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जेएनयू में स्वामी विवेकानंद की मूर्ति के अपमान पर क्यों चुप हैं तथाकथित बुद्धिजीवी?

पिछले दिनों जेएनयू में फीस बढ़ाए जाने को लेकर जो आंदोलन हुए, उसमें कई लोग सामने आए। फीस वृद्धि को मैं भी गलत मानता हूं और जिस तरह से लोगों ने इसके खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई उसकी सराहना करता हूं।

यह आंदोलन युवाओं की अपने हक को लेकर प्रतिबद्धता ही थी, जिसकी वजह से अंततः फीस के फैसले में संशोधन किया गया लेकिन तुरंत इसी के बाद इसी जगह से पोषित विकृत मानसिकता वाले लोगों द्वारा देश की शान, युगपुरुष और भारत वर्ष की पहचान स्वामी विवेकानन्द की मूर्ति का अपमान किया गया। वह मूर्ति जिसका अभी अनावरण तक नहीं किया गया था।

जेएनयू में स्वामी विवेकानंद की मूर्ति पर अपमानजनक शब्द, फोटो साभार- ट्विटर

इस शर्मनाक हरकत के बावजूद, इसके विरूद्ध बोलने के लिए कोई भी बुद्धिजीवी सामने नहीं आया। आते भी तो कैसे? वे तो खुद दिगभ्रमित हैं। ये तथाकथित बुद्धिजीवी समझ ही नहीं पाएं हैं कि यह केवल किसी पार्टी का विरोध कर रहे हैं या सनातन धर्म के प्रतीक भगवा का या भारतीय परंपरा का?

क्या जेएनयू में सुविधाएं सही हाथों तक पहुंच रही हैं?

जेएनयू को सालाना  352 करोड़ की सब्सिडी मिलती है। यानी प्रतिवर्ष हर छात्र को 4 लाख रुपये की सब्सिडी मिलती है। क्या वह रुपये और सुविधायें सही हाथों में पहुंच रही हैं? या वह हाथ केवल हमारे वेदिक पहचानों की विरोध में ही उठ रहे हैं।

यही समस्या भी है। गरीबों को मिले वह ठीक है लेकिन जो समर्थ हैं उनको जब फ्री की रोटी तोड़ने की आदत हो जाती है, तो वह कैम्पस छोड़ना ही नहीं चाहते और वहां रहकर नई-नई विकृत मानसिकताओं की पराकाष्ठा को पार करने का दुस्साहस करते हैं। क्या ऐसे लोगों को सालों तक वहां फ्री की रोटी तोड़ने देना चाहिये?

यह सारी बातें साफ दिखाती हैं कि कई विद्वानों को देने वाले देश का सबसे नामचीन विश्वविद्यालय, राजनीति करने और राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पूरा करने की एक फैक्ट्री बनता जा रहा है।

विचारों का विरोध तो ठीक है लेकिन इसकी आड़ में महापुरुषों का अपमान कहां तक सही है? क्यों भगवा राष्ट्र का प्रतीक ना रहकर एक पार्टी का प्रतीक बन गया है जो गलत है। हम क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि भगवा हमारी वैदिक संस्कृति है, जो स्वामी दयानंद सरस्वती से लेकर स्वामी विवेकानंद तक की पहचान है। यह भारत वर्ष की पहचान है।

जगह मायने नहीं रखती। संसार में यदि कहीं भी सनातन धर्म का अपमान होगा तो वह भारत के एक धर्म का अपमान होगा। सभी धर्मों का आदर और सम्मान करने वाले इस देश में, युग पुरुषों का अपमान निश्चित तौर पर एक जागृत भारतवासी कदापि बर्दाश्त नहीं करेगा।

 

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