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फातिमा लतीफ की सांस्थानिक हत्या पर क्यों खामोश है IIT मद्रास?

आईआईटी मद्रास की फातिम की खुदकुशी के बाद विरोध प्रदर्शन

IIT मद्रास में ना जाने कितने सपनों के साथ फातिमा लतीफ पढ़ने आई होंगी। उनके माता-पिता के लिए वह पल कितना गौरवान्वित करने वाला होगा जब उनकी बेटी का दाखिला IIT जैसे टॉप संस्थान में हुआ होगा।

IIT मद्रास में मानविकी प्रथम वर्ष की स्टूडेंट फातिमा लतीफ केरल के कोल्लम की रहने वाली थी। 9 नवंबर को जब वो मेस में खाना खाने गईं, तब रो रही थीं फिर कुछ दोस्तों ने उन्हें चुप कराया। बाद में रूम पर आने के बाद 10 नवंबर को जब उनकी माँ ने फोन किया और उन्होंने फोन नहीं उठाया, तब माँ को अपनी प्यारी बेटी फातिमा की सलामती की चिंता हुई।

दोस्तों को फोन करने पर जानकारी मिली कि फातिमा में खुदकुशी कर ली है। परिवार वाले यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि उनकी बेटी आत्महत्या कर सकती है, क्योंकि फातिमा ने अपनी बहन और माता-पिता को बताया था कि उनके संकाय के एक प्रोफेसर उन्हें परेशान करते हैं। फातिमा ने यह भी कहा था कि अलग धर्म से आने की वजह से उन्हें प्रताड़ित किया जाता था।

मैंने भी स्कूल में भेदभाव और शोषण का सामना किया है

कितनी अजीब बात है कि जिस देश के संविधान ने नागरिकों को आज़ादी, समानता और शिक्षा का अधिकार दिया है, वहां जातिगत भेदभाव के आधार पर किसी स्टूडेंट को इस हद तक परेशान किया जाता है कि उसके लिए आत्महत्या ही एकमात्र सहारा बन जाता है।

स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी शिक्षा का केंद्र है। अगर शिक्षक ही आए दिन अपनी मर्यादा का उल्लंघन करेंगे, तो स्टूडेंट्स के लिए भविष्य निर्माता की भूमिका में कौन होंगे? जिन संस्थानों में उनके बच्चे पढ़ते हैं, यह उनकी ज़िम्मेदारी होती है कि हर बच्चे को सही और सुरक्षित शिक्षा मिले।

विरोध प्रदर्शन करते लोग
विरोध प्रदर्शन करते लोग। फोटो साभार- सोशल मीडिया

IIT मद्रास का पूरा मामला तो जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा मगर एक स्टूडेंट के तौर पर मैंने भी शोषण और भेदभाव का सामना किया है, जिसे साझा करना बेहद ज़रूरी है। बचपन में जब टीचर मुझे अजीब तरह से छूते थे, तब नहीं समझ आता था कि वह हमारे साथ करना क्या चाहते हैं मगर जैसे-जैसे बड़ी हुई, हमें सब कुछ समझ आने लगा।

हम अक्सर देखा करते थे कि टीचर हमारे हाथों पर अपना हाथ फेरकर चले जाते थे। हमारे साथ-साथ सीनियर लड़कियों के पहनावे को भी अजीब निगाहों से देखा जाता था। कभी कभी डर लगता था कहीं कुछ गलत ना कर दें, क्योंकि माँ पूछा करती थीं कि स्कूल में शिक्षक हमारे साथ कुछ गलत तो नहीं करते हैं ना?

चुप्पी तोड़ने की ज़रूरत

इन शिक्षको को नैतिकता का पाठ क्यों नहीं पढ़ाया जाता है? आज शिक्षकों के व्यवहार की वजह से कई स्टूडेंट्स के साथ उनका बहस हो जाता है। यहां कि अधिक सवाल पूछने पर क्लास से बाहर कर दिया जाएगा। इन्हीं चीज़ों के कारण आज IIT मद्रास की स्टूडेंट फातिमा हमारे बीच नहीं हैं।

आज की तारीख में जाति-धर्म के आधार पर बच्चों को प्रताड़ित करना शिक्षकों का पेशा बन गया है। आज अमीर और गरीब के बच्चों में यह फर्क ऐसे नज़र आता है कि उन्हें आज भी पीछे वाली सीट ही बैठने को मिलती है। कई पेरेन्ट्स भी यह कहते हैं कि उनके बच्चों को गरीब स्टूडेंट्स के बीच ना बैठने दें। इन चीज़ों से भेदभाव और व्यापक स्तर पर होने लगता है।

आज टीचर के मन में कहीं ना कहीं जाति-धर्म के प्रति भेदभाव बरकरार है, जिसकी वजह से बच्चों के साथ समानता का व्यवहार कायम नहीं हो पा रहा है। आज हमारे गाँव के कई दलित स्टूडेंट्स स्कूल जाने से डरते हैं कि कोई शिक्षक या स्टूडेंट उनसे जाति के आधार पर भेदभाव ना करें। हमें वक्त रहते इन चीज़ों को बदलने की ज़रूरत है, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब एक-एककर कई स्टूडेंट्स इस श्रेणी में आते रहेंगे।

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