Site icon Youth Ki Awaaz

आधुनिक रिश्ते और भारतीय राजनीति

उद्धव ठाकरे और फडनवीस

उद्धव ठाकरे और फडनवीस

पति-पत्नी का रिश्ता कैसा हो बीजेपी-शिवसेना जैसा हो। अगर आपको पता है कि बीवी छोड़कर नहीं जाने वाली, तो झगड़े का मज़ा ही कुछ और है। आज कल महाराष्ट्र के लोगों की हालात उन बारातियों जैसी हो गई है जो बारात में नाचते-कूदते दुल्हन के घर पहुंचते हैं और अचानक दुल्हन शादी से इनकार कर देती है।

ऊपर से तुर्रा यह कि शादी होनी यहीं है। आगे कोई बढ़ नहीं रहा और पीछे किसी को हटना नहीं है। लोकतंत्र और आधुनिक रिलेशनशिप दोनों की हालत एक जैसी हो चुकी है। लिव इन और कैज़ुअल रिश्तों की परंपरा जोर पकड़ रही है। सात जन्म और सात बंधनों की ना किसी को ज़रूरत है और ना ही निभाने की इच्छा शक्ति।

बात शक्ल सूरत और नेक नियत से हटकर पैकेज यानी सीटों पर आ रुकी है। जो काम का हो नमस्कार नहीं तो चमत्कारिक रूप से आत्मा जागती है और तलाक पक्का।

इस सबमें सबसे ज़्यादा कटता है जनता का जो बारात में सबसे अधिक नाचती है। नेता चालाक होते हैं। बड़े-बड़े स्पीकरों पर केवल वही गाने बजाए जाते हैं जिन पर लोगों को नाचने का मन करे। पांव रोके ना रुके। गाने के बोल, लय, ताल, सुर से किसी को मतलब नहीं होता।

कई बार तो राजस्थान में पाकिस्तान और हरियाणा में कश्मीर का गाना बजा दिया जाता है मगर बीटों के शोर में बोलों को सुनता कौन है? और जब एक बार पब्लिक कम सुनना शुरू कर दे फिर चांदी ही चांदी।

समझदार नेता आस-पास की गंदगी नहीं हटाते, बस नाचते बारातियों पर परफ्यूम छिड़क देते हैं। लोग नादान होते हैं, जान लगाकर नाचते हैं। सोचते हैं रिश्ता जन्म-जन्म का है। जो घोड़ी पर बैठा है, समझदार है उसे व्यवसाय का पता है। नुकसान दिखने पर वरमाला भी वापस ले लेनी है और चलते बनना है।

घोड़ी पर बैठा शख्स बेसुध नाचते बारातियों को देखता है, मिलने वाले दहेज के बारे में सोचता है और हंसता है। ये नाचने वाले ज़्यादातर उसकी जाति, बिरादरी या सम्प्रदाय से होते हैं, दिल लगाकर नाचते हैं। ख्वाहिश है कि बस एक बार कैमरे में फोटो आ जाए।

बारात में कई कैमरे होते हैं। चलाने वालों को निर्देश होता है लाइट नाचने वालों की आंखों में डाली जाए। अब उनको दिखना भी बंद हो जाता है। बाराती फिर भी नाचते हैं। गाने की बीट बदस्तूर जारी रहती है। उनको घोड़ी पर बैठे शख्स पर भरोसा है, क्योंकि वह उन्हीं की जाति या धर्म से है।

वर और वधु पक्ष कम शातिर नहीं होते हैं। बीटों की आवाज़ बढ़ा दी जाती हैं। कैमरे की लाइटें खोल दी जाती हैं। दूल्हे-दुल्हन बदल दिए जाते हैं। बाराती अब भी झूम के नाच रहे होते हैं। घोड़ी पर बैठा शख्स उनको हंसकर देख रहा होता है।

Exit mobile version