महाराष्ट्र मे चल रहा सियासी ड्रामा अब समाप्त हो चुका है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कल 28 नवंबर को राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी और काँग्रेस को साथ लेकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। वहीं, भाजपा बतौर मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर अपनी भूमिका निभाएगी।
कहते हैं राजनीतिक बदलाव और परिस्थितियां कई संदेश छोड़ जाती हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में हुए बदलाव भाजपा, उनके सहयोगी दलों और क्षेत्रीय पार्टियों के लिए बड़ा संदेश देती है।
शाह और मोदी की राजनीतिक जोड़ी अजेय नहीं है
2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड बहुमत के बाद राजनीति के जानकारों ने यह मत बना लिया कि मोदी और शाह की जोड़ी अजेय है। राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर काँग्रेस का आलस्य से भरा रवैय्या और बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों के सिमटते जनाधार ने इस सोच को और बल दिया है।
महाराष्ट्र में हुए हालिया राजनीतिक घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मोदी और शाह के नेतृत्व वाली भाजपा अपनी सहयोगी दल की ताकत और ज़रूरत को पूरी तरह से खारिज़ नहीं कर सकती है।
अगर भाजपा शिवसेना से समझौता कर आगे बढ़ती तो आज परिदृश्य कुछ और होता। जानकर बताते हैं शरद पवार पर दबाब डालने कि भाजपा की रणनीति ने स्वयं भाजपा को ही नुकसान पहुंचाय। ये स्पष्ट संकेत देता है कि क्षेत्रीय पार्टियों को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता।
आगामी विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है असर
महाराष्ट्र में हुए सियासी ड्रामे का असर आगामी विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है। अगले साल यानी 2020 में राजनीति के लिहाज़ से उत्तर प्रदेश के बाद बिहार विधानसभा चुनाव सबसे अहम होंगे।
वर्तमान परिस्थितियों का आंकलन करें तो अभी से ही भाजपा की बिहार यूनिट में नीतीश के साथ चुनाव ना लड़ने की मांग उठ रही है। खुद सुशील मोदी समेत बिहार भाजपा के बड़े नेताओं को सफाई तक देनी पड़ी थी। हाल ही में पूर्व उप मुख्यमंत्री और लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने भी भाजपा पर यह आरोप लगाया कि भाजपा ने उन्हें नीतीश से गठबंधन तोड़ने के बदले मुख्यमंत्री पद ऑफर किया था।
ऐसा मुमकिन है कि महाराष्ट्र से सबक लेकर नीतीश कुमार आने वाले समय में कुछ बड़े बदलाव करें या फिर भाजपा को ही अपनी रणनीति में कुछ बदलाव करनी पड़े। इन सबके बीच बात यदि उत्तर प्रदेश की करें, तो यह राजनीतिक रूप से किसी भी दल के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य है।
महाराष्ट्र में शरद पवार की वापसी से उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टियों में भी मज़बूत संदेश जाएगा कि वे मोदी-शाह की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के हर बार जीतने के तिलिस्म को तोड़ सकते हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि भाजपा ने मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह की कुशल संगठन क्षमता के दम पर कई चुनाव जीते हैं मगर हर बार ऐसा हो, यह ज़रूरी नहीं है। महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावी नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में रोज़गार जैसे अहम और असर डालने वाले मुद्दों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।