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“मैं JNU के साथ खड़ा हूं, इसका मतलब यह नहीं कि मैं देश विरोधी हूं”

जेएनयू प्रोटेस्ट

जेएनयू प्रोटेस्ट

JNU को नज़दीक से देखने की ज़रूरत है लेकिन उस नज़रिये से ना देखिए जो मीडिया दिखा रही है, क्योंकि मीडिया एक बड़ी गफलत में है कि जो वह दिखाएगी वही सत्य माना जाएगा । देश विरोधी नारों से अधिक JNU को नुकसान इन न्यूज़ चैनलों ने पहुंचाया है।

JNU हो या उत्तराखंड मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स हों, सब के सब सड़कों पर मौजूद हैं। JNU के हर आंदोलन को देश विरोधी प्रोपेगेंडा की आड़ में दबा देने का प्रयास किया जा रहा है। 

वर्तमान सरकार निरन्तर शिक्षण संस्थानों की फीस बढ़ा रही है। फीस बढ़ोत्तरी का दर्द मुझसे बेहतर कौन समझेगा? बढ़ती फीस ना दे पाने के कारण IIT गुवाहाटी में दाखिला नहीं ले सका। असल में यह समझने की ज़रूरत है कि बढ़ती फीस सरकार का कोई नया पैंतरा नहीं है।

जब-जब निजी विश्वविद्यालय के उद्योगपति सरकार पर दबाव बनाते हैं, तब-तब ऐसे परिणाम दिखाई देते हैं। उन उद्योगपतियों को खुश करने के लिए सरकार युवा स्टूडेंट्स का गला रेतने में ज़रा भी देर नहीं लगाती है।

JNU में फीस बढ़ोत्तरी के आंदोलन को अपनी राजनीतिक द्वेष का शिकार ना बनाइए। जो लोग फीस बढ़ोत्तरी आंदोलन में शामिल हुए स्टूडेंट्स का विरोध कर रहे हैं, वे आने वाली उन पीढ़ियों का विरोध कर रहे हैं जो देश का एक बेहतर भविष्य बन सकते हैं। विरोध करने वाले वही हैं जो जवानी में चाहते थे कि काश एक बार JNU में दाखिला हो जाता।

हॉस्टल मैनुअल में बदलाव और फीस बढ़ोतरी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते JNU स्टूडेंट्स। फोटो साभार- फेसबुक

बहरहाल, दाखिला ना हो पाने की खुन्नस संस्थान को अपशब्द कहकर ना निकालिए। देश विरोधी नारों के खिलाफ मैं भी हूं मगर संस्थान के खिलाफ नहीं हूं। JNU जैसे संस्थान या वहां पढ़ने वाले स्टूडेंट्स जो आपकी आने वाली पीढ़ियों की भी लड़ाई लड़ रहे हैं, उन पर गुस्सा दिखाकर कोई फायदा नहीं होने वाला है।

यदि आपने पढ़ा हो तो ध्यान दीजिए कि सरकार IIT की फीस कई गुना बढ़ाने जा रही है। सोचिये मोटी रकम देकर कौन सामान्य परिवार अपने बच्चों को IIT में पढ़ा सकेगा, गरीबों की बात ही दूर की है। क्या फीस बढ़ोत्तरी की आड़ में सम्पन्न परिवारों को संरक्षण दिया जा रहा? या एक ऐसी भूमिका तो नहीं बनाई जा रही है कि सिर्फ राजा का बेटा ही राजा बने।

JNU को देश विरोधी मत कहिए

यदि बैर इस बात से है कि संस्थान का नाम जवाहर लाल नेहरू जी के नाम पर है, तो निवेदन है बदल लीजिये नाम परन्तु युवा स्टूडेंट्स के भविष्य को मत कुचलिए। याद रखिए लाठियों के बलबूते विचार व आंदोलन खत्म नहीं होते, बल्कि इसके उलट मुखरता का स्वर और अधिक चरम पर पहुंच जाता है। 

वर्तमान समय में कोई भी आंदोलन किया जाता है तो चंद बहरूपिये उसको वामपंथी या लेफ्ट से प्रेरित, पोषित आंदोलन कह देते हैं। वाकई बेहतर सलीका खोजा है देश की वर्तमान समस्याओं से आम जनमानस को विमुख रखने का।

निवेदन है कि ऐसे ज़हर मत घोलिये। स्टूडेंट्स की आवाज़ सुनिए और उन पर विचार कीजिए। यहां हर कोई देश विरोधी नहीं है। आइए ज़रा सकारात्मक होकर हम और आप  मिलकर सोचते हैं।

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