एक बात बताओ, JNU के लड़के सिगरेट पीते हैं, नशा करते हैं, कंडोम यूज़ करते हैं (हालांकि ये सही चीज़ है, फिर भी) और सालों साल फेल होकर हॉस्टल में टिके रहते हैं, तो JNU प्रशासन उन छात्रों पर कार्रवाई क्यों नहीं करता? क्यों नहीं फेल होने की सीमा तय कर दी जाती? क्यों नहीं नशा कैंपस में दाखिला खारिज करने की वजह बन जाता?
ये कौन सा रास्ता है कि कुछ लड़के अभद्र हुए तो कॉलेज की फीस बढा दो या उन तमाम छात्रों को उसी कटघरे में खड़ा कर दो, जो वैसे बिल्कुल नहीं है।
आज JNU और कल सरकारी स्कूल होंगे
ऐसा कौन सा स्कूल कॉलेज है, जहां कुछ लड़के दारू नहीं पीते, सुट्टा नहीं मारते या सेक्स नहीं करते? तो क्या उन कॉलेजों और स्कूलों को बंद करने की साज़िश रच दी जानी चाहिए या फीस बढा देनी चाहिए? 11 बजे कैंपस बन्द कर देने से क्या आप सेक्स रोक देंगे? नशा रोक देंगे? गाली गलौज और स्वतंत्रंता के प्रदर्शन को रोक देंगे?
आज JNU को कुचला जा रहा है और कल को जब सरकारी स्कूलों को कुचला जाएगा, बन्द किया जाएगा तो कौन बोलेगा? कौन आवाज़ उठाएगा? खैेर, आवाज़ तो पहले ही कुचल दी आपने।
आईए ज़रा असली मुद्दा समझें
दरअसल, अब हो क्या रहा है यह समझिए वह भी ज़रा तरीके से।
- IIT, JNU, BHU जैसे सरकारी शिक्षण संस्थानों को क्षत-विक्षत किया जाएगा।
- फीस बढ़ा दी जाएगी,
- सुविधाओ में कटौती कर दी जाएगी,
- गुणवत्ता की ऐसी की तैसी कर दी जाएगी,
- फंड काट दिए जाएंगे।
दूसरी तरफ एक नया विश्वविद्यालय प्रकट होगा, जो कुछ ऐसा कहलाएगा “अम्बानी ग्रुप ऑफ कॉलेज – देश का कॉलेज”।
- जिसकी फीस लमसम सरकारी के बराबर होंगी,
- सुविधाएं बेहतर नहीं, बहुत बेहतर होंगी और
- जनता मूर्खों की तरह सोचेगी कि संस्थान सुविधा दे रहा है इसलिए पैसा ले रहा है।
सरकारी संस्थानों से निकलकर बच्चे प्राइवेट में जाने लगेंगे। सरकारी संस्थानों की हालात कुछ वर्षों में खराब हो जाएगी और फिर एक दिन संसद में लक्ष्मी स्वरूपा वित्तमंत्री बोलेंगी कि सरकारी संस्थान रेवेन्यू नहीं दे रहें हैं इसलिए हम उसे बेच रहें है या बंद कर रहें हैं।
चौंकिए मत, BSNL, एयर इंडिया, भारतीय रेलवे, HAL, DRDO और तमाम PSU को तो आप देख ही रहे होंगे। इसलिए असहमति तो रखना ही मत। अपने गाँव में देखिए कि सरकारी विद्यालयों को प्राइवेट कान्वेंट ने कैसे बर्बाद किया है।
कभी इसपर बैठकर सोचना अगर TikTok में लड़कियों के वीडियो देखने से फुरसत मिले तो।
बड़ा सिंपल सा कॉन्सेप्ट है
बड़ा बेसिक इकॉनोमिक और प्राइवेटाइज़ेशन का कॉन्सेप्ट है भाई, बिना लोड के समझ जाओगे। यह मैं अपने मन से नहीं कह रहा।
- जब-जब पूंजीवाद आया है, तब-तब उसने पहले सियासत के मुंह मे लक्ष्मी ठूंसी हैं और फिर जनता के दिमाग मे अपनी उत्कृष्ट सेवा।
- अपनी दरियादिली दिखाते हुए मुश्किल में काम आने वाले जनता की आधारभूत ज़रूरतों के चारो पायों को तोड़ा है,
- खुद पर पूरी तरह आश्रित किया है और
- फिर शुरू हुआ है गुलामी और शोषण का नंगा नाच।
ये गुलामी का पहला अध्याय रहा है, यानी पहली सीढ़ी ।
जनता को कभी पता नहीं चलता कि उसका पतन हो रहा है, क्योंकि सियासी दिखावे में जनता आत्ममुग्ध रहने लगती है। ठीक उसी भूखे मज़दूर की तरह, जिसके पेट मे दाना ना हो लेकिन बोलता रहता है कि हमारे दादा के पास सोने का अलमारी था। यहां भी कुछ ऐसा ही है।
गिरते ग्रोथ रेट के बावजूद पाकिस्तान के मुकाबले सस्ते टमाटरों का गुरूर
अगर पाकिस्तान या इराक की समस्या झेलती जनता से पूछोगे कि देशभक्ति कितनी है, तो वे भी सीना चीरकर दिखा देंगे लेकिन असल हकीकत ग्रोथ रेट से पता चलती है, जो कोई देखना नहीं चाहता।
विभिन्न मापदंडो में जो आज भारत की रैंकिंग है, उससे देशभक्ति और पाकिस्तान के आगे 56 इंच सीना दिखाना मायने नहीं रखता। दुनिया के बदहाल से बदहाल देशों की जनता को भी यह पता नहीं होता कि वे कितनी बदहाल हैं क्योंकि वे अकेले बदहाल नहीं होते, उनका पूरा देश पूरा समाज बदहाल होता है। उनको लगता है कि सब ऐसे ही है।
ठीक वैसे ही जैसे भारत में टमाटर 100 रुपये किलो होना यहां की बर्बाद जनता के लिए संतोषजनक है, क्योंकि पाकिस्तान में टमाटर 300 रुपये किलो है।
का बोले अब हम, बताओ”