11 नवंबर को मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जी का जन्मोत्सव होता है। वे एक ऐसे नेता थे जिनका एक ही मकसद था और वह था भारत को ब्रिटिश शासन से आज़ादी दिलाना।
जब भारत को आज़ादी मिली तो बतौर पहले शिक्षा मंत्री उन्होंने देश में हर बच्चे के लिए 14 साल की उम्र तक शिक्षा को अनिवार्य किया था। वे एक ऐसा नेता थे जो 2 बार काँग्रेस के अध्यक्ष बने और कई बार रामपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी।
शुरुआती जीवन की कहानी
मूलत: बंगाली परिवार में जन्मे मौलाना आज़ाद का जन्म सऊदी अरब के मक्का शहर में हुआ था, जो पूरी दुनिया के इस्लाम का केंद्र है। उस समय मक्का ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा था। भारत की 1857 की क्रांति के बाद इनका परिवार दिल्ली को छोड़कर मक्का चला गया था।
मौलाना आज़ाद का असली नाम मौलाना सैय्यद अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल-हुसैनी आज़ाद था। एक ज्ञानी परिवार में जन्मे मौलाना आज़ाद अपने माता-पिता के साथ भारत लौट आएं थे, जहां वे कलकत्ता में रहने लगे। उनके पिता एक ज्ञानी व्यक्ति थे और इस्लाम पर 12 किताबें लिख चुके थे।
जब मौलाना आज़ाद भारत आएं तो वे पढ़ाई लिखाई में लग गए।
- मौलाना आज़ाद की पढ़ाई घर पर ही हुई थी।
- उन्हें उर्दू, हिंदी, फारसी, बंगाली, अरबी और अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में महारथ हासिल थी।
- उन्हें अपने परिवार द्वारा नियुक्त ट्यूटरों द्वारा हनफी, मलिकी, शफी और हनबली फिक, शरियत, गणित, दर्शन, विश्व इतिहास और विज्ञान जैसे कई सब्जेक्ट्स में भी प्रशिक्षित किया गया था।
बतौर पत्रकार किया अंग्रेज़ों की नाक में दम
मौलाना आज़ाद के परिवार वाले उन्हें उनके दादा और पिता की तरह एक मौलवी बनाना चाहते थे पर मौलाना आज़ाद का स्वभाव एक मौलवी का कम पर एक क्रांतिकारी का ज़्यादा था। इसलिए उन्होंने क्रांतिकारी बनने का फैसला किया और बतौर एक पत्रकार अंग्रेज़ों की नाक में दम करना शुरू कर दिया।
अखबार अल-हिलाल में कई लेखों से अंग्रेज़ों की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों की आलोचना करने लगे पर ऑटोमन साम्राज्य के गिरने के बाद जब खिलाफत आंदोलन की नींव पड़ने लगी, तो उनके इस अखबार को भी बैन कर दिया गया, क्योंकि तब मौलाना आज़ाद ऑटोमन साम्राज्य के समर्थन में लेख लिख रहे थे।
भारत की आज़ादी में योगदान
चाहे वह साइमन एक्ट के विरोध में गाँधी के एक दिन का पूरे देश के साथ उपवास हो या असहयोग आंदोलन हो, नमक सत्याग्रह हो या भारत छोड़ो आंदोलन सब में मौलाना साहब की अहम भूमिका थी। वे देश की आज़ादी और एकता के लिए सब जगह खड़े रहे।
इसी का नतीजा था कि 1952 में जब उन्हें उत्तरप्रदेश के रामपुर से चुनाव लड़ने के लिए बोला गया, तो उन्होंने पहले यह कहते हुए मना कर दिया कि मैं सिर्फ मुसलमानों का नेता नहीं बनना चाहता हूं। हालांकि बाद में वे पार्टी के समझाने के बाद वे मान गए थे।
हमेशा पाकिस्तान के मूवमेंट का विरोध करते रहे मौलाना आज़ाद
आज भी अप्रैल 1946 में मौलाना आज़ाद का वह इंटरव्यू सबको याद होगा जो उन्होंने पाकिस्तान के एक बड़े नामचीन पत्रकार आगा शोरिस कश्मीरी को दिया था। इस इंटरव्यू में इन्होंने पाकिस्तान के बारे में भविष्यवाणी की थी। वे थीं,
- इस मुल्क पर कई बार मार्शल लॉ लगेगा। इस भविष्यवाणी के बाद 1958-1971, 1977-1989 और आखिर में 1999-2008 तक मार्शल लॉ रहा।
- यह मुल्क हमेशा हिंदुस्तान से जंग करेगा। इस बात का सबूत 1948 में कश्मीर वॉर, 1965 और 1971 की बांग्लादेश की जंग और आखिर में 1999 की कारगिल जंग है।
- उन्होंने कहा था कि सियासदन और जागीरदार पाकिस्तान को बर्बाद कर देंगे।
मतलब जो कहा वो आज लगभग सही साबित हुआ है।
देश को पहला आईआईटी दिया
1947 से 1958 तक बतौर पहले शिक्षा मंत्री उन्होंने ग्रामीण गरीबों और लड़कियों को शिक्षित करने पर ज़ोर दिया था। केंद्रीय सलाहकार बोर्ड ऑफ एजुकेशन के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने
- वयस्क साक्षरता
- सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा
- 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य माध्यमिक शिक्षा और
- व्यावसायिक शिक्षा के विविधीकरण और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए ज़ोर दिया।
उनका यह मानना था कि हर भारतवासी को बेसिक शिक्षा तो मिलनी ही चाहिए। 1947-50 तक शिक्षा के अधिकार को भारत के संविधान में शामिल करने की मंज़ूरी नही मिल पाई थी, क्योंकि भारत के आर्थिक हालात कुछ ठीक नहीं थे और उस वक्त सबको मुफ्त शिक्षा देना भी मुमकिन नहीं था।
- 1952 में बंगाल के खड़गपुर में देश का पहला आईआईटी (IIT) स्थापित करने वाले मौलाना साहब ही थे।
- इसके अलावा दिल्ली यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन और फैकल्टी ऑफ टेक्नोलॉजी भी उनके द्वारा बनाई गई।
- यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन(UGC) बनाने में भी मौलाना आज़ाद की सबसे अहम भूमिका रही है।
आज भारत अपने इस लाल को याद करता है, जिसकी पूरी ज़िंदगी देश के लिए निकल गई। देश को शिक्षा की ओर बढ़ाने वाले इस महापुरुष के जन्मदिवस को पूरा देश राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाता है।
भारत पढ़ेगा, तभी बढ़ेगा। यही हम सब का नारा होना चाहिए।