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“प्रधानमंत्री नेहरू पर बनाए गए झूठ जिन्हें मैं सच समझता रहा”

Representational image.

देश के पहले प्रधानमंत्री के बारे में मैंने कई झूठ बचपन से सुने हैं। एक बार तो मान भी लिया था मगर जब अंधा बन सुनने की जगह खुद पढ़ा, तो पता चला कि हम सबको कितना मूर्ख बनाया गया था और आज भी बनाया जा रहा है।

ऐसे ही कुछ झूठ मैं आपके सामने रखना चाहूंगा।

करते थे अपने ही साथियों का तिरस्कार

पंडित नेहरू पर यह इल्ज़ाम पिछले पांच सालों में बहुत बार लगा है कि वे राजेन्द्र बाबू, सरदार पटेल या सुभाषचंद्र बोस का तिरस्कार करते थे। हालांकि राजेन्द्र बाबू, पंडित नेहरू को भारत रत्न दते हैं। यही सरदार पटेल चार साल तक पंडित नेहरू की सरकार में मंत्री रहते हैं और जब गाँधी की हत्या के बाद सरदार पटेल को गृह मंत्री के पद से हटाने की मांग उठती है, तो नेहरू पटेल साहब के साथ खड़े हो जाते हैं।

जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु होती है, तो उनके पकड़े गए सिपाहियों के INA Red Fort Trials केस में पंडित नेहरू अपने साथियों तेज़ बहादुर सप्रू और भूला भाई देसाई के साथ इन सबके वकील बनते हैं और राजद्रोह के मुकदमे से बरी भी करवाते हैं।

बाद में इन्हीं सिपाहियों में से एक मेजर जनरल शाहनवाज़ खान को ना सिर्फ 1952 के लोकसभा चुनाव में मेरठ से सांसद का टिकट देते हैं बल्कि चुनाव जीतने के बाद अपनी सरकार में मंत्री भी बनाते हैं।

पंडित नेहरू एक मुसलमान

यह झूठ कई लोगों ने सुना होगा कि पंडित नेहरू एक कश्मीरी पंडित परिवार में जन्मे थे मगर वह मुसलमान बन गए। हालांकि मुसलमान होने में कोई बुराई नंहीं है मगर जो लोग पंडित नेहरू के बारे में यह झूठ बोलते हैं, उन्हें जवाहरलाल नेहरू : एक आत्मकथा किताब पढ़नी चाहिए, जिसमें पंडित नेहरू के पूर्वज राज कौल साहब का ज़िक्र है।

1716 में भारत में मुगल सल्तनत की हुकूमत थी और बादशाह थे फर्रुखसियर, जिन्होंने पंडित राज कौल को अपने दरबार में काम दिया था।

बाद में राज कौल साहब ने अपना आखिरी नाम नेहरू किया क्योंकि वह नहरों के पास रहते थे। 1857 तक नेहरू परिवार दिल्ली में रहा जहां पंडित नेहरू के दादा गंगाधर नेहरू कोतवाल थे मगर 1857 की क्रांति के बाद वह प्रयागराज (इलाहाबाद) चले गए। जहां पहले पंडित मोती लाल नेहरू और बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म हुआ। वह दोनों ही अपनी शिक्षा के बाद प्रयागराज के प्रसिद्ध वकील बने।

पंडित नेहरू के दामाद फिरोज़ गाँधी को भी कुछ लोग मुसलमान कहते हैं मगर असल में वह मुम्बई के पारसी परिवार में जन्मे थे। उनके दोनों ही बेटे यानी राजीव और संजय गाँधी ने पारसी धर्म ना अपनाते हुए अपनी माँ इंदिरा का धर्म अपनाया था, जिसके लिए बाकायदा उनका जनेऊ हुआ था।

पंडित नेहरू एक परिवारवादी

यह इल्ज़ाम कई लोग लगाते हैं कि पंडित नेहरू एक परिवारवादी थे और उनकी वजह से काँग्रेस पर गाँधी परिवार की हुकूमत है। हालांकि पंडित नेहरू की मृत्यु के बाद अगले प्रधानमंत्री का पद लाल बहादुर शास्त्री को मिला था ना कि इंदिरा गाँधी को।

प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गाँधी ने एक बार भी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा था। पहली बार जब इंदिरा संसद बनी थीं, तब लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे।

पंडित नेहरू के प्रधानमंत्री रहते हुए बस एक बार ही इंदिरा को बड़ा औहदा मिला था, जो काँग्रेस अध्यक्ष का पद था। उन्होंने 1952 में सरदार वल्लभ भाई पटेल के बेटे दयाभाई पटेल को संसद के चुनाव का टिकट भी दिया था, जिसके बाद दयाभाई पटेल एक सांसद बने थे।

खुद इंदिरा गाँधी की जीवनी लिखने वाली मशहूर पत्रकार सागरिका घोष ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि पंडित नेहरू स्वयं इंदिरा गाँधी को पार्टी या सरकार में ओहदे के लायक नहीं मानते थे क्योंकि उनका मानना था कि उनकी बेटी यह काम नहीं कर पाएगी। पंडित नेहरू एक स्कॉलर थे और इसी वजह से वह इंदिरा को अपना उत्तराधिकारी नहीं मानते थे।

भारत रत्न वाले पंडित नेहरू

पिछले दिनों एक तस्वीर देखी थी, जिसमें नेहरु भारत रत्न के लिए तैयार हो रहे हैं मगर यह संदेश दिया जाता है कि उन्होंने खुद को भारत रत्न दिलवाया था। हालांकि यह भी एक झूठ है बल्कि सच यह है कि सन् 1955 में उन्हें यह सम्मान देश के राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी तरफ से दिया था, वह भी बिना केंद्र सरकार की सिफारिश के।

डॉ प्रसाद ने कहा था,

मैं एक बार ऐसा कर रहा हूं। मुझे असंवैधानिक कहा जा सकता है क्योंकि मैं बिना किसी की सिफारिश या बिना अपने प्रधानमंत्री की सलाह के खुद से ही प्रधानमंत्री नेहरू का नाम भारत रत्न के लिए प्रस्तावित करता हूं लेकिन मैं जानता हूं कि इसे लोग बेहद उत्साह के साथ स्वीकार करेंगे।”

इसके अलावा एक किताब डॉ राजेंद्र प्रसाद: कॉरेस्पोंडेंस एंड सेलेक्टेड डॉक्यूमेंट्स’ के 17 वें वॉल्यूम में पेज नंबर 456 में भी इस बयान का ज़िक्र है।

खुद फिरोज़ गाँधी भी मानते थे कि पंडित नेहरू की बतौर प्रधानमंत्री कामों की आलोचना करना सही है लेकिन झूठी अफवाहें फैलना कहां तक सही है? हमें यह सोचना चाहिए क्योंकि यही श्रेष्ठ है, देश के पहले प्रधानमंत्री का सम्मान होना चाहिए।

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