सेरेब्रल पाल्सी, सात साल पहले मैंने यह शब्द एक बार भी नहीं सुना था। फिर यह शब्द मेरे जीवन का अटूट हिस्सा बन गया। सेरेब्रल पाल्सी दिमाग को ऑक्सीज़न की कमी से पहुंचे नुकसान का नाम है। यह किसी बीमारी का नाम नहीं, एक कंडीशन है जो दिमाग से शरीर तक सिग्नल नहीं पहुंचने देती।
एक ऐसी अवस्था है (बीमारी नहीं),
- जिसमें दिमाग को हुए किसी नुकसान की वजह से दिमाग और शरीर के बीच का संपर्क प्रभावित हो जाता है।
- मांसपेशियों तक दिमाग के सन्देश नहीं पहुंच पाते हैं जिससे उनकी कार्य क्षमता प्रभावित होती है।
- सेरेब्रल पाल्सी का कोई इलाज नहीं है
- थेरपीज़ के द्वारा स्थिति को मैनेज भर किया जा सकता है।
सात साल पहले मैं यह सब नहीं जानती थी लेकिन अब रोज़ इस अवस्था को चुनौती दे रही हूं क्योंकि मेरी बेटी की तमाम खूबियों में सेरेब्रल पाल्सी जो जुड़ गया है। मेरी सात साल की प्यारी बेटी आद्या सेरेब्रल पाल्सी को मैनेज कर रही है।
जब जानना चाहा कि मेरी बेटी को यह क्यों हुआ?
भगवान शिव को फोन लगाओ अगर ये पता करना है कि बच्चे को असल में ये दिक्कत हुई कैसे और आगे उसका क्या होगा।
ये शब्द थे देहरादून के प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर राकेश ममगाई के, जिनके पास मैं अपनी तीन महीने की आद्या को लेकर गई थी। तीन महीने पूरे होने पर भी आद्या आई कॉन्टैक्ट नहीं कर पा रही थी और मुस्करा भी नहीं रही थी।
एक वक़्त के बाद ये जोश ठंडा पड़ जाएगा, तुम कमज़ोर ना भी पड़ो तो समाज तुम्हें एहसास करवा ही देगा कि तुम्हारी मेहनत विफल हो रही है।
ये शब्द थे एक और महिला बाल रोग विशेषज्ञ के, जिनके पास मैं अपनी सात महीने की बेटी के लिए फिज़ियोथेरेपिस्ट ढूंढने गई थी।
आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारे लिए कितना मुश्किल था आद्या के लिए सही सलाह और मार्गदर्शन पाना, उस छोटे शहर में जहां ना साधन थे ना जागरूकता। जहां वे लोग भी आपको हतोत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे जिन्हें आपको राह दिखानी चाहिए थी।
सेरेब्रल पाल्सी के साथ आद्या की यात्रा
आद्या के सारे डायग्नोसिस दिल्ली में हुए और हमें बताया गया कि उसे सेरेब्रल पाल्सी है और पूरा शरीर उससे प्रभावित है। आगे की राह बहुत मुश्किल होगी लेकिन सही तरीके से आगे बढ़ें, थेरेपी के साथ प्यार और भरोसा भी उसे दें तो बहुत कुछ हो सकता है।
मुझे पहले दिन से यकीन था कि सेरेब्रल पाल्सी मेरी बेटी की पहचान नहीं बनेगा। वह आद्या है, एक बहुत स्मार्ट और एक्टिव बच्ची, जिसके आगे संभावनाओं का असीम आकाश है।
आद्या के पिता देहरादून से बाहर जॉब करते थे। मुझे अकेले ही अब आगे की तैयारी करनी थी और मेरी खुशनसीबी से मुझे सौम्या कोठियाल के रूप में बहुत प्यारी फिज़ियोथेरेपिस्ट मिली, जिसने आद्या को स्पॉस्टिसिटी के बेहद मुश्किल दौर से बाहर निकाला।
शुरू में हम आद्या को कपड़े नहीं पहना पाते थे क्योंकि उसके शरीर में बहुत अकड़न होती थी। अब बहुत हद तक सामान्य है। सौम्या के प्यार और समर्पण से आद्या काफी संभली है।
तब से शुरू हुए थेरेपीज़ का दौर जारी है। बहुत कुछ बेहतर हुआ लेकिन दो कदम आगे, एक कदम पीछे की रफ्तार से। फिर भी हम खुश हैं, जो वह कर पाती है उसकी स्थिति का हर बच्चा नहीं कर पाता।
आद्या का अनुशासन
आद्या बहुत अनुशासन वाला जीवन जीती है। उसका खाना, फल, दूध, पानी, जूस से लेकर थेरेपी तक का समय बंधा हुआ है। चाहे कुछ हो हम उसे नहीं बदलते। यही एक तरीका है उसे स्वस्थ रखने का। इस सबके बीच वह खूब मस्ती करती है,और इतना खुश रहती है जितना आप और हम, तमाम नेमतों के बाद नहीं रह पाते।
एक स्पेशल बच्चे के लिए सही इलाज के साधन ढूंढ पाना बहुत मुश्किल है। खासकर हमारे देश में, जहां हर तरह की सुविधाओं और जानकारियों का आभाव है। मैं अपने विदेशी दोस्तों की खास आभारी हूं, जिनसे मुझे हिम्मत और जानकारियां मिलती रहती हैं।
जब पहली बार आद्या ने अपना सर स्थिर रखा
एक, दो, तीन, चार, पांच, छह। इस तरह हम सेकण्ड्स गिनते थे कि आद्या कितनी देर अपना सर संभाल पा रही है। थेरेपी शुरू हुए महीने हो चुके थे। आद्या को अपनी आंखों पर कंट्रो आने लगा था। मतलब अब किसी भी दिशा में फोकस के साथ देख पा रही थी लेकिन सर संभालने में इतना सुधार नहीं दिख रहा था।
एक रविवार उसके पापा कोई साउथ इंडियन एक्शन मूवी देख रहे थे,आद्या को मैंने बिठाया हुआ था। अचानक मैंने गौर किया कि वह हंस रही है और गर्दन स्थिर रखकर एक्शन सीन देख रही है। एक, दो, तीन, चार, पांच, छह, पूरे पंद्रह मिनट उसने अपना सर संभाले रखा। हमारे हाथ जादू की छड़ी लग गई थी।
आद्या के रोज़ के खाने में दो फल ज़रूर शामिल होते हैं। गर्मियों के दिन थे,आद्या ने रोज़ एक आम खाया। पैर पर फुंसी निकल आई थी। बहुत दिनों से हम उसे सहारा देकर चलाने की कोशिश कर रहे थे। वह जम्प मारकर चलती थी। हम रोज़ कोशिश करते कि एक एक कदम अलग अलग बढ़ाएं लेकिन नहीं हो पा रहा था।
पैर में फुंसी थी तो उसकी दादी मुझसे कहने लगी कि कुछ दिन मत चलाओ पैर में दुखेगा। यह सुनते ही आद्या मचलने लगी। नीचे उतारा तो दो बार जम्प मारकर आगे बढ़ी, पैर से पैर टकराया, दर्द हुआ होगा,अब एक-एक कदम बढाकर चलने लगी। कभी-कभी तकलीफें भी नेमत बन जाती हैं।
आद्या को देखकर हैरान हो जाती हूं
मैंने किसी आर्टिकल में पढ़ा था कि सेरेब्रल पाल्सी वाले व्यक्ति को कोई भी काम,जिसमें कि हाथ या पैर हिलाना भी शामिल है, सामान्य इंसान की तुलना में तीन गुना अधिक कैलरीज़ खर्च करनी होती है। मैं आद्या को देखती हूं और मुझे इस बात पर यकीन नहीं आता। अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद आद्या हमें ये एहसास नहीं होने देती कि वह थक रही है। हर वक़्त खेलने को तैयार,मुस्कुराती हुई।
सुबह उठने का सलीका कोई आद्या से सीखे। मैं आज तक तय नहीं कर पाई कि वह आंखें पहले खोलती है या मुस्कुराती पहले है। जो भी उससे मिलता है उसकी इस मधुर मुस्कान का कायल हो जाता है। जीवन के हर पल को खुलकर जीना मेरी बेटी से बेहतर कोई नहीं जानता।
हर बच्चे की तरह ज़िद्द करना उसे पसंद है। ना करो तो वह इसे अपनी शान के खिलाफ समझती है। हमनें भी तोड़ निकाल लिया है,जो करवाना होता है उसके लिए मना कर देते हैं, बात बन जाती है।
आद्या के कौन से काम किसे करने हैं, खूब अच्छे से जानती है। जैसे रात का खाना मैं ही खिलाऊंगी, सोने से पहले हाथ मुंह दादी धुलवाएगी। सब कुछ उसके हिसाब से होना चाहिए,उसके वक्त पर।
मैं अक्सर उसकी दादी से कहती हूं कि इस घर की मुखिया बेशक आप हो लेकिन यह घर चलता आद्या के इशारों पर है।
उसकी छोटी छोटी हरकतें मुझे कितनी खुशी देती हैं, मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती। उसकी शरारतें मुझे जीवन से भर देती हैं। वो मुझे माँ से नहीं, दीपू नाम से पहचानती है। मेरे ऑफिस जाने पर बहुत खुश होती है। मैं पूछूं कि माँ से प्यार है तो गर्दन हिलाकर साफ मना कर देती है, पापा का पूछो तो हां कहकर मुस्कुराती है।
आइये जानते हैं सेरेब्रल पाल्सी और क्या क्या नहीं कर सकती
जो भी सेरेब्रल पाल्सी के बारे में सुनता या समझता है वह डर जाता है। डर लगना लाज़मी भी है क्योंकि यह अवस्था बहुत कुछ रोक देती है लेकिन कुछ चीज़ें हैं जिन्हें सेरेब्रल पाल्सी हाथ तक नहीं लगा सकती। जैसे,
- सेरेब्रल पाल्सी एक छोटे बच्चे की खिलखिलाहटें नहीं रोक सकती। बहुत ज़ोर लगाकर भी एक मासूम चेहरे की मुस्कान नहीं छीन सकती।
- एक माँ को हताश नहीं कर सकती। कुछ पलों के लिए परेशान ज़रूर कर सकती है लेकिन इससे ज़्यादा कुछ नहीं।
- किसी बच्चे या बड़े के लिए सीमाएं तय नहीं कर सकती।
- तमाम खोजें होती हैं। परिभाषाएं और तथ्य धरे रह जाते हैं जब एक इंसानी चाह अपना जलवा दिखाना चाहे।
- किसी भी अभिवावक या केयर गिवर की संवेदनशीलता को बाकी आम लोगों की तरह खत्म नहीं कर सकती, उल्टा इतना बढ़ा देती है कि इंसान होने के असल मायने समझ आने लगते हैं।
इसके अलावा अगर कुछ और जानना हो तो गूगल करें,और ना भी करें तो कोई बात नहीं। बस इतना जान लें कि सेरेब्रल पाल्सी को सर का ताज भी बनाया जा सकता है कोई चाहे तो।
अंत में अपनी बेटी से कहना चाहूंगी कि मैं तुम्हारे लिए डरती हूं, परेशान होती हूँ,माँ हूँ ना इसलिए। तुम कभी परेशान नहीं होती, कभी नहीं डरती। इसकी एक वजह यह भी है कि तुमने खुद को लेकर कोई सीमा नहीं बांधी। किताबों ने तुम्हारे मन में डर नहीं भरे, इंटरनेट ने तुम्हें जानकारियों के साथ आशंकाएं नहीं बांटी। तुम वह हो जो खुद को जानती हो, खुद को जीती हो। तुम जीवन हो,आद्या हो।
प्यार और सिर्फ प्यार
तुम्हारी माँ।