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“आखिर JNU से कुछ लोगों को इतनी नफरत क्यों है?”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- फेसबुक

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- फेसबुक

कई दिनों से ऑनलाइन मीडिया और न्यूज़ चैनल्स में JNU के खिलाफ काफी बातें सुन रहा हूं मगर आज बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और राज्यसभा संसद डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी का बयान सुनकर काफी हैरानी हुई।

डॉ. स्वामी तो यह तक कह बैठे कि JNU में कैंसर अंदर तक फैल गया है। वहीं, ट्विटर पर सुशील मोदी का बयान काफी निंदनीय है। आखिर ये दोनों हैं तो भाजपा से ही! कब तक ये लोग JNU को कन्हैया कुमार, ओमर खालिद, शेहला राशिद ओर अनिर्बान जैसे स्टूडेंट्स देने वाली यूनिवर्सिटी मानेंगे?

क्या इनको यह नहीं दिखता कि JNU ने और भी महान लोग इस भारत वर्ष को दिए हैं, जिनमें भाजपा सरकार के 2 बड़े मंत्री (वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री डॉ. सुब्रमण्यम जयशंकर) भी शामिल हैं। अभी हाल ही में अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा गया, वह भी तो JNU के ही प्रोडक्ट हैं।

इसके अलावा मेरे सबसे पसंदीदा पत्रकारों में से एक सत्य हिंदी के एडिटर आशुतोष और दी लालनटॉप के एडिटर सौरभ द्विवेदी ने भी इसी यूनिवर्सिटी से M.Phil की पढ़ाई की है। मेरे 2 पसंदीदा राजनेताओं की बात की जाए तो देश के के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह JNU में प्रोफेयर रह चुके हैं तो वहीं जम्मू कश्मीर के पूर्व महाराजा डॉ. कारण सिंह बतौर चांसलर काम कर चुके हैं। ऐसे में JNU को देशद्रोहियों और अय्याश लोगों का अड्डा बताना कहां तक जायज़ है?

देशद्रोह नहीं, विरोध की राजनीति का अड्डा है JNU

कुछ साल पहले एक किस्सा सुना था कि एक बार JNU में एक विदेशी यूनिवर्सिटी के शिक्षकों का एक समूह वीसी के कमरे में मीटिंग कर रहे थे। तभी कुछ स्टूडेंट्स वीसी के कमरे में आकर विरोध करने लगे। इसे देखकर विदेशी यूनिवर्सिटी के तमाम शिक्षक हैरान हुए फिर वीसी ने उन्हें विरोध करते हुए बच्चों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “Welcome to JNU”.

हमेशा से मैं यह पढ़ता और सुनता आया हूं कि बनारस के अस्सी घाट के पप्पू चाय वाले की दुकान और JNU का कैंपस ये दोनों ऐसी जगह है, जहां लोकतंत्र ना सिर्फ ज़िंदा बल्कि बहुत ज़्यादा स्वस्थ है।

जो लोग यह कहते हैं कि JNU चीन के कम्युनिस्टों का अड्डा है, मैं उन्हें यह बता दूं कि जब 1989 मैं तियानमेन चौक पर चीन के राष्ट्रपति डेन सियापोंग ने बेगुनाह बच्चों पर टैंक चढ़ा दिए थे, तब भारत में सबसे ज़्यादा इसका विरोध JNU में ही हुआ था। मशहूर पत्रकार आशुतोष जी उस वक्त JNU में ही स्टूडेंट थे। उन्होंने अपने एक लेख में लिखा था कि SFI ने जब जिस्ज़ मामले में चीनी सरकार का पक्ष लिया था, तब JNU के बच्चो ने SFI की ईंट से ईंट बाजा दी थी।

यहां भले ही वामपंथ विचारधारा का दबदबा हो मगर हर तरह की विचारधाराओं का संगम है। यहां यह सेक्युलर दल भी दलितों और आदिवासियों के लिए लड़ते हैं। महान समाजवादी डॉ. लोहिया कहते थे कि सड़क वीरान हो जाएगी तो संसद आवारा हो जाएगी और ये सड़क पर विरोध की राजनीति करने वाले है। यह के स्टूडेंट्स को यह काम जारी रखना चाहिए ताकि लोहिया जी के विचार जीवित रहे।

क्यों ज़रूरी है वहां के स्टूडेंट्स के लिए ये सुविधाएं

आज कल हॉस्टल की फीस बढ़ने पर JNU में विवाद हो गया है। अगर आप नहीं चाहते हैं कि JNU के बच्चों को इतनी सहूलियतें ना मिले तो ठीक है मगर काम-से-कम ये जान लीजिए कि पिछले दिनों JNU में एक सर्वे हुआ था जिसमें यह पता चला था कि इस यूनिवर्सिटी के 40% बच्चे बीपीएल यानी बेहद गरीब परिवार से आते हैं। जिनके माँ-बाप एक दिन काम ना करे तो शाम को भोजन के लाले पड़ सकते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- फेसबुक

इसी साल जब सवर्णों को 10% आरक्षण मिला था, तब हम सब ने खुशी मनाई थी मगर आज क्यों हम इन गरीब स्टूडेंट्स को कम पैसे मैं अच्छी शिक्षा मिले इसका विरोध कर रहे हैं? कम-से-कम हम यह सुनिश्चित करें कि गरीब बच्चों को यह मदद मिलती रहे। आप कहते हैं कि ये स्टूडेंट्स 30 साल की उम्र तक वहीं रहते हैं फिर कोई मुझे यह बताए कि M.Phil और पीएचडी जैसे कोर्स के लिए इन स्टूडेंट्स को जब लंबा वक्त लगता है तब क्यों ना ये वहां रहें? क्या हर स्टूडेंट वहां 10-10 साल रह रहा है?  मुझे याद है योगेंद्र यादव और स्वरा भास्कर भी इस यूनिवर्सिटी में एम.ए. पढ़ने तक ही रहे थे।

कौन है JNU की बदनामी का ज़िम्मेदार?

मैं कुछ चीज़ों को गलत मानता हूं। जिस तरीके से दंतेवाड़ा में साल 2010 मारे गए हमारे 72 जवानों की मौत का जश्न जेएनयू में मनाया गया था, वह शर्मनाक है। अफज़ल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल ज़िंदा हैं जैसे नारे जिस तरह से लगाए गए उसे भी  मैं गलत मानता हूं। इन कार्यक्रमों को आयोजित करने वाले लोग बाद में न्यूज़ चैनलों में आकर कहते हैं कि हमारी अभिव्यक्ति की आज़ादी है।

दूसरे गुनहगार वे हैं जो खुद को राष्ट्रवादी बताकर इस यूनिवर्सिटी के खिलाफ ऐसा अभियान चलाते हैं, जैसे यहां सिर्फ देशद्रोही ही पढ़ते हैं। मैं यही कहूंगा कि सिर्फ चंद देशद्रोही और समाज विरोधी लोगों की उपस्थिति से JNU को पूरा गंदा मान लेना वैसा ही है जैसे किसी देश में चंद शरारती तत्वों की वजह से पूरे देश को ही गलत मानकर चला जाए।

JNU, BHU, DU, PU, AMU और बाकी जितने भी भारत के शिक्षण संस्थान हैं, सभी नए भारत के निर्माण में ज़रूरी हैमं। ऐसे में किसी के खिलाफ ज़हर उगलना बर्दाश्त के बाहर है और इससे भारत को सावधान रहना चाहिए। मेरा यह भी मानना है कि स्टूडेंट्स को रजनीति में शामिल होना चाहिए क्योंकि युवाओं के देश का प्रतिनिधित्व युवा क्यों ना करें तो आखिर करे कौन?

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