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एक ही रूम में वह पूजा करते और मैं नमाज़ पढ़ता

एक ही रूम में वह पूजा भी करते और हम नमाज़ और कुरान भी पढ़ते थे। मेरे उस भाई यानि की हितेश का कल जन्मदिन था।  कुछ यादें हैं जो उनके जन्मदिन की  वजह से नहीं बल्कि इस वजह से आपके समक्ष रख रहा हूं क्योंकि उनकी यादों में असली मायने में गंगा जमुना तहज़ीब बस्ती है।

रमज़ान में रखते थे ख्याल

उनके साथ बिताए हर पल गंगा जमुनी तहजीब की याद दिलाती है। जब हम उर्दू अरबी फारसी विश्विद्यालय में पढ़ रहे थे तो हम दोनों एक ही साथ रहते थे। रमज़ान के दिन थे और हमको तरावीह पढ़ाने के लिए बाहर जाना होता था और वापस आते समय हमें रात के बारह बज जाते थे। तब यह हमारे भाई हमें लेने के लिए जाते।

जब तक रमज़ान रहा उस  रूम में खाना नहीं बना और जब तक हम आज़ान का इंतज़ार करते, उस वक़्त तक वे भी इंतज़ार करते।  फिर हम लोग एक ही साथ इफ्तारी करते।

हिंदू धर्म में बगैर घर साफ किए पूजा नहीं होती है। इसलिए वे हर दिन रूम साफ करते और मैं सोया रहता। वह मुझे जब कहते,

आबशरूद्दीन कभी तुम झाड़ू भी लगा दिया करो, तो मैं कहता जिसको ज़रूरत है वह खुद झाड़ू लगाए लेकिन फिर भी कभी भी हमसे गुस्सा नहीं होते। तक़रीबन हम लोग दो साल एक साथ रहे। शायद ही हमने कभी उनको पूरा खाना बनाकर खिलाया होगा लेकिन वह हमें दो साल तक खाना बना कर खिलाते रहे।

कभी-कभार कुछ लोगों ने हमको और उनको एक दूसरे के खिलाफ भड़काने की भी कोशिश की लेकिन हम लोगों पर कभी कोई असर नहीं पड़ा हमेशा उनकी ख़ुशी हमारी खुशी में होती और उनकी खुशी हमारी खुशी में।

कॉन्वोकेशन में अपना मेडल मुझे दिया

इसी चीज़ से एक बात और याद आ गई। जब कॉन्वोकेशन हो रहा था और यूनिवर्सिटी प्रशासन की गलती की वजह से उनका नाम छूट गया तो उनको बताये बगैर उनका नाम शामिल करवाया और जब उन्होंने मेडल हासिल किया तो सबसे पहले उन्होंने वह मेडल मेरे हाथों में थमा दिया।

बहुत सारी यादें हैं जिसने हम दोनों को कभी एहसास नहीं होने दिया कि हम दोनों अलग मज़हब के मानने वाले लोग थे। हम दोनों एक ही रूम में पूजा और नमाज़ और क़ुरआन पढ़ने वाले लोग थे।

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