राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हर चरफ चर्चा का बाज़ार गर्म है मगर देश के अन्य मसलों पर कोई बात ही नहीं हो रही है। सबसे ज़रूरी मसलों में से एक है किसानों का मुद्दा, जो भारत के प्राइमरी सेक्टर की इकॉनमी में 22% हिस्सेदारी देता है।
अभी एक-दो दिन पहले ही गृह मंत्रालय के नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने एक चौंकाने वाला आंकड़ा जारी किया है, जिसमें यह कहा गया है कि सन् 2016 यानी 3 साल पहले भारत में करीबन 11,379 किसानों ने आत्महत्या की थी। हर महीने के हिसाब से यह आंकड़ा 948 है। जबकि हर दिन की बात करें तो 31 किसान हर रोज़ आत्महत्या करते हैं।
2014 और 2015 के मुताबिक यह आंकड़ा कम है, क्योंकि 2014 में जहां 12,360 किसानों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2015 में 12,602 किसानों ने आत्महत्या की थी।
इन राज्यों में किसानों की आत्महत्या सबसे ज़्यादा
- इसमें महाराष्ट्र राज्य पहले स्थान पर है। वहां 2016 में 3661 किसानों ने आत्महत्या की थी। 2013 से 2018 के बीच महाराष्ट्र में 15,356 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की थी।
- दूसरे नंबर पर कर्नाटक है, जहां का आंकड़ा 2079 है। 2015 में कर्नाटक में 1566 किसानों ने आत्महत्या की थी। मतलब तब जब सिद्धा रमैया बड़े-बड़े दावे कर रहे थे।
- शिवराज सिंह चौहान के राज में 2016 में 530 किसानों ने मध्य प्रदेश में आत्महत्या की थी।
- चौथे स्थान पर तेलंगाना है, जहां 2015 में 480 किसानों की मौत 12602 आत्महत्या से हुई। मतलब चंद्रशेखर राव की नीतियों की पोल खुल गई।
- छत्तीसगढ़ राज्य में वर्ष 2015-16 में 1344 किसानों ने आत्महत्या की थी।
- सबसे चौंकाने वाली बात पंजाब की है। खेती के लिए अनुकूल राज्य पंजाब में वर्ष 2014-16 तक 36,000 किसानों ने आत्महत्या की थी।
- उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है, जहां 2016 में 53 किसानों ने आत्महत्या की थी। उस वक्त वहां अखिलेश यादव का राज था मगर मैं कहूंगा उन्होंने काफी अच्छा काम किया।
अगर किसानों के जेंडर की बात करें तो जितने भी किसानों ने आत्महत्या की, उनमें 8% महिलाएं थीं और बाकी सब पुरुष। यहां यूपीए सरकार का ज़िक्र होना चाहिए।
2004 से 2014 तक 10 साल राज करने वाली यूपीए सरकार में 2004 से 2008 तक 85,260 किसानों ने आत्महत्या की थी। वहीं, 2009-13 तक यह आंकड़ा 74,000 के करीब है।
अब सरकार को चाहिए कि वह किसानों के लिए कुछ और भी करे। साथ ही इसकी वजह से सरकार पर कोई बड़ा दबाव ना पड़े, यह भी देखना हमारी ज़िम्मेदारी है।
नोट: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य बिज़नेस टुडे की वेबसाइट से लिए गए हैं।