जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स के विरोध-प्रदर्शन ने सरकार को झुकने पर विवश कर दिया। केन्द्र सरकार ने बढ़ी हुई हॉस्टल फीस रिवाइज़ कर दी है जो कि आंशिक रूप से प्रस्तावित फीस स्ट्रक्चर से कम है। साथ ही गरीब स्टूडेंट्स को आर्थिक सहायता देने के लिए एक योजना प्रस्तावित की गई है, जिसकी जानकारी एचआरडी मिनिस्ट्री ने ट्विटर के ज़रिये दी है।
#JNU Executive Committee announces major roll-back in the hostel fee and other stipulations. Also proposes a scheme for economic assistance to the EWS students. Time to get back to classes. @HRDMinistry
— R. Subrahmanyam (@subrahyd) November 13, 2019
इन सबके बीच सवाल यह है कि अब तक जेएनयू स्टूडेंट्स की बात क्यों नहीं मानी गई थी? चाय बेचकर पीएम बनने वाले शख्स का संघर्ष यदि हमें पसंद है, तो दस रुपए किराये में गुज़र-बसर कर पीएचडी करने वाले स्टूडेंट्स से हमें दुश्मनी नहीं होनी चाहिए।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और जवाहर नवोदय विद्यालय जैसे संस्थानों की स्थापना का उद्देश्य ही समाज के उस तबके के स्टूडेंट्स को सस्ती व अच्छी शिक्षा प्रदान करना था, जो बड़े शहर जाकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं ग्रहण कर सकते हैं।
जिन परिवारों की इतनी आमदनी नहीं है कि वे अपने बच्चे को उच्च शिक्षा के लिए बड़े शहर भेज पाएं, उनके लिए तो संकट की स्थिति ही होगी जब जेएनयू जैसे संस्थान की फीस में 200 से 300 प्रतिशत बढ़ोतरी हो जाए। सबसे दुखद बात तो यह है कि जब स्टूडेंट्स इसके विरोध में अवाज़ बुलंद करते हैं, तब पुलिस द्वारा उन पर लाठियां बरसाई जाती हैं। यहां तक कि उन्हें मुफ्तखोर भी कह दिया जाता है।
ये वे लोग होते हैं, जिन्होंने जीवन में खुद कभी कोई एंट्रेंस एग्ज़ाम पास नहीं किया होता है और दूसरों पर सवाल खड़े करते हैं। ये लोग फ्री इंटरनेट के बल पर व्हाट्सएप्प और फेसबुक के ज़रिये ज्ञान बांटते फिरते हैं। उन्हें समझना होगा कि भारत देश में शिक्षा का अमेरिकी मॉडल नहीं चल सकता है।
जेएनयू को वामपंथ का तमगा देना शर्मनाक
देश में कुछ ही सरकारी संस्थान ऐसे हैं, जहां पढ़ने के लिए विदेशों से भी स्टूडेंट्स आते हैं। देश के विकास में स्थाई श्रमिक मत बनिए, क्योंकि ऐसे मुद्दों पर हमको आपको मिलकर लड़ाई लड़नी है। हमारी विचारधारा वामपंथी हो या दक्षिणपंथी, उदारवादी हो या समाजवादी, काँग्रेसी हो या भाजपाई, हिंदू हो या मुसलमान, हम कन्हैया समर्थक हों या विरोधी लेकिन ‘अच्छी शिक्षा सस्ती शिक्षा’ का नारा बुलंद कर सरकार से आज लड़ाई लड़ने की ज़रूरत है।
यदि आपको यह भय है कि जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स वामपंथ के शिकार हैं और उनके द्वारा आपकी नीतियों पर सवाल किया जाएगा तो वहां पढ़ने वाले दक्षिणपंथी स्टूडेंट्स के बारे में भी सोचिए। यदि आपको लगता है कि वहां कन्हैया कुमार ही पैदा होते हैं, तो वहां आप भविष्य के अभिजीत बनर्जी, एस जयशंकर व निर्मला सीतारमण जैसे स्टूडेंट्स के विषय में भी विचार कीजिए। जेएनयू को वामपंथ का तमगा देना शर्मनाक है।
हस्तियों को तैयार करने का केन्द्र है जेएनयू
यदि आपको जेएनयू व नवोदय विद्यालय जैसे संस्थान टैक्स पेयर्स के पैसों पर मुफ्तखोरी पर पलते बढ़ते नज़र आते हैं, तो ध्यान रखिए कि उसी पैसों से तमाम भष्टाचारी नेताओं को ज़ेड प्लस सुरक्षा, मुफ्त रेल व हवाई सेवाएं व तमाम अन्य प्रकार की सब्सिडी प्रदान की जाती है। असली मुफ्तखोरी इसे कहते हैं।
वह संस्थान जो देश को अभिजीत बनर्जी, संजय बारू, अमिताभ कांत, मेनका गाँधी, एस जयशंकर, हारून राशिद खान, उमर फ़ैयाज़, हनुमंथापा और मेजर सुरेंद्र पूनिया जैसी हस्तियों को तैयार करती है, उसके बारे में ऐसी बातें करना शर्मनाक है।
वह विश्वविद्यालय जो मुझ जैसे तमाम स्टूडेंट्स को एक मंच प्रदान करती हो, उसके बारे में भ्रांतियां फैलाना यानी कि संस्थान की बुनियाद पर कील ठोकना है।
मेरा मानना है कि भारत के हर विश्वविद्यालयों और स्कूलों की फीस और पढ़ाई का स्तर जेएनयू या नवोदय विद्यालय के समान हो।
भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में सस्ती एवं अच्छी शिक्षा और सस्ता एवं अच्छा स्वास्थ्य देश के आम नागरिक का मूल अधिकार होना चाहिए। भारत के संविधान की मूल भावना में “भारत में लोक हितकारी राज्य” की स्थापना निहित है। भारत का संविधान इसी मूल भावना को प्रदर्शित करता है।