Site icon Youth Ki Awaaz

“हिन्दुत्व की बात करने वाले गोडसे से सच्चे हिन्दू थे गाँधी”

नाथूराम गोडसे

नाथूराम गोडसे

15 नवंबर को आज़ाद भारत के पहले राजनीतिक कत्ल के तौर पर याद किया जाता है, क्योंकि इसी रोज़ महात्मा गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी दी गई थी। हालांकि गोडसे के समर्थक आज भी जश्न मनाते हैं। किसी बेगुनाह का कत्ल कर फांसी पर चढ़े आदमी की पूजा करने वाले के ज़हन में कानून के लिए क्या इज्ज़त होगी, यह तो सभी को पता है।

हालांकि मैंने खुद नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे की किताब, “मैंने गाँधी को क्यों मारा?” पढ़ी है और मुझे उसमें कोई भी बात सच नहीं लगी। ऐसा लगा कि किसी का ब्रेनवॉश कर उसे बंदूक थमाकर भेजा गया हो।

गोडसे ने गाँधी की हत्या को सही ठहराने के लिए जिन कारणों का ज़िक्र किया है, वह मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं-

गाँधी पर लगाए गए बेबुनियाद आरोप

महात्मा गाँधी की प्रतीमा। फोटो साभार- Getty Images

गोडसे ने कहा था कि गाँधी का भारत की आज़ादी में कोई रोल नही था। वर्ल्ड वॉर 2 की वजह से देश को आज़ादी मिली थी, जिसमें 80% हाथ नाज़ियों का ओर 20% नेताजी बोस के साथ भगत सिंह और उनके साथियों का है। हालांकि भारत की आज़ादी के लिए सारी ज़िदगी लगाने वाले महात्मा ने खुद कभी ऐसा नही कहा था कि उन्होंने देश को आज़ादी नहीं दिलाई ओर नेताजी सुभाषचंद्र बोस जिस इंसान की सबसे ज़्यादा इज्ज़त करते थे, वह महात्मा गाँधी ही थे।

कई बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज़ाद हिंद रेडियो के माध्यम से बापू के समर्थन में भाषण दे चुके हैं। ऐसे में सवाल यह है कि अगर उनका हाथ देश की आज़ादी में नहीं होता तो क्या बोस गाँधी जी की इतनी इज्ज़त करते?

गोडसे ने कहा था कि गाँधी ने देश के बटवारे को रोकने की कोशिश नहीं की थी। हालांकि गोडसे के समर्थकों को गोपाल गोडसे की किताब “मैंने गाँधी को क्यों मारा” पढ़नी चाहिए, जिसमें यह बात लिखी थी कि गाँधी जी ने जिन्नाह को भारत के बटवारे की शर्त छोड़ने के लिए प्रधानमंत्री पद देने की बात कही थी। यहां तक कि कई किताबें भी इस बात को साबित करती हैं। खुद डॉ. राम मनोहर लोहिया और आचार्य जे. बी. कृपलानी ने अपनी किताबों में माना है कि गाँधी जी आखरी वक्त तक कोशिश करते रहे।

गोडसे का गाँधी पर हिन्दुओं को अहिंसा से कमज़ोर बनाने की बात कहां तक सही है, यह चर्चा का विषय है। खुद को हिन्दू कहने वाला नाथूराम गोडसे क्या यह जनता था कि अहिंसा पर हिन्दू धर्म के क्या विचार हैं? हिन्दू धर्म में हमारा सबसे पवित्र ग्रंथ है श्रीमद भागवत गीता, जिसमें अहिंसा का ज़िक्र 4 बार आया है। यानी कि भगवान कृष्ण अहिंसा की वकालत करते थे और बदले को गलत मानते थे। इसलिए वह दुर्योधन के सामने सिर्फ 5 गाँव की मांग रखने गए थे ताकि शांति स्थापित रहे और हिंसा ना रहे। भागवत गीता यह भी कहती है कि अहिंसा धर्मात्मा पुरुषों के गुणों में से एक है।

भागवत गीता हत्या को एक महा पाप मानती है। इसलिए भागवत गीता में कहा गया कि कत्ल करने वाले को मृत्युदंड होना चाहिए और गाँधी जी की हत्या करके गोडसे ने वही किया था जिसकी मनाही भागवत गीता में है फिर उसको वही सज़ा मिली।

गाँधी को बदनाम करने के लिए झूठे तर्क गढ़े गए

नाथूराम गोडसे। फोटो साभार- Google Free Images

गोडसे ने यह भी कहा था कि गाँधी ने मुसलमानों को रिझाने की कोशिश की जिसके चक्र में पहले ‘खिलाफत आंदोलन’ हुआ फिर मुसलमानों को अलग चुनाव क्षेत्र मिले। हालांकि गोडसे शायद यह नहीं जानता था कि उन्हीं की पार्टी हिन्दू महासभा के पूर्व नेता लाला लाजपत राय ने काँग्रेसी नेता होते हुए भी इस आंदोलन का समर्थन किया था। जहां तक अलगे चुनाव क्षेत्र की बात है, तो अगर 1932 में गाँधी जी ने आमरण अनशन ना किया होता तो हिन्दुओं में भी इस चुनाव व्यवस्था की वजह से बटवारा हो जाता।

जब ब्रिटिश सरकार दलित समाज के लोगों को अलग चुनाव क्षेत्र देकर उनके बाकी सहयोगी हिन्दुओं से अलग करना चाहती थी, तब गाँधी की सोच थी कि अलग चुनाव क्षेत्र की जगह आरक्षित सीटें देकर उन्हें हिन्दुओं में बनाए रखा जाए।

एक ज़माने में कहा जाता था कि देश छोड़ते ही धर्म भी छूट जाता है, क्योंकि इंसान बाहर ना सिर्फ अपनी सभ्यता भूल जाता है बल्कि अपना खानपान और चरित्र भी त्याग देता है मगर जब गाँधी जी इंग्लैंड गए थे तब उन्होंने ने यह वादा अपनी माँ पुतली बाई से किया था कि वह कभी भी अपने संस्कार और धर्म के खिलाफ कोई काम नहीं करेंगे।

उन्होंने ऐसा किया भी। इंग्लैंड में रहते हुए भी ना तो कभी उन्होंने शराब पी, ना मांसाहार किया और ना ही कभी अय्याशी की जिसे देश छोड़ने के बाद शायद ही कोई करता ना हो। इसका ज़िक्र गाँधी जी अपनी किताब “My Experiments with Truth” मैं किया है।

गाँधी जी को उस वक्त बिरला भवन में रहने के लिए मजबूर किया गया था जब वह दिल्ली में बसे पंजाबियों की शरण में जाकर लोगों की तकलीफें देख रहे थे। जब देश आज़ाद हुआ था और लोग जश्न मना रहे थे, तब गाँधी जी सड़को की धूल चाट रहे थे। ऐसे इंसान पर नाथूराम गोडसे हिन्दू शरणार्थियों के दुश्मन होने का आरोप लगा रहे थे।

अपनी पूरी ज़िंदगी गाँधी जी ने देश को दे दी थी और उस आदमी की हत्या करने वाले नाथूराम के समर्थक गाँधी को कोसते हैं। आज भी गोडसे के समर्थक उनके समर्थन में आवाज़ बुलंद करते हैं। गाँधी को बदनाम करने के लिए झूठे तर्क देते हैं मगर मैं एक चीज़ ज़रूर कहूंगा, वो यह कि जिसे इस देश के कानून ने दोषी माना वह दोषी है। उसके गुनाह की कोई भी जायज़ वजह नहीं हो सकती है।

नोट: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे की किताब “मैंने गाँधी को क्यों मारा?” और गाँधी की आत्मकथा “My Experiments with Truth” से लिए गए हैं।

Exit mobile version