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JNU के स्टूडेंट्स के हाथों में महंगे फोन लोगों को क्यों अखर रहे हैं?

कुछ दिन पहले मेरे एक पत्रकार मित्र से मेरी बातचीत हुई। उन्होंने JNU के संदर्भ में काफी बातचीत की। मैंने भी उनसे तमाम प्रश्न किए। उन्होंने बताया कि JNU में देश विरोधी नारे लगे हैं या नहीं, यह अभी भी जांच का विषय है और वह जांच चल रही है। उसकी विस्तृत जानकारी नहीं है और पूरा प्रकरण न्यायालय की जद में है।

इसी बातचीत में मैंने फीस वृद्धि व्यवस्था को मैंने जानने का प्रयास किया तो सरकार के एजेंडे में शामिल तथ्यों से कुछ मत निकल कर सामने आए, जिसमे स्पष्ट हुआ कि सरकार की मंशा वर्तमान व्यवस्था के अनुसार JNU की फीस 60 से 70 हज़ार किये जाने की है। अब सोचना यह है कि सरकार गरीब परिवार को शिक्षा देना चाहती है या नहीं?

बाकियों का नहीं मालूम लेकिन मैं बढ़ी फीस नहीं दे सकता

मैं बाकी लोगों के बारे में नहीं जानता इसलिए उनके उदाहरण मेरी नज़र में नहीं है, परन्तु मैं स्वयं के आधार पर इतना बता सकता हूं कि मेरे पिताजी को 1000 रुपये प्रतिमाह पेंशन मिलती है। हम काम चलाऊ खेती करते हैं, उतनी है जितना परिवार साल भर में अपना पेट भर सके।  उस हिसाब से पिताजी की वार्षिक आय समस्त बाकी स्रोत  मिलाकर हमारी आय 36000 रुपए के करीब बनती है।

पूर्व के लेखों में मैं बता भी चुका हूं कि मैं परास्नातक हेतु IIT गुवाहाटी में दाखिला नहीं ले सका था क्योंकि मैं उस संस्थान की फीस नहीं भर सकता था। अब सोचिये जिस परिवार की वार्षिक आय 36 हज़ार रुपए हो, वह एक बच्चे पर वार्षिक 60 से 70 हज़ार रुपए कैसे खर्च कर सकेगा?

यदि कर्ज़ लेकर खर्च किया भी, तो परिवार के अन्य सदस्यों का गुज़ारा कैसे चलेगा?

10 हज़ार का फोन सबको क्यों इतना चुभ रहा है?

अभी कुछ दिन पूर्व एक सज्जन ने मुझसे कहा,

फीस 300 ही तो हुई है, यदि 10 हज़ार का फोन चला सकते हैं, तो फीस देने में क्या बुराई है? दरअसल, आधी अधूरी जानकारी का अभाव ऐसे ही वक्तव्य उच्चवारित करवाता है।

आपको बता दूं कि ट्यूशन फीस 300 रुपए हुई है बाकी रहने, खाने, लाइब्रेरी आदि शुल्क मिलाकर 60 से 70 हज़ार किये जाने की सरकार की योजना है।

10 हज़ार का फोन परिवार ने 10 रुपये फीस चुका कर, अपने खर्चो में कटौती करते हुए, जैसे तैसे बच्चों को दिलाया है, जिससे वह आधुनिकता में जी सके। क्या ये लोग यही चाहते हैं कि गरीब व्यक्ति के हाथों में नई तकनीकि ना पहुंचे ?

यदि फीस 60 से 70 हज़ार कर दी जाएगी तो सोचिये, जो स्वयं पहले से कर्ज़ में डूबा होगा, तो वह कौन से खर्चो में कटौती करेगा व किस तरह 10 हज़ार का फोन दिलाएगा।

मुझे याद है, पिताजी इकलौते ही कमाने वाले थे। बड़े भाई कोचिंग से अपना खर्च चलाते थे और हम छोटे भाइयों के शौक की पूर्ति करते थे उन्होंने कभी फोन नहीं चलाया लेकिन मुझे याद है कि मेरी ज़िद्द पर उन्होंने मुझे स्नातक प्रथम वर्ष में सैमसंग गैलक्सी स्टारफोन दिलवाया था। सिर्फ इसलिए क्योकि मुझे नेट के माध्यम से कुछ चीज़ें खोजने की ज़रूरत रहती थी। उन्होंने अपने हर शौक हम छोटे भाइयों के आगे भुला दिए थे।

अब अगर उस समय भी ट्यूशन देने वाले गुरुजी यह कह देते कि फोन चलाने के लिए रुपये हैं लेकिन ट्यूशन फीस के लिये नहीं, तो शायद मैं पढ़ भी नहीं पाता, क्योकि मुझे समस्त ट्यूशन देने वाले गुरुजनों ने निःशुल्क पढ़ाया था ।

शिक्षा का अकाल उससे मत पूछिए जो संसाधनों से परिपूर्ण हो, शिक्षा का अकाल उससे पूछिये जो झांकती खिड़कियों से पढ़ने की लालसा रखता है। पूंजीवादी शिक्षा की ओर बढ़ने से बेहतर है, सर्व शिक्षा सुलभ शिक्षा की ओर बढ़ा जाए। शायद देश का वास्तविक विकास हो सके।

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