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अयोध्या विवाद क्या सच में सुलझ गया?

1992 में देश की न्यायपसंद लोकतांत्रिक आवाज़ेंं 6 दिसंबर को मातम करती हैं। अब उससे सिर्फ 27 दिन पहले यानि की 9 नवंबर को भी सर्द आहें भरी गई और मातम मनाया गया। 9 नवंबर 1989 को बर्लिन की दीवार गिरा दी गयी थी और  यहां उसी 09 नवंबर 2019 को भारत में लोगों के दिलों में दीवार बना दी गयी है।

अयोध्या विवाद पर आए फैसले की हकीकत को जानने के लिए जब मैं अपने दिल के दरबार में हाज़िर हुआ और पूरे मामले को पेश किया तो दिल ने एक ही बात कहीं कि अयोध्या विवाद पर फैसले से पहले तो बाबरी मस्ज़िद को तोड़ने वालों के खिलाफ फैसले आने चाहिए थे।

भारत में कानून को मानने वाले लोगों के होंठ कानून के धागों से सिल दिए गए हैं। इसलिए अन्याय के बावजूद भी शांति है लेकिन इस फैसले पर खुश होने वाले अपने दिल के दरबार में इस मुकदमे को पेश करें और देखें कि दिल जो सबसे बड़ा न्यायाधीश होता है, वह क्या फैसला देता है।

क्या विवाद सच में खत्म हो गया?

आज कुछ लोगों के दिल  इसलिए खुश हैं कि बरसों पुराना विवाद खत्म हो गया है और आगे इस विवाद को लेकर हिंसा नहीं होगी, तो यह गलतफहमी है।

यह विवाद अब सिर्फ अयोध्या तक नहीं रहेगा बल्कि देश के दूसरे राज्य और ज़िलों में अलग-अलग नाम से आएगा क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने बाबरी मस्ज़िद तोड़ने वाली भीड़ और विचारधारा दोनों को बढ़ावा दिया है।

इस फैसले को देश के न्यायपसंद नागरिक सम्मान के साथ स्वीकार करें, ये मुमकिन नहीं बल्कि बहुसंख्यकवाद आस्थाओं का सम्मान करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायपालिका पर न्यायपसंद लोगों के भरोसे को कमज़ोर कर दिया है।

इस लोकतांत्रिक देश में मुझे भी बोलने का हक है

सर्वोच्च न्यायालय और इस फैसले के पक्षधर लोगों को समझना चाहिए कि यह विवाद न्यायपसंद लोगो के लिए मस्ज़िद और ज़मीन का नहीं है बल्कि लोकतंत्र में उस पहचान का है। जो बहुसंख्यको की तरह बराबरी का सम्मान रखती है। लोकतंत्र के पक्ष में अगर सिर्फ एक आवाज़ हो और देश प्रदेश उस आवाज़ के खिलाफ हों फिर भी न्यायपालिका का फर्ज़ होता है कि उस एक आवाज़ को ही जिताया जाए।

मैं राजनीतिक रूप से गलत व्यक्ति हूं। मेरा यह लेख पढ़कर अगर मेरे लिए कोई गलत राय बना भी ली जाए तो मुझे परवाह नहीं क्योंकि मैं अपनी आवाज़ को लोकतंत्र और संविधान के पक्ष में मानता हूं जिसको तब तक शांत नहीं होने दूंगा जब तक यह आवाज़ ज़िंदा है।

मुझे बिल्कुल आश्चर्य नहीं होगा देश के हालात को देखते हुए अगर न्यायालय मेरे खिलाफ इस लेख को लिखने पर कार्यवाही भी कर ले क्योंकि अंग्रेज़ो के गुलाम भारत में भी ऐसा ही होता था।

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