Site icon Youth Ki Awaaz

“गौरी लंकेश एक खूबसूरत शख्सियत थीं, जिन्हें अपनी यादों में संजोना चाहूंगा”

गौरी लंकेश

गौरी लंकेश

हमने 5 सितंबर 2017 को गौरी लंकेश को आतंकवाद की वजह से खो दिया। इस लेख में मैं गौरी की शहादत को वैश्विक संदर्भ में रखने की कोशिश करूंगा।

प्रत्येक व्यक्ति जो राज्य द्वारा मारा गया है, कॉरपोरेट हिंसा या सांप्रदायिक हिंसा का शिकार हुआ है, उसे शहीद नहीं कहा जा सकता है। वजह यह है कि कई ऐसे निर्दोष लोग मरने के लिए तैयार नहीं थे। उन्हें नहीं पता था कि मौत इतनी जल्दी उनके पास आ जाएगी।

मौत अचानक थी। इनमें से अधिकांश मासूम मौत के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थे। इनमें से कई आदिवासी, ईसाई और दलित तो यह भी नहीं जानते थे कि वे धर्म के नाम पर मारे जा रहे हैं। वे मरने के लिए तैयार नहीं थे फिर उन्हें शहीद कैसे कहा जा सकता है? वे सांप्रदायिक नरसंहार और नोटबंदी के शिकार थे।

गौरी लंकेश। फोटो साभार- Getty Images

गौरी लंकेश एक खूबसूरत इंसान थीं, जिन्हें मैं अपनी यादों में संजोना चाहूंगा। उनके जीवन में कोई ढोंग नहीं था। केवल सार्थक जीवन की तलाश थी। गौरी लंकेश एक शहीद थीं, क्योंकि वह अपने राजनीतिक विश्वासों और कार्यों के परिणामों के बारे में जानती थीं।

आपका उनके दृष्टिकोण से सहमत या असहमत होना लाज़मी है मगर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो यह मानने के लिए काफी ज़िद्दी थीं कि वह अपने तरीके से सामाजिक परिवर्तन में योगदान दे सकती हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह सफल थीं या असफल।

आज दुनिया में वास्तव में कोई वाम या दक्षिणपंथी संगठन नहीं है। बस दो तरह की शक्तियां हैं-

शक्तियां जो लोकतंत्र को बचाए रखना चाहती हैं, उन्हें तकनीक के प्रति समर्पित होना होगा और विविधता को गले लगाना होगा। हमारा सामना एक नई दुनिया से है और इस नई दुनिया को एक नई राजनीति की दरकार है। लंकेश ने समाज में एक तर्कसंगत आवाज़ का प्रतिनिधित्व किया। वह हिन्दुत्ववादी ताकतों की बहुत आलोचना कर रही थीं।

हिन्दुत्वादी संगठन द्वारा निकाली गई रैली की तस्वीर। फोटो साभार- Twitter

उन्होंने लगातार अपने लेखों के ज़रिये हिन्दुत्वादी ताकतों को बेनकाब करने की कोशिश जारी रखी। उन्होंने संघ परिवार की सांप्रदायिक राजनीति का कड़ा विरोध किया। 1992 में लंकेश ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए ध्रुवीकरण के खिलाफ आवाज़ उठाई।

लंकेश की हत्या राजनीति के संघ परिवार ब्रांड के खिलाफ जाने वाले दृष्टिकोण को कुचलने का एक प्रयास है। तलवार की शक्ति लगाने का कार्य भगवा ताकतों द्वारा प्रदान किए गए प्रशिक्षण का एक अभिन्न अंग है। वे कलमों और इसके संबंधित गुणों जैसे कि बहस और चर्चा का प्रचार करने के बजाय अपने आगामी कैडरों को हथियार, लाठी और बंदूकों के उपयोग के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना चाहते हैं।

अतीत की महानता के चारों ओर एक तरफा व्याख्यान में आलोचनात्मक चर्चाओं की अनुमति शायद ही हो। यह स्वाभाविक है कि तर्कसंगतता और तर्क से रहित धर्म के चारों ओर निर्मित एक भावना इसकी चरम सीमाओं में व्याख्या की गई है। ऐसे लोग ऐसे कार्यों को करने के लिए आगे बढ़ते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी घटनाएं होती हैं।

लिंचिंग की घटनाओं में शामिल, तर्कवादियों को मारने का काम और बुद्धिजीवियों को निशाना बनाना भाजपा शासन द्वारा तलवार की शक्ति को लागू करने के लिए अपनाया गया एक साधन है।

गौरी लंकेश की हत्या दुखद है लेकिन यह उन सभी के लिए एक अलार्म कॉल भी होना चाहिए जो धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत के विचार की रक्षा करना चाहते हैं।

भारत और न्यायसंगत भारत के लिए भी इससे आगे जाने की ज़रूरत है। हमें लंकेश जैसे लोगों की रक्षा के माध्यम से कलम की ताकत को वापस लाना होगा ताकि एक फासीवादी भारत को उभरने से रोका जा सके।

Exit mobile version