जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक आबोहवा बिगड़ती जा रही है। पेट्रोल व डीज़ल चालित वाहनों की लगातार हो रही वृद्धि, ठोस कचरे को जलाने, खेत में फसलों के अवशेष जलाने, निर्माण स्थलों से उठने वाली धूलें, कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं व अन्य कई कारणों से लगातार वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
वातावरण में हर समय धुंध छाई रहती है, जिसकी वजह से लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया है। भारत में भी प्रदूषण की रोकथाम के लिए ज़िम्मेदार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उद्योग विभाग, परिवहन विभाग, नगर पालिका, नगर निगम व अन्य विभागों के संबंधित अधिकारी और नागरिक पूरी तरह बेपरवाह नज़र आ रहे हैं।
यही वजह है कि सरकार के अथक प्रयासों के बाद भी भारत में प्रदूषण का ग्राफ कम होने की अपेक्षा बढ़ता जा रहा है। इस समस्या पर नियंत्रण के लिए सिर्फ केंद्र सरकार ही नहीं, बल्कि प्रांतीय स्तर पर भी कई कदम उठाए गए हैं लेकिन जागरुकता के अभाव में धरातल पर कोई भी परिवर्तन दिखाई नहीं दे रहे हैं।
पराली जलाने को पूर्णतः प्रतिबंधित करते हुए पर्यावरण हित में दिल्ली सरकार ने भी एक कदम वातावरण स्वच्छता की ओर बढ़ाया। साथ ही 4 से 15 नवम्बर तक दिल्ली में ऑड-ईवन स्कीम लागू की, जिसका उद्देश्य था पेट्रोल चालित वाहनों की वजह से निरन्तर प्रदूषित हो रहे वातावरण एवं अनियंत्रित यातायात को कंट्रोल करना था।
पेट्रोल व डीज़ल चालित वाहनों का पर्यावरण पर प्रभाव
सड़कों पर लगातार दौड़ रहे पेट्रोल, डीज़ल और केरोसिन चालित वाहनों में पेट्रोलियम पदार्थों के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन व अन्य विषैली गैसे वायु में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं। विषैले पदार्थ वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। इससे मानव शरीर व पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। विकास की इस अंधाधुंध दौड़ में, मेंटेनेंस के अभाव में निजी व कॉमर्शियल वाहन चालकों द्वारा पर्यावरण की निरंतर अनदेखी की जा रही है।
अधिक वाहनों की संख्या और अव्यवस्थित ट्रैफिक की वजह से धुआं प्रदूषण बढ़ता है, जिससे पैदल चलने वालों और मरीजों का सांस लेना भी दुश्वार हो जाता है। ज़हरीले धुएं की वजह से दमा, एलर्जी, आंख की बीमारी होने का खतरा बना रहता है। अनफिट वाहनों से फैल रहे प्रदूषण का शिकार ज़्यादातर स्कूली बच्चे होते हैं।
वायु प्रदूषण के अन्य कारण
आधुनिक युग में पर्यावरण को नज़रअंदाज करके निजी आवश्यकताओं को विशेष महत्व दिया जाता है, यही कारण है कि संबंधित विभागों के ज़िम्मेदार अधिकारी यदि प्रदूषण फैलाते हुए किसी वाहन चालक को पकड़ भी लेते हैं, तो वह सुविधा शुल्क देकर या चालान कटाकर छूट जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है।
प्रमुख मार्गों से लेकर नैशनल हाईवे तक धुआं उगलते हुए दिखाई देने वाले पेट्रोल व डीज़ल चालित वाहन, इंडस्ट्रियल एरिया में कोयले की भट्टियों से निकलने वाले धुएं, जगह-जगह जलाए जाने वाले कूड़ा-कचरा, पराली, गन्ने की पत्तियां आदि के ढेर, तेज़ी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कई कारणों में से मुख्य हैं, जिनकी वजह से पर्यावरण प्रदूषण का ग्राफ कम होने की बजाय लगातार बढ़ता जा रहा है।
प्रदूषित पर्यावरण का वनस्पतियों पर असर
मनुष्य व अन्य जीव जंतुओं के साथ पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। यह जानते हुए कि पराली जलाने से भूमि की उर्वरता खत्म हो जाती है, खेती के लिए उपयोगी कीट नष्ट हो जाते हैं तथा प्रकृति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है, किसान पराली, गन्ने की पत्तियां और खरपतवार को लेकर अभी भी गम्भीर नहीं दिखाई दे रहे हैं।
भारत सरकार हो या केंद्र सरकार सभी का यह प्रयास है कि प्रत्येक ज़िले में बायोफ्यूल प्लांट लगाये जाएं, किसानों को पराली की पूरी कीमत मिले और कृषि योग्य भूमि व पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।
प्रदूषित पर्यावरण का मानव जीवन पर असर
पराली जलाने और अत्यधिक वाहनों के इस्तेमाल से उत्सर्जित होने वाले धुएं से उत्पन्न गैसों के कारण तेज़ी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। नीले आसमान में छाई रहने वाली कोहरे जैसी प्रदूषण की धुंध से जनजीवन प्रभावित हो गया है। लोगों को आंखों में जलन, चर्म रोग, सांस लेने में दिक्कतों एवं अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
मेडिकल कॉलेजों और हॉस्पिटलों में नेत्र रोग व एलर्जी से संबंधित चिकित्सकों के क्लीनिक के बाहर मरीजों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। वैसे तो जलवायु परिवर्तन को रोक पाना सम्भव नहीं है लेकिन यदि प्रयास किए जाएं तो लगातार प्रदूषित हो रहे वातावरण को काफी हद तक नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है। इसके लिए हमें लापरवाहीयों को नियंत्रित करते हुए जागरूकता और सावधानियां बरतने की विशेष आवश्यकता है।
स्वास्थ्य एवं पर्यावरण हित में बरती जाने वाली सावधानियां
- खुले में कूड़ा-कचरा ना तो स्वयं जलाएं और ना ही जलाने दें।
- दिनभर में अत्यधिक पानी पीते रहें।
- कमरे में एग्जॉस्ट चलायें।
- घर से बाहर निकलते समय मुहं पर रुमाल लगाएं या मास्क का प्रयोग करें।
- गर्म पेय पदार्थ का ज़्यादा सेवन करें।
- तरलीय पदार्थ ज़्यादा-से-ज़्यादा खाएं।
- घर के आसपास कूड़ा-कचरा निकल रहा हो तो उसकी सूचना तत्काल प्रशासन को दें।
- निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल को हवा में घुलने से रोकने के लिए हरित अधिकरण के निर्देशानुसार जाल से घेराबंदी और नियमित रूप से पानी का छिड़काव अवश्य करें।
वाहन चलाते समय बरती जाने वाली सावधानियां
- वाहन चलाते समय लाल बत्ती होने पर गाड़ी के इंजन को ऑफ कर दें, ऐसा करने से सिर्फ पर्यावरण ही नहीं बल्कि ईंधन भी बचाया जा सकता है।
- ज़्यादा-से-ज़्यादा सीएनजी गैस एवं बैट्री से चलने वाले वाहनों का प्रयोग करें।
- 10 साल से अधिक डीज़ल इंजन वाले पुराने वाहनों को नहीं चलाएं।
सुझाव
स्मार्ट सिटी जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में पैदल और साइकिल से चलने वालों के लिए अलग पथ के निर्माण सुनिश्चित किए जाएं, ताकि दस कदम के लिए बाइक और कार निकालने की प्रवृत्ति को कम किया जा सके।