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आज हमारे संविधान की आत्मा मर रही है

आज से ठीक 70 साल पहले दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा लिखित निर्मित संविधान 2 वर्ष, 11 माह 18 दिन में बनकर तैयार हुआ था। इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। इसको लागू करने के बाद ही हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र बन गए थे।

मर रही है संविधान की आत्मा

संविधान निर्माताओं ने संविधान के आरंभ में उसकी प्रस्तावना (preamble) लिखी है, जिसे संविधान की आत्मा भी कहा जाता है लेकिन आज संविधान की इसी आत्मा का अस्तित्व समाप्त किया जा रहा है। जिस तरह शरीर से यदि आत्मा निकल जाए, तो शरीर मृत हो जाता है, उसी तरह अगर संविधान की आत्मा ही निकाल ली जाए तो क्या संविधान बचेगा?

‘हम भारत के लोग’

फोटो प्रतीकात्मक है।

संविधान की प्रस्तावना का आरंभ होता है, ‘हम भारत के लोग’ से लेकिन अब भारत के ये लोग रहे कहां? आज ‘भारत के लोग’ एक भीड़ में बदल रहे हैं, जो कि धर्म और धार्मिक राष्ट्रवाद के नशे में चूर हैं। ये अपनी ताकत के बल पर किसी को भी जय श्री राम और भारत माता की जय बोलने के लिए मजबूर कर सकते हैं, ऐसा ना बोलने पर उनकी जान ले सकते हैं। मुसलमानों को तो पहले से ही पाकिस्तानी कहा जाता है, तो फिर क्या मुसलमानों को ‘हम भारत के लोग’ में शामिल किया जाता है?

संविधान और समाजवाद

अगला शब्द आता है ‘समाजवादी’। इस समाजवाद का तो हम बेड़ा ही गर्क कर चुके हैं। जहां भारत की 1% आबादी के पास देश की 76% संपत्ति हो, वहां आप समाजवाद की कल्पना कैसे कर सकते हैं?

हंगर इंडेक्स में 117 देशों की लिस्ट में 102वें पायदान पर रहने वाला देश, जहां के लोग एक घोर दक्षिणपंथी पार्टी (जो देश के सबसे अमीर आदमी द्वारा चलाई जा रही है) का समर्थन करते हैं, उस देश की जनता से क्या ही उम्मीद की जा सकती है? हमारे देश में लोगों को खाना ना मिले चलेगा, बशर्ते कि उनको कोई धर्म के नाम का नशा देता रहे।

संविधान और धर्मनिरपेक्षता

संविधान की उद्देशिका भी संविधान और भारत को धर्मनिरपेक्ष रूप प्रदान करती है। प्रस्तावना में अगला शब्द ‘धर्मनिरपेक्ष’ है लेकिन हम कैसे धर्मनिरपेक्ष हैं? जहां हर दूसरे दिन एक मुसलमान से कहा जाता है कि अपनी भारतीयता का प्रमाण दो।

संविधान की प्रस्तावना ही धर्म और उपासना की स्वतंत्रता देती है लेकिन जब यह संविधान बन रहा था और जब लागू हुआ तो जहां पर एक मस्जिद थी, उसको तोड़ दिया गया और अब उसकी जगह पर एक मंदिर का भव्य निर्माण होगा। यह है हमारे देश की धर्मनिरपेक्षता।

हम ऐसे धर्मनिरपेक्ष हैं, जहां देश की नागरिकता भी मुसलमानों को छोड़कर अन्य सभी धर्मों के लोगों को दी जाती है। अगर किसी अन्य धर्म का शरणार्थी भारत आए तो उसको शरणार्थी ही बोला जाता है लेकिन यदि कोई मुस्लिम बांग्लादेशी या रोहिंग्या शरणार्थी भारत आए तो उसे घुसपैठिया या आतंकवादी बोला जाता है।

बाकी धर्म के शरणार्थी भारत आए तो वे भारत के लोगों की सुविधाओं का उपभोग नहीं करते? लेकिन दृष्टिकोण यह बना दिया गया है कि बाहर से आने वाले मुस्लिम ही घुसपैठिये हैं और वे हमारे देश आकर हमारे नागरिकों के संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं।

संविधान और ‘लोकतान्त्रिक गणराज्य’

फोटो प्रतीकात्मक है।

संविधान की प्रस्तावना में अगला शब्द आता है ‘लोकतान्त्रिक गणराज्य’। हम ऐसे लोकतंत्र हैं, जहां एक राज्य को दो हिस्सों में तोड़कर रातों-रात केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाता है। वहां के विधानमंडल का काम राज्यपाल से लिया जाता है।

अनुच्छेद 370 ही वह शर्त है, जिस शर्त पर कश्मीर भारत में सम्मिलित हुआ था, भारत सरकार ने उस शर्त को ही खत्म कर दिया। वहां के लोगों को संगीनों के साये में कैद कर दिया। वहां फोन नेटवर्क और इंटरनेट बंद कर दिया। इस स्थिति को अब 100 से भी ज़्यादा दिन हो गए हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र ऐसा है।

हमारे देश का लोकतंत्र आज सिर्फ होटलों में सुरक्षित है। शायद इसे देखकर पूरी दुनिया विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र पर हंस भी रही हो। यहां पार्टियां अपने विधायकों को होटल में रखती हैं, सिर्फ इसलिए कि उनके विधायकों को कोई खरीद ना ले। मैं इस खरीद-फरोख्त को दल-बदल या जोड़-तोड़ तो बिल्कुल भी नहीं कह सकता हूं।

साफ-साफ कहता हूं कि विधायकों की खरीदारी होती है। संविधान का सामाजिक न्याय तो अब सिर्फ एक राजनीतिक नारा रह गया है। हर कोई पिछड़े, दलितों और आदिवासियों के नाम पर वोट तो मांग लेता है लेकिन आज उनकी स्थिति पहले जैसे ही हुई है। आज भी दलित सीवर में मर रहा है और आदिवासी अपने जंगल और ज़मीन के लिए जंगल में मर रहे हैं।

भारत का संविधान हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है लेकिन आज सरकार को उस ‘आज़ादी’ शब्द से ही डर लगने लगा है, जिसके लिए हमने कितनी जाने कुर्बान की हैं।

हर कोई जो सवाल पूछने की क्षमता रखता है, सरकार और पार्टी की नज़र में वह देशद्रोही, पाकिस्तानी और नक्सली है। प्रस्तावना ही हमें ‘अवसर की समता’ प्रदान करती है लेकिन आज संविधान दिवस से कुछ दिन पहले ही अपने लिए अवसर की समानता की मांग करते हुए स्टूडेंट्स पर दिल्ली पुलिस ने लाठीचार्ज किया। JNU जैसी संस्थान जो सभी को अवसर की समानता देती है, आज उसको षड्यंत्र का निशाना बनाया जा रहा है और अवसर की समानता को समाप्त किया जा रहा है।

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