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झारखंड के इस गाँव की महिलाएं पीरियड्स के दौरान गंदे कपड़े का प्रयोग करने पर क्यों हैं मजबूर?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मैं झारखंड के दुमका ज़िले के नोनीहाट प्रखंड के ठारी गाँव का रहने वाला हूं। कई दफा टीवी पर विज्ञापन देखता हूं जिसमें बताया जाता है कि माहवारी के दौरान महिलाओं को किन-किन चीज़ों का ध्यान रखना चाहिए वगैरह।

कई वर्षों से टीवी पर पर इस तरह के विज्ञापन देख-देखकर ऐसा लगने लगा था कि वाकई में ग्रामीण इलाकों में पीरियड्स को लेकर लोगों में जागरूकता होगी मगर ज़मीनी स्थिति कुछ और ही तस्वीर पेश करती है।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

पहली बार देखा पीरियड्स के खून वाला कपड़ा

आज से 6 महीने पहले की बात है जब मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ सुबह ब्रश कर रहा था, तब मेरी नज़र खून के निशान वाले एक कपड़े पर गई।

पहली दफा तो लगा कि किसी को चोट लगी होगी मगर अगले दिन भी सड़क किनारे एक या दो नहीं, बल्कि खून के निशान वाले कई कपड़े पड़े थे।

मैं अपने घर आकर एक रिश्तेदार से खून लगे कपड़े के बारे में पूछा तब उन्होंने मुझे सिर्फ इतना कहा कि उस कपड़े को क्रॉस कर नहीं गुज़रने के लिए। यह बात मेरे समझ से परे थी फिर मैंने मेरे ही गाँव के कुछ सीनियर स्टूडेंट्स से पूछा कि मेरे रिश्तेदार ने कहा है खून लगे हुए कपड़े को क्रॉस नहीं करने, ऐसा क्यों?

मेरी बातें सुनकर वे ज़ोर-ज़ोर से हंसने लग गए फिर भी मुझे कुछ नहीं समझ आया। जब कुछ सीनियर स्टूडेंट्स वहां से चले गए तब हमें बताया गया कि उन गंदे कपड़ों का इस्तेमाल महिलाएं माहवारी के दौरान करती हैं।

कुछ वक्त बाद स्कूल में जब मास्टर साहब विज्ञान पढ़ा रहे थे तब उन्होंने हमें बताना शुरू किया कि किस तरीके से अधिकांश ग्रामीण महिलाएं पैसों के अभाव में सैनिटरी पैड की जगह कपड़े या राख का इस्तेमाल करती हैं।

स्कूल से पढ़कर जब घर आया तब टीवी पर फिर वही विज्ञापन देखा कि ग्रामीण इलाकों में सरकार द्वारा माहवारी जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। अब मैं समझ चुका था कि यह सब खोखले सरकारी दावे हैं।

सैनिटरी पैड खरीदने के पैसे कहां से लाएंगे?

मेरा एक करीबी दोस्त, जिसका नाम विमल है। उस दौरान उसकी नई-नई शादी हुई ही थी मगर हमारे बीच मज़ाक में बहुत सारी बातें होती थीं। एक रोज़ हमने पूछा कि पीरियड्स के दौरान तुम अपनी पत्नी को सैनिटरी पैड लाकर देते हो क्या?

उसका जो जवाब था वो वाकई में इस सिस्टम पर तमाचा है। उसने कहा,

तुम्हें तो पता ही है कि हमारे घर पर सभी दूसरों की ज़मीन पर खेती करते हैं। किसी तरह से खाने के लायक अनाज हमें मिल जाता है। ऐसे में हम सैनिटरी पैड खरीदने के पैसे कहां से लाएंगे?

उसने मुझे विस्तार से बताया कि पीरियड्स के दौरान उसकी पत्नी ही नहीं, बल्कि घर की अन्य महिलाएं भी कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। दोस्त ने यह भी कहा कि उसकी पत्नी को गाँव की अन्य महिलाएं बताती हैं कि वे भी पीरियड्स के दौरान कपड़े का ही प्रयोग करती हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मैं आपको आज की स्थिति बताता हूं कि मेरे गाँव में शायद ही किसी महिला को यह जानकारी होगी कि पीरियड्स के दौरान स्वच्छता के लिहाज से किन-किन चीज़ों का ख्याल रखना पड़ता है? आर्थिक तंगी के कारण जिस तरह से वे पैड नहीं खरीद पा रही हैं वह बेहद शर्मनाक है।

मैं हेमंत सोरेन की सरकार से यह अपील करना चाहूंगा कि माहवारी जागरूकता के संदर्भ में कोई सकारात्मक पहल की जाए ताकि ना सिर्फ ग्रामीण महिलाओं की परेशानियां कम हों, बल्कि व्यापक स्तर पर बेहतर तस्वीर उभरकर सामने आए, क्योंकि कपड़े का प्रयोग करना महिलाओं की मजबूरी नहीं सरकारी विफलता है।

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