मैंने बहुत लोगों से सुना है कि एक सफल व्यक्ति के पीछे हमेशा एक महिला के त्याग, उसके मूल्यों और संघर्षों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। हम सब महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता, सत्य और अहिंसा के पुजारी के रूप में जानते हैं। समुचा विश्व गाँधी एवं उनके विचार, मूल्य और आदर्श के बारे में जानता है लेकिन वर्तमान समय में उनके परिवारिक योगदान को बहुत कम गिना जाता है।
बापू को हम बचपन की किताबों से लेकर सामाजिक एवं जीवन के व्यावहारिक शिक्षाओं में पढ़ते आ रहे हैं लेकिन उनके दर्शन, आदर्श और मूल्यों से इतर उनका एक अनदेखा चेहरा और अनपढ़ा पहलू भी है, जो ‘बा’ अर्थात् कस्तूरबा के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा एवं मोहनदास से महात्मा बनने के सफर में उनके अभूतपूर्व योगदान के बारे में है, जो बहुत कम सुनने, पढ़ने और लिखने को मिलता है।
गाँधी की स्तम्भ थीं कस्तूरबा
कस्तूरबा केवल 13 वर्ष की थीं, जब उन्होंने गाँधी के जीवन में एक पत्नी के रूप में प्रवेश किया था। उन्हें अपनी माँ द्वारा हिन्दू रीति रिवाज़ों एवं सच्चे अर्थों में एक हिन्दू स्त्री के स्त्रीत्व के बारे में प्रशिक्षित किया गया था, जिसे उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक निभाया और धीरे-धीरे वह अपने जीवन को भूलकर गाँधी के लिए एक अनदेखा स्तम्भ बन गईं।
‘बा’ की महत्वपूर्ण भूमिका
- 1904 में कस्तूरबा ने गाँधी एवं उनके साथियों की डरबन के पास फीनिक्स को स्थापित करने में सहायता की। साथ ही दक्षिण अफ्रीका में राजनीतिक और सामाजिक सुधारों में भी अपनी भूमिका निभाई।
- 1913 में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अमानवीय परिस्तिथियों में भारतीयों के काम करने के कारण उत्तरदायी सरकार के खिलाफ इसका पुरज़ोर विरोध किया, जिस कारण उन्हें तीन महीने कारावास की सज़ा हुई।
- 1917 में जब गाँधी बिहार के चंपारण में किसानों के आंदोलन में सहायता कर रहे थे, तब ‘बा’ महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य कर रही थीं।
- वह महिलाओं को सफाई, अनुशासन एवं स्वास्थ्य के प्रति आगाह कर रही थीं। इससे साबित होता है कि वह शुरू से ही महिलाओं के सशक्तिकरण एवं उनके समानता की पक्षधर थीं।
- 1923-24 में उन्होंने बरसाड़ सत्याग्रह में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- 1928 का बारदोली सत्याग्रह भारत के इतिहास में वह स्वर्णिम प्रस्तर है, जिसमें उनके नेतृत्व में देश की महिलाओं ने अपनी सामाजिक प्रथाओं का त्याग करके जात पात और धर्म से इतर घर की चारदीवारी से निकलकर देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया।
इसका सम्पूर्ण श्रेय उन्हें ही जाता है कि वह किस प्रकार महिलाओं के सम्मान एवं समानता को देश की आज़ादी के लिए महत्वपूर्ण मानती थीं।
- वह 1921 के असहयोग आंदोलन में गाँव जाकर महिलाओं को आंदोलन में योगदान देने के लिए प्रेरित कर रही थीं। साथ में शराब एवं विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार करने के लिए समस्त देशवासियों से अपील भी कर रही थीं।
असहयोग आंदोलन के दौरान गाँधी की गिरफ्तारी के बाद उन्होंने देशवासियों एवं महिलाओं से अपील की जो इस प्रकार है-
- सभी पुरुष और स्त्रियां विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करेंगे एवं खादी को अपनाएंगे। साथ ही साथ दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे।
- सब लोग धागा कातना अपना धार्मिक कर्त्तव्य समझेंगे और अन्य को भी सिखाएंगे।
- सभी व्यापारी विदेशी कपड़ों का व्यापार करना छोड़कर खादी को प्रचारित करेंगे।
महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत
उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं का दृढ़तापूर्वक नेतृत्व किया, जिस कारण महिलाओं ने अपनी ताकत को पहचाना। इसी व्यवहार ने देश की महिलाओं के हृदय में ‘बा’ का स्थान स्थापित किया एवं देश के स्वतंत्रता संग्राम में पुरुषों की भांति महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की।
वह अस्पृश्यता की धुर विरोधी थीं इसलिए उन्होंने हरिजन बिटिया लक्ष्मी को गोद लेकर सामजिक रूढ़ियों को नाकारा साबित किया। गाँधी और उनके बीच एक गहरी अनकही पारस्परिक समझदारी थी।
उनके लिखे पत्रों एवं अन्य लेखों से यह बात पता चलती है कि गाँधी उनके ऊपर कितने निर्भर थे। गाँधी अक्सर कहते थे कि उनका सत्याग्रह दर्शन ‘बा’ के चरित्र की परछाई है।
गाँधी और ‘बा’ की सहभागिता
गाँधी कहते थे, “मैंने अहिंसा का संदेश अपनी पत्नी ‘बा’ से सीखा है।”
‘बा’ केवल गाँधी के सत्य के साथ प्रयोगों की एकमात्र साक्षी नहीं थीं, बल्कि वह उनके राजनीतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक संघर्षों में भी सहभागी थीं।
गाँधी कहते थे,
‘बा’ के बिना मैं अपने ब्रह्मचर्य एवं आत्मसंयम के संकल्पों में सफल नहीं हो सकता था। ‘बा’ जितना मुझे समझती हैं, उतना मुझे कोई नहीं समझ सकता है। ‘बा’ मेरे शब्दों में अविश्वसनीय, अकल्पनीय और अकथनीय हैं।
गाँधी के दर्शन, विचारों एवं उनके सिद्धांतों, मूल्यों में ‘बा’ की सम्पूर्ण भूमिका परिलक्षित है। गाँधी ‘बा’ के बिना सच्चे अर्थों में सम्पूर्ण नहीं हो सकते हैं।
गाँधी देश के प्रति अपने नैतिक कर्तव्यों का निर्वहन कर पाए क्योंकि ‘बा’ ने बिना किसी शिकायत के एक पत्नी, माँ, बेटी और देश को एक पुल की भांति गाँधी के साथ एकता के सूत्र में पिरोए रखा था।
‘बा’ गाँधी के हर निर्णयों, उनके विचारों, मूल्यों और उनके संघर्षों में उनके साथ एक स्तम्भ बनकर खड़ी थीं। राष्ट्रपिता गाँधी की पत्नी रहते हुए ‘बा’ ने अकथनीय त्याग किया। जीवन में अनेक बार हृदय द्रवित होने के बावजूद उन्होंने कभी गाँधी और अपने बेटों से कोई शिकायत नहीं की।
‘बा’ का चरित्र अनुकरणीय
‘बा’ हमारी राष्ट्रमाता केवल इसलिए नहीं हैं कि वह राष्ट्रपिता गाँधी की पत्नी हैं, बल्कि इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने खुद को व्यक्तिगत और राजनीतिक रूप से सब कुछ त्याग कर सामंजस्य बनाकर समस्त भारतीयों के समक्ष एक आदर्श के रूप में स्थापित किया।
‘बा’ के चरित्र एवं उनके दर्शन, विचार और मूल्यों के कारण वह भारतीय महिलाओं द्वारा अनुकरण किए जाने के लिए एक आदर्श के रूप में हैं। यह लेख ‘बा’ की आवाज़ को मुखर करने की कोशिश करता है, जिसको गाँधी और विश्व को सुने जाने की ज़रूरत है।
नोट: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य ‘द सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा’ किताब से लिए गए हैं।