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माहवारी के दिनों में झारखंड की ये लड़कियां करती हैें खुलकर बात

फोटो साभार- Flickr

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भारतीय समाज में माहवारी से जुड़ी बडी गलतफहमी लंबे अर्से से चली आ रही है। जैसे- पीरियड्स के दौरान महिलाओं को अछूत माना जाना, पूजा घर में प्रवेश नहीं देना, अचार नहीं छूना, उस समय स्कूल नहीं जाने देना और नहाने से भी परहेज़ किया जाना आदि।

वर्ष 2016 में टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंस द्वारा कराए गए एक स्टडी के अनुसार 10 में से 8 लडकियों को पीरियड्स के दौरान धार्मिक स्थलों में जाने की मनाही होती है।

इस सर्वे में यह भी पाया गया कि बहुत सी लडकियों को पीरियड्स के बारे में पता तक नहीं था। पहले ज़माने में लड़कियां पैंटी का प्रयोग नहीं करती थीं। ग्रामीण लडकियों को पानी लाने तालाब जाना पड़ता था और हाइजीन के कारण उन्हें इंफेक्शन हो जाता था।

तालाब का पानी स्थिर होने के कारण बैक्टीरिया फैलने का डर बना रहता था। महिलाओं को अशुद्ध होने का कोई वैज्ञानिक कारण नहीं था, बल्कि यह सिर्फ समाज में सदियों से चली आ रही गलत परंपरा ही रही है।

पीरियड्स में महिलाओं के लिए एक असुविधाजनक स्थिति होती थी। इस अवधि में महिलाओं को कई प्रकार की पीड़ा सहनी पड़ती थी।

पीरियड्स पर बात करने से परहेज़ नहीं करती हैं झारखंड की लड़कियां

स्कूल में पानी पीती लड़कियां।

झारखंड की किशोरी अब पीरियड्स के दौरान आने वाली समस्याओं पर स्कूलों में शिक्षकों और घर में अपनी माता से खुलकर बातें करती हैं।

पीरियड्स के दौरान आने वाली समस्याओं पर किशोरियां पहले बात करने से हिचकिचाती थीं लेकिन अब ऐसा नहीं है। झारखंड के स्कूलों-काॅलेजों में पढ़ने वाली और महिला छात्रावास में रहने वाली छात्राओं को उड़ान कार्यक्रम के माध्यम से शरीर में हो रहे बदलावों को लेकर कई प्रकार की जानकारियां दी जाती हैं।

किशोरी अब बेझिझक अपनी समस्याओं के बारे में शिक्षकों से बात करती हैं। कस्तुरबा गाँधी आवासीय बालिका विद्यालय की शिक्षिका उषा किरण टुडू बताती हैं,

विद्यालय में पढ़ने वाली 11 वर्ष से 14 वर्ष की लड़कियों को मासिक धर्म के बारे में बताया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि उनके शरीर के अंदर अब बदलाव होने वाला है और पीरियड्स से घबराना नहीं है।

किरण टुडू का कहना है कि विद्यालय में उड़ान कार्यक्रम छठे वर्ग से ही शुरू हो जाता है, जिसका लाभ छात्राओं को मिलना शुरू हो जाता है। शुरू-शुरू में छात्राएं बोलने की हिम्मत नहीं करती थीं लेकिन उनकी दोस्त बनकर वे उन्हें सब बताने लगी हैं। अब छात्राओं में जागरूकता बढ़ी है और वे खुलकर बात करने लगी हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर।  फोटो साभार- Flickr

वह आगे कहती हैं, “छात्राएं मासिक धर्म के दौरान पानी का अधिक प्रयोग करती हैं। वे स्वछता के प्रति जागरूक बनी हैं। अपने गाँवों में भी वे अपनी सहेलियों के साथ विद्यालय की बातें शेयर करती हैं।”

कस्तुरबा गाँधी आवासीय बालिका विद्यालय की शिक्षिका सोहागिनी मरांडी बताती हैं,

विद्यालय में सरकार की ओर से सैनिटरी पैड और इंसिनेटर दिया गया है। सैनिटरी पैड के लिए प्रति छात्रा 5 रुपये का सिक्का देना पड़ता है। पैसे नहीं होने के कारण छात्राएं सैनिटरी पैड का उपयोग नहीं करती हैं। यानी कि मशीन का कोई उपयोग नहीं होता है।

सोहानिनी मरांडी कहती हैं कि सरकार की ओर से सभी गर्ल्स स्कूल एवं छात्रावास में रहने वाली छात्राओं को सैनिटरी पैड मुफ्त में दिया जाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया,

मेरे विद्यालय में 400 छात्राएं हैं। इंसिनेटर, जिसमें पैड को जलाया जाता है, उसकी क्षमता 300 की होती है। ऐसे में 100 छात्राएं विद्यालय के शौचालय से सटा हुआ ईंट के इंसिनेटर में जाकर पैड को जलाती हैं।

उनका कहना है कि इंसिनेटर में पैड को जलाने से धुआं होता है, जो पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक है। इंसिनेटर के लिए बिजली की ज़रूरत होती है मगर बहुत से विद्यालयों में बिजली की कमी है। ऐसे में यह मशीन बेकार साबित हो रहा है। अधिकतर आदिवासी महिलाएं सैनिटरी पैड का प्रयोग नहीं करती हैं। वे परंपरानुसार सादा कपड़े का प्रयोग करती हैं। युवा अब पैड का प्रयोग कर रही हैं।

पीरियड्स के दौरान इन बातों का रखना चाहिए ध्यान

जेंडर को-ऑर्डिनेटर मीनी टुडू बताती हैं, “देश में आज प्लास्टिक पर बैन लग चुका है लेकिन सैनिटरी पैड में प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है, जिसे जलाने से प्रदूषण बढ़ता है।”

टुडू बताती हैं कि सरकार अविलंब इस ओर ध्यान दे और बेहतर विकल्प तलाशे। वह सरकार से मांग करती हैं कि महिलाओं को 2 दिन की जगह 4 दिन मेन्स्ट्रुअल लीव दिया जाना चाहिए।

दुमका सदर अस्पताल में कार्यरत महिला परामर्शी सुनीता कुमारी बताती हैं,

पीरियड्स के समय महिलाओं को साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दौरान महिलाओं में कमज़ोरी, चिड़चिड़ापन और पेट दर्द होना आम बात है।

सुनीता महिलाओं को सलाह देती हैं कि पीरियड्स के दौरान अधिक पानी पियें ताकि पेशाब में जलन ना हो। इस समय कम पानी से पथरी नामक बीमारी हो सकती है। महिलाओं को पीरियड्स के दौरान फल और दूध का सेवन करना चाहिए।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

पीरियडस के दौरान महिलाओं को तरबूज़ खाना चाहिए। इस दौरान पालक का साग भी फायदेमंद होता है। पालक में आयरन की मात्रा अधिक होती है जो खून की कमी को बढ़ाता है। आहार विशेषज्ञ निरूपमा सिंह बताती हैं, “मासिक धर्म के दौरान केले का सेवन करना चाहिए। केले में पोटाशियम और विटामिन ‘बी’ की उच्च मात्रा होती है।

उनका कहना है कि पीरियड्स के दौरान महिलाएं खानपान पर कम ध्यान देती हैं। इस दौरान महिलाओं को अकसर थकान, मुड खराब रहना और शरीर में ऐंठन आदि की समस्याएं होती रहती हैं। अब महिलाएं स्वच्छ ज़िंदगी जी रही हैं और ज़िंदगी जीने के सारे संसाधन उपलब्ध हैं।

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