बात पिछले महीने अक्टूबर की है। इंदौर के एक जाने-माने स्कूल में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी बतौर मुख्य अतिथि पधारे थे। उन्हें एक अवसर पर प्लास्टिक की बोतल में जब पानी पीने को दिया गया, तो उन्होंने उस बोतल का पानी पीने से विनम्रतापूर्वक मना कर दिया।
आजू-बाजू के लोग श्री सत्यार्थी के उस कदम से भौंचक्के-से रह गए लेकिन उन्हें जब विषय-वस्तु की गंभीरता का पता चला और वे उसकी तह तक पहुंचे, तो वे सभी श्री सत्यार्थी के कायल हुए बिना नहीं रह सके।
उन्होंने श्री सत्यार्थी के उस कदम को एक नजीर की तरह लिया और ठाना कि अगर वे भी ऐसा ही करते हैं, तो हमारे आस-पास के पर्यावरण का कितना भला होगा। पर्यावरण का हित करके वे अपने को ही तो बचाएंगे।
इंदौर के स्कूल में कांच का गिलास नहीं ढूंढ़ पाया स्टाफ
कहानी यह है कि इंदौर के उस नामी स्कूल में राउंड स्क्वायर इंटरनेशनल कॉफ्रेंस आयोजित की जा रही थी, जिसमें दुनियाभर से बीस देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।
श्री सत्यार्थी को भाषण देने के लिए मंच पर बुलाया गया। श्री सत्यार्थी के वक्तव्य देने से पहले उस स्कूल के निदेशक व वरिष्ठ अधिकारियों के साथ उनकी एक अनौपचारिक बैठक होनी थी। बैठक जब शुरू हुई, तो श्री सत्यार्थी व उनकी पत्नी श्रीमती सुमेधा कैलाश के लिए प्लास्टिक की बोतलों में पानी लाया गया, जिसका पानी पीने से सत्यार्थी दम्पत्ति ने साफ-साफ इनकार कर दिया। तब स्कूल प्रबंधन ने कांच के गिलास में कर्मचारियों को पानी लाने को कहा।
मेरा आश्चर्य तब और बढ़ गया, जब कांच के गिलासों में पानी लाने में कर्मचारियों को आधा घंटा लग गया। उनमें गिलास तलाशने में ही अफरा-तफरी सी मच गई। यह बात संकेत करती है कि प्लास्टिक की बोतलों से पानी पीने के हम इतने आदी हो चुके हैं कि अपने जीवन से परंपरागत तरीके से पानी पीने को बिलकुल त्याग दिया है।
हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी
शहरी और आधुनिक जीवन-शैली ने हमें इस लायक भी नहीं छोड़ा है कि तनिक विचार कर सकें कि जो कदम हम उठाने जा रहे हैं वह हमारे पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ने में कितनी अहम भूमिका निभा सकता है। जबकि विज्ञापनों के जरिए हमें बार-बार चेताया जाता है कि प्लास्टिक का प्रयोग हमारे लिए आत्मघाती है।
कहने का मतलब यह कि प्लास्टिक की बोतल में श्री सत्यार्थी ने पानी पीने से मना करके वहां यही संदेश देने का प्रयास किया। उपरोक्त घटना से यह बात भी सिद्ध होती है कि श्री सत्यार्थी न केवल बच्चों की बेहतरी के लिए काम करते हैं, बल्कि पर्यावरण सुरक्षा को लेकर भी बेहद चिंतित, प्रतिबद्ध एवं जागरूक हैं।
श्री सत्यार्थी के व्यवहार से मैंने महसूस किया कि यथासंभव वे प्लास्टिक के प्रयोग से बचते हैं। इस बाबत मैंने जब उनसे पूछा कि क्या आप प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल नहीं करते? तो उनका जवाब था,
मेरी कोशिश होती है कि उन चीजों का उपयोग कम से कम करूं जिनमें प्लास्टिक होती है। इस प्रकार मैं 99 फीसदी मौकों पर प्लास्टिक प्रयोग से बच जाता हूं।
श्री सत्यार्थी से मुझे यह भी जानकारी मिली कि उनकी पत्नी श्रीमती सुमेधा कैलाश ने भी अपने ड्राइ क्लीनर को प्लास्टिक की पॉलिथीन में कपड़े पैक नहीं करने की हिदायत दे रखी है। वे अपने घर पर भी प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करते। इतना ही नहीं अपने ऑफिस को भी उन्होंने प्लास्टिक फ्री करने के निर्देश जारी किए हैं।
अधिकाधिक प्लास्टिक का प्रयोग
यदि हम गौर करें, तो पाते हैं कि रोजाना की हमारी गतिविधियों में प्लास्टिक का प्रयोग अधिकाधिक हो रहा है, जो पारिस्थतिकीय सेहत को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है। यह अकारण नहीं है कि आज दुनियाभर के पर्यावरणविद् प्लास्टिक के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान से सर्वाधिक चिंतित हैं। यह पर्यावरणीय संकट हमारे सामने एक बड़़ी चुनौती बनकर उभर रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली में 690 टन, चैन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन तथा मुम्बई में 406 टन प्लास्टिक कचरा रोजाना फेंका जाता है। यह कचना जन-जीवन के लिए जानलेवा साबित हो रहा है।
गौरतलब है कि आज के दिनों में प्लास्टिक पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है और इस तरह की बात कई रिसर्च से सामने आ चुकी है।
श्री सत्यार्थी ने उक्त कार्यक्रम में प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से जिस तरह इनकार कर दिया, वह बहुत ही गंभीर संदेश दे गया। प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करके दरअसल वे पर्यावरण को बचाने का संदेश दे रहे हैं, जिसे हमें भी गंभीरता से लेना चाहिए।
दूसरी ओर श्री सत्यार्थी के जीवन की इस घटना से यह बात भी उभरकर सामने आती है कि उनकी कथनी और करनी में कोई फांक नहीं है, क्योंकि वे वही करते हैं, जो कहते हैं।