काम उन्हीं के हाथों से हो रहे हैं जिन पर कानून को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी है और जब इन्होंने इसके लिए कानून भी पढ़ा हो, तो और ज़्यादा दुख होता है।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
3 दिन पहले दिल्ली के तीस हज़ारी कोर्ट में यही हुआ, पुलिस और वकील जो कि देश की न्याय व्यवस्था के 2 स्तंभ माने जाते हैं वे आपस में लड़ पड़े।
यह लड़ाई कोर्ट के परिसर में हुई जहां यह सब होना गलत है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि इन तीन दिनों में एक विवाद ने हज़ारों वकीलों और पुलिसवालों का ऐसा रूप ले लिया? आखिर ऐसा क्या हुआ जो इतनी हिंसा हो गई? जिसके खिलाफ ना सिर्फ दिल्ली मे वकीलों के प्रदर्शन हो रहे हैं बल्कि हिमाचल के हमीरपुर और मंडी तक में वकीलों ने विरोध प्रदर्शन करने शुरू कर दिए हैं।
दरअसल, हुआ यूं कि एक वकील ने लॉकअप के बाहर ने अपना गाड़ी खड़ी कर दी थी। इसपर लॉकअप के बाहर खड़े संतरी ने उनसे गाड़ी हटाने को कहा, जिससे उनके बीच कहासुनी हो गई। बात बढ़ती गई और वहां बाकी पुलिस वाले भी आ गए जिसके बाद वकील को लॉकअप ले डाल दिया जाता है।
खबरों के अनुसार जब वकील को लॉकअप से छोड़ दिया जाता है तो वह कुछ देर बाद अपने साथी वकीलों के साथ फिर वहीं पुलिस के पास पहुंचता है, जिसके बाद मारपीट की शुरुआत होती है। इस मारपीट में कथित तौर पर पुलिस द्वारा गोलियां भी चलाई जाती है जिसमें एक वकील घायल हो जाता है और उसके बाद हिंसा का यह सिलसिला लगातार चल रहा है।
वर्चस्व की लड़ाई
अगर हम इस लड़ाई को देखें तो यह वर्चस्व और अहंकार की लड़ाई है। दुनिया के हर धर्म ग्रंथ में क्रोध को सबसे बड़ी मुसीबत माना गया है। भगवत गीता का अध्याय 2 पढ़ें तो उसमें भी कहा गया है,
क्रोध से आदमी भ्रमित होता है और भ्रमित आदमी विनाश की और जाता है
आपको बता दूं कि अभी वहां बाहर के लोगों के आने-जाने पर रोक है। सोचिए जिन लोगों के मुकदमें जारी हैं, जिन्होंने इन वकीलों को बड़ी-बड़ी फीस दे रखी है, उनका क्या होगा?
खबरों के अनुसार यह हिंसा उस वक्त हुई जब तीस हज़ारी कोर्ट में प्रेसिडेंट पद के लिए चुनाव होने वाले हैं और इससे कितना ध्रुवीकरण होगा यह बात सब जानते हैं। अभी कल ही एक और खबर आई है कि दिल्ली के ही साकेत डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एक वकील ने बाइक पर सवार पुलिसवाले को मारा। पुलिसवाले पर थप्पड़ों की बरसात का वीडियो वायरल हो गया है जिसे कई लोगों ने देखा।
After Tis Hazari, Karkardooma, it’s Saket court today. No fear of the law and tearing apart the order. No argument can justify this behaviour. What’s more surprising is the way @DelhiPolice is handling with its hands tied due to lack of a strong leadership at the top. pic.twitter.com/SdnQ4uG9HO
— Sidharth Bhardwaj (@SidharthB25) November 4, 2019
इतिहास गवाह रहा है कि जब भी वकील और पुलिसवालों ने साथ में मिलकर काम किया है तब बड़े से बड़ा मुजरिम जेल में गया है। यह एक ऐसी जोड़ी है जो गुनहगारों को सज़ा दिलाती है। ऐसे में खुद गुनहगार बन जाना कहां कि समझदारी है?
वकीलों को लेकर मेरा मत
पहले भी ऐसा हुआ था जब भारत के ही एक कोर्ट में वकीलों ने राजद्रोह के मामले में आरोपी रहे कन्हैया कुमार पर भी हमला किया था। तब मुझे ऐसा लगा था कि इन्होंने उसे मारकर उस (कन्हैया कुमार) जैसों की ही बात को सच साबित कर दिया था कि आज न्याय व्यस्था की इज़्जत ही नहीं बची है।
अगर ये वकील और पुलिसवाले होकर ऐसी हरकते करेंगे तो समाज को क्या सिखाएंगे? यह सोचना ज़रूरी है। इस मामले में आरोपी पुलिसवालों और वकीलों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए ओर इनपर कोर्ट की अवमानना का मुकदमा भी चलना चाहिए ताकि आगे चलकर कोई ऐसी हरकत ना करे।
पूरे देश को जंग का अखाड़ा बनाने वालों, कम से कम ऐसे न्याय के मंदिरों को तो बक्श दो।
देखिए कैसे शुरु हुआ पूरा विवाद।