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क्या प्रशासन बाढ़ का मुआवज़ा देने में कर रही है जातिगत भेदभाव?

बिहार में बाढ़

बिहार में बाढ़

एडिटर्स नोट:  बिहपुर प्रखंड के बीडीओ आसिफ अंजन ने कहा कि मैंने 5 नवंबर को ज्वाइन किया है। मुझे मामले की बहुत अधिक जानकारी भी नहीं है और अभी मैं इस पर बात करना उचित नहीं समझता हूं। इलाके से अवगत होने के बाद मुसहर जाति के लोगों की समस्याओं के समाधान पर बात होगी।


भागलपुर ज़िले के बिहपुर प्रखंड अंतर्गत हरिओ पंचायत का गोविंदपुर (मुसहरी) गाँव कोसी नदी के किनारे बसा हुआ है। इस गाँव में 250 से ऊपर घर हैं और सभी मुसहर जाति से आते हैं। कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है।वर्तमान में भागलपुर ज़िले के सांसद जदयू के अजय मंडल हैं और विधायक राजद की वर्षा रानी हैं, जो कि पूर्व राजद सांसद बुलो मंडल की पत्नी हैं। बुलो मंडल भी पूर्व में इस क्षेत्र के विधायक रह चुके हैं।

इस विधानसभा के पूर्व विधायक भाजपा के ई. कुमार शैलेंद्र भी रह चुके हैं, जो फिर चुनाव मैदान में आने की तैयारी में हैं। अबकी बार कोसी नदी के कटाव की चपेट में यह गाँव भी आ गया है। अभी तक लगभग 40 घर बाढ़ के कटाव का शिकार हो चुका है। मुआवज़ा तो दूर की बात है, तत्काल कोई राहत भी सरकार की तरफ से नहीं मिली है।

गाँव के लोगों ने प्रखंड कार्यालय में सूचना दिया लेकिन प्रखंड पदाधिकारी अभी तक गाँव नहीं पहुंच पाए हैं। कोई जनप्रतिनिधि भी अभी तक गाँव वालों से मिलने नहीं पहुंचे हैं।

गाँव बसने की अपनी एक अलग कहानी है

बाढ़ में तबाह हुई मुसहर जाति के लोगों की झोपड़ियों की तस्वीर। फोटो साभार- अंजनी

कहा जाता है कि कई साल पहले जमींदारों ने अपनी खेती करवाने के लिए कहीं दूसरी जगह से लाकर मुसहर जाति को यहां बसाया था। इसका कोई ठोस तथ्य लोगों को पता नहीं है कि उन्हें किस जगह से लाकर बसाया गया है। गाँव वालों से पूछने पर केवल यही पता चलता है कि उनके पूर्वज कई पीढ़ी पहले यहां आकर बसे थे। जो भी बातें निकलकर सामने आ रही हैं, सवाल यह है कि ये लोग भी तो इसी देश के नागरिक हैं।

सबसे शर्मनाक बात यह है कि अभी तक इस गाँव वालों को सरकार की ओर से मिली ज़मीन का ना तो पर्चा मिला है और ना ही जमींदार ने इन लोगों के नाम ज़मीन किया है।

हां, इस गाँव में पहले प्राथमिक विद्यालय था जिसे बाद में मध्य विद्यालय बना दिया गया है। जो वर्तमान में दो शिक्षकों के भरोसे चल रहा है। सरकार का भूमिहीनों को ज़मीन व पर्चा देने का वादा भी सिर्फ एक घोषणा ही बनकर रह गया है।कटाव पीड़ित परिवार के लोग नदी के इस पार सड़क किनारे रहने के लिए अपना ठिकाना बना रहे हैं लेकिन सरकार की तरफ से कोई राहत अभी तक नहीं मिल पाई है।

एक तरह से पूरा गाँव भूमिहीन है। जिस ज़मीन पर वे बसे हैं, उस पर भी उनका कानूनन अधिकार नहीं है। सरकार को कहीं स्थाई रूप से इस पूरे गाँव को पर्चा देकर बसाना चाहिए। तमाम सत्ताधारी दल इन्हें चुनाव के लिए बस एक वोट ही समझते हैं। उसके बाद इसके प्रति कोई जवाबदेही नहीं है।

इस विकट परिस्थिति में इस समुदाय के साथ सरकार शर्मनाक व्यवहार कर रही है। क्या जाति के कारण इसके साथ इस तरह का व्यवहार नहीं किया जा रहा है? अगर यहीं गाँव किसी सवर्ण या मज़बूत जाति का होता तो क्या अभी तक सरकारी महकमा व जनप्रतिनिधि सक्रिय नहीं हुए होते?

क्या इस गाँव के लोग राहत-मुआवज़ा में भी जातिगत भेदभाव के शिकार नहीं हो रहे हैं?

नोट: गौतम कुमार प्रीतम, अंजनी, अनुपम आशीष और सुधीर यादव ने इस गाँव का भ्रमण कर कटाव पीड़ितों से बातचीत के ज़रिये यह लेख लिखा है।

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