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छोटे शहरों में LGBTQ+ कम्युनिटी से होना आपकी ज़िन्दगी को और मुश्किल बना देता है

संसार में जेंडर को लेकर चर्चा एक नया विषय बनता जा रहा है। यह जेंडर ही है जो समाज में लोगों के प्रति विभिन्नता को दर्शाता है। महिलाओं का जेंडर अलग, पुरुषों का जेंडर अलग और जो इन दिनों की तरह हों उनको एक नई पहचान मिल जाती है।

हम शिक्षित भाषा में बात करें तो इस समुदाय को LGBTQ+ कम्युनिटी का नाम दिया गया है। सवाल यह उठता है आखिर ये LGBTQ+ है क्या? समलैंगिकता यानी कि किसी व्यक्ति का समान लिंग के प्रति आकर्षित होना है। वे पुरुष जो अन्य पुरुषों के प्रति आकर्षित होते हैं उन्हें ‘गे’ कहा गया है।

किसी और महिला के प्रति आकर्षित होने वाली महिलाओं को लेसबियन कहा जाता है। जो लोग महिला या पुरुष दोनों के प्रति आकर्षित होते हैं, उन्हें उभयलिंगी कहा जाता है। कुल मिलाकर (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) लोगों को LGBTQ+ कहा जाता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उलट है समाज की मानसिकता

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

थर्ड जेंडर के प्रति आज पूरी दुनिया में एक अजीब गहमागहमी है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2018 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिक संबंधों को भले ही अपराध की श्रेणी से हटा दिया था मगर समाज आज भी इन्हें अजीब निगाहों से देखता है।

आज स्थिति यह है कि ये लोग अपने समान लोगों से अगर शादी भी करते हैं, तो समाज इन्हें ताने मारता है। नौकरी के दौरान भी इन पर तंज कसा जाता है।

सरकार की तरफ से दी जाने वाली सुविधाओं को पाने का अधिकार इस समाज ने इन्हें नहीं दिया है, क्योंकि ये प्रकृति के बनाए हुए इंसानों से अलग हैं।

ऐसी सोच रखने वालों और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते लोगों पर सरकारों को फिर से सोचने की ज़रूरत है। सरकार को विचार करना होगा कि उन लोगों का क्या किया जाए, जो इन्हें पूर्ण मानव नहीं समझते हैं। आज दुनिया के 25 देशों ने समलैंगिक विवाह करने की अनुमति दी है। वहीं, भारत के संदर्भ में बात करें तो समलैंगिक विवाह का पहला मामला छत्तीसगढ़ में देखने को मिला, जहां तनुजा चौहान और जया वर्मा ने शादी की।

ऐसे ना जाने कितने जोड़े होंगे जिनको उनके अधिकारों से वंचित रहना पड़ा और आज भी वे कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं। कई देशों में LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों को अभी भी उतने अधिकार नहीं हैं। गौरतलब है कि LGBTQ+ समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारत ने धारा 377 को असंवैधानिक करार दे दिया है।

मेरे गाँव में LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों के साथ भेदभाव होता है

मैंने अपनी आंखो से जिन चीज़ों को देखा और महसूस किया है, आपको बताना चाहूंगी। मेरे गाँव में LGBTQ+ समुदाय के लोगों को हिजड़ा कहकर बुलाया जाता है। यहां तक कि महिलाओं को हिजड़ी भी कहा जाता है। यह सब सुनकर मुझे बहुत अजीब लगता था कि ये लोग ऐसा क्यों कहते है?

घर वालो को पता होता है कि उनकी बेटी आम लड़कियों की तरह नहीं हैं। इसी डर से वे अपनी बेटियों को घर से बाहर नहीं जाने देते हैं। मेरे गाँव में LGBTQ+ कम्युनिटी की लड़कियां हमेशा अपने साथ बड़ा से दुपट्टा लिए खुद को उससे ढककर रहती हैं। रिश्तेदारों से हमेशा दूर रहती हैं।

घर वालों की चिंता का विषय यह था कि लोग अगर जान जाएंगे उनकी बेटी ‘गे’ है, तो क्या कहेंगे। ऐसी चीज़ें आज भी मेरे गाँव में होती हैं मगर शर्म की बात यह है कि आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं है। मेरे गाँव में जिस तरीके से LGBTQ+ कम्युनिटी के लोगों का मज़ाक उड़ाया जाता है, वह शर्मनाक है।

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