नमस्कार, पौरूष के प्रतीक, मेरे मर्द मित्रों,
जैसा कि तुमने देख रहे हो, एक बार फिर सड़क पर कैंडल मार्च और सोशल मीडिया पर श्रद्धांजली का दौर शुरू हो गया है। तुम भी इसमें झट से शामिल हो जाओ, यही मौका है महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ एक नागरिक के रूप में अपनी जागरूकता दिखाने का।
बाकी करना तो हमें वही है, जो हम करते आए हैं। औरतों को दोयम दर्जे का इंसान मानेंगे, अपनी बहन बेटियों को खजाने की तरह छुपाकर रखेंगे, उन्हें नाज़ुक होने का एहसास दिलाएंगे, उनकी सुरक्षा के नाम पर पाबंदिया लगाएंगे, जिससे वे अपना आत्मविश्वास खो बैठें और हम उनपर अपना शासन चला सकें।
फिर जब किसी रोज़ हमारी तरह महिलाओं को लाचार समझने वाला कोई वहशी उसपर हमला करेगा, तब वह डर के मारे आत्मसमर्पण कर देगी, या फिर हम जैसे किसी मर्द से मदद की उम्मीद करेगी।
भले ही तुम्हें आज गुस्सा आ रहा हो मगर यह घटना सिर्फ आज या कल की नहीं हर रोज़ की है। तुम चाहे किसी भी दिन का अखबार उठा लो, ऐसी खबरों से अपना मुंह नहीं छिपा पाओगे।
आज कोई अपराधियों पर सख्त कार्रवाई का सुझाव दे रहा है, तो कोई फांसी की मांग कर रहा है, मगर सच तो यह है कि निर्भया और प्रियंका जैसी हज़ारों सर्वाइवर्स के ज़िम्मेदार हम और तुम भी हैं।
आए दिन महिलाओं का बलात्कार सिर्फ कोई व्यक्ति नहीं करता, बल्कि वह सोच करती है, जो हम सब पुरुषों के अंदर मौजूद है। वहीं सोच जिसे लगता है कि महिलाएं कोई कमज़ोर वस्तु है, जिसपर पुरूषों का अधिकार होता है।
तुम क्यों सफाई देने की ज़हमत उठाते हो दोस्त, हमारी सच्चाई यह समाज बखूबी उजागर कर रहा है। साथ ही अगर तुमको लगता है कि हैदराबाद की सुनसान सड़क पर वह लड़की उन राक्षसों से सिर्फ इसलिए हार गई, क्योंकि वह शारीरिक रूप से कमज़ोर थी तो तुम गलत हो।
लेकिन आखिर कब तक हम मोमबत्ती लेकर अपनी जागरूकता का ढोंग करते रहेंगे दोस्त? आखिर कब तक हम महिलाओं पर अपना अधिकार जताते रहेंगे? कब तक उन्हें खुद से कमतर करके हम उनके लिए अलग नियम निर्धारित करेंगे? जब समस्या हमारी सोच में है, तो बहस लड़की के कपड़े पर क्यों होगी? जब कुकर्म हमारा है, तो दोष रात के अंधेरे को क्यों दिया जाएगा?
हम अपनी स्त्रियों को सीमाओं में बांधना छोड़कर, लड़ना क्यों नहीं सिखाते हैं? क्या तुम भी इस परिपाटी में बदलाव चाहते हो मित्र? अगर हां तो शुरुआत मुझसे तुमसे ही होगी।
अपनी बहनों-बेटीयों को मज़बूत व आत्मनिर्भर बनने में मदद करो और उनमें लड़ने का साहस एवं भरोसा जगाओ। तुम्हारी पत्नी भी तुम्हारे बराबर तवज्ज़ों की हकदार है और अपनी ज़िन्दगी अपने मुताबिक चलाने को स्वतंत्र है।
मेरा यकीन करो, ये शेरनियां कतई तुमसे कम नहीं हैं। तुम एक बार इनके पिंजड़े का ताला तोड़कर देखो, तुम्हारा महिलाओं का पुरुषों की जागीर समझने का भ्रम भी टूट जाएगा। जब इन्हें अपनी पूरी ताकत का एहसास होगा, तब ये खुद की ही नहीं वरन पूरे समाज की सुरक्षा करेंगी।
उठो मित्र, चलो बदलाव लाते हैं।